- आरएलडी 40 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। उसे इस बार अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की सबसे ज्यादा उम्मीद है।
- कई नेताओं को इस बात का डर है कि कहीं गठबंधन के कारण उनकी सीट दूसरे दल के खाते में नहीं चली जाय।
- 2014 से भाजपा पश्चिमी यूपी में लगातार एकतरफा जीत हासिल कर रही है।
नई दिल्ली: बीते मंगलवार को मेरठ की रैली में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने अपने गठबंधन का ऐलान कर दिया है। इस मौके पर अखिलेश यादव ने कहा कि पश्चिम में बीजेपी का सूरज डूबेगा। वहीं गठबंधन के दूसरे साथी जयंत चौधरी ने कहा कि दोनों दल मिलकर डबल इंजन सरकार देंगे। दोनों नेता इसके पहले एक ट्वीट के जरिए भविष्य की रणनीति का संकेत दे चुके थे। हालांकि पहले की तरह मेरठ रैली में भी सीटों के बंटवारे को लेकर ऐलान नहीं हुआ। जाहिर है सीटों को लेकर अभी बात पूरी तरह से फाइनल नहीं हो पाई है।
40 सीटों का तैयार होगा फॉर्मूला
सूत्रों के अनुसार सपा और आरएलडी में 40 सीटों को साझा करने का फॉर्मूला तैयार हुआ है। इसके तहत समाजवादी पार्टी, आरएलडी को 40 सीटें देगी। जिसमें 30-35 सीटों पर सीधे आरएलडी के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे। बल्कि 5-10 सीटों पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार आरएलडी की सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि आरएलडी की 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग थी। लेकिन फाइनल समझौता 40 सीटों के आस-पास हो सकता है।
कई नेताओं की बढ़ी चिंता
आरएलडी पर करीब से नजर रखने वाले एक सूत्र के अनुसार किसान आंदोलन के बाद राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेताओं की उम्मीदें बढ़ गई हैं। उन्हें लगता है कि 2014 के बाद पहली बार ऐसे समीकरण बने हैं, जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के किले को ध्वस्त किया जा सकता है। इसे देखते हुए पिछले 7-8 महीनों से कई स्थानीय नेताओं ने अपनी उम्मीदवारी मजबूत करने के लिए ग्राउंड लेवल पर काम शुरू कर दिया था। लेकिन जिस तरह से सपा और आरएलडी के बीच गठबंधन हुआ है। उसकी वजह से कई नेताओं की चिंताएं बढ़ गई हैं।
नेताओं को इस बात का डर सता रहा है कि अगर उनकी सीट, दूसरे दल के खाते में चली गई तो फिर उनकी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। इसे देखते हुए नेताओं ने लॉबिंग भी शुरू कर दी है। यही नहीं कई नेता इस बात की भी संभावना तलाश रहे हैं कि वह जिस दल के खाते में सीट जाएं, उसमें शामिल होकर टिकट हासिल कर लें। हालांकि दोनों दलों के प्रमुखों में इस बात को लेकर भी सहमति बनी है कि वह एक-दूसरे के नेताओं को नहीं तोड़ेंगे। ऐसे में देखना है कि आने वाले समय में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी किस तरह सीटों का बंटवारा करते हैं। हालांकि दोनों दल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़े थे। लेकिन उन्हें बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था।
पश्चिमी यूपी में 7 साल से भाजपा का फहरा रहा है परचम
पश्चिमी यूपी एक समय आरएलडी और बसपा का मजबूत गढ़ हुआ करता था। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों से समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने जहां एक तरफा जीत हासिल की, वहीं 2017 में भाजपा क्षेत्र की करीब 80 फीसदी सीटें हथिया ली। किसानों में प्रमुख पैठ रखने वाली आरएलडी को तो पश्चिमी यूपी में केवल एक सीट मिली। बाद में उसका विधायक भाजपा में शामिल हो गया था। पश्चिमी यूपी में अखिलेश और जयंत सबसे ज्यादा किसान उसमें भी जाट मतदाता और मुसलमान मतदाताओं से उम्मीद लगाए हुए हैं। उन्हें उम्मीद है कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बदले समीकरण का जो खामियाजा उठाना पड़ा था, उसे किसान आंदोलन ने बदल दिया है। और उसका उन्हें 2022 के चुनावों में फायदा मिलेगा।