- पिता से साइकिल लेने की जिद कर रहे थे सचिन
- साइकिल नहीं मिली तो नाराज होकर बालकनी में खड़े हो गए
- बालकनी की ग्रिल में फंसा सिर, मां ने मुश्किल से निकाला
Sachin Birthday Special : मीडिया में अपनी पर्सनल लाइफ से जुड़े सवालों पर अकसर चुप्पी साधने वाले या मुस्कुराते हुए उन्हें टालने वाले सचिन तेंदुलकर ने अपनी बुक ‘प्लेइंग इट माई वे’ में अपने दिल की हर बात खुल कर बताई। सचिन ने अपनी किताब में एक ऐसी घटना का जिक्र किया, जिसे वे कभी नहीं भूल पाए। सचिन ने लिखा, बचपन में हर लड़के की तरह मुझे भी नई साइकिल लेने की जिद रहती थी। मैं पिता जी (रमेश तेंदुलकर, मराठी कवि) को कहता तो वह टाल देते। जब बार-बार वह इसे टालते गए तो मेरी नाराजगी बढ़ गई। मैं तब खेलने बाहर नहीं जाया करता था। बालकनी में खड़ा होकर अपने दोस्तों को साइकिल चलाते देखता था। एक दिन मेरा सिर बालकनी में लगी ग्रिल में फंस गया।
ग्रिल में फंस गया था सचिन का सर
सचिन ने लिखा, यह मेरे मां-बाप के लिए एक डराने वाला अनुभव था। मैं चौथी मंजिल पर था। क्योंकि बालकनी छोटी थी और उसमें ग्रिल भी लगी थी तो मैं उसे ऊपर से नहीं देख सकता था। बाहर देखने के लिए मैंने अपना सिर ग्रिल में डाल दिया। मैं बाहर देखता रहा लेकिन जब सिर निकालने लगा तो यह निकला नहीं। मैं 30 मिनट तक उसमें फंसा रहा। मेरे घर वाले बेहद परेशान हो गए। काफी कोशिशों के बाद मेरी मां ने खूब सारा तेल डालने के बाद मेरा सिर ग्रिल में से बाहर निकाला।
घर वाले हुए थे बहुत परेशान
सचिन ने इसके बाद का हाल सुनाते हुए लिखा,- मेरी इस हरकत से तमाम घरवाले परेशान थे। पिता जी को चिंता थी कि कहीं मैं कुछ कर न बैठूं। उन्होंने कहीं से पैसे इकट्ठे किए और मुझे नई साइकिल लेकर दी। लेकिन जब साइकिल घर आई तो यह अपने साथ एक मुसीबत भी लेकर आई। नई साइकिल चलाते वक्त मेरा एक्सीडेंट हो गया। मुझे चोटें लगी थीं। पिता जी फिर से नाराज थे। वह गुस्से में थे। बोले- अब जब तक तुम ठीक नहीं होते साइकिल नहीं मिलेगी।