- मजरूह सुल्तानपुरी 24 मई, 2000 को 80 साल की उम्र में रुख्सत हो गए।
- मजरूह सुल्तानपुरी, एक ऐसा गीतकार जो कभी मरीजों को दवा दिया करता था
- लेकिन एक मुशायरे ने उसे महान गीतकार बना दिया।
Majrooh Sultanpuri death Anniversary: 'मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया...' जैसे शेर लिखने वाले मजरूह सुल्तानपुरी 'रहें न रहें हम....महका करेंगे...बनके कली, बनके सबा...बाग़-ए वका में...' जैसे गीत लिखकर इस दुनिया से 24 मई, 2000 को 80 साल की उम्र में रुख्सत हो गए थे। आज उनकी पुण्यतिथि है। एक अक्टूबर 1919 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में एक पुलिस अधिकारी के यहां पैदा हुए मजरूह सुल्तानपुरी का उर्दू भाषा से बहुत लगाव था। उन्हें स्कूली शिक्षा से दूर रखा गया और दीनी तालीम के लिए मदरसे भेजा गया। मदरसे से मजरूह ने अरबी और फारसी की तालीम पाई। इसके बाद लखनऊ आकर यूनानी मेडिसिन की पढ़ाई शुरू की। कुछ समय तक उन्होंने मरीजों को दवाइयां भी दीं लेकिन उनकी कलम दिलों के दर्द की दवा देने को बेताब थी।
साल 1945 में मजरूह सुल्तानपुरी जिगर मुरादाबादी के साथ वह मुशायरे में शामिल होने मुंबई चले गए। मुशायरे में फिल्म जगत की तमाम हस्तियां पहुंची थीं, राशिद कारदार भी मौजूद थे। मजरूह साहब मंच पर आए और ऐसी शायरी पढ़ी कि हर कोई उनका दीवाना हो गया। मुशायरे के बाद राशिद कारदार ने जिगर मुरादाबादी से अपनी फिल्म शाहजहां के लिए गीत लिखने की पेशकश की तो जिगर ने मजरूह से लिखवाने की बात कह दी। फिल्म शाहजहां 1946 में रिलीज हुई और इसमें मजरूह साहब का पहला गाना 'जब दिल ही टूट गया...हम जी के क्या करेंगे...' शामिल हुआ। इस गीत का संगीत नौशाद ने दिया और इसे आवाज दी थी के.एस सहगल ने। सहगल ने कहा था कि जब वह मरें तो उनके अंतिम संस्कार में यही गीत बजे, हुआ भी ऐसा ही।
चाहे फिल्म बुढ्ढा मिल गया का गाना 'रात अकेली एक ख्वाब में आई' हो या कालिया फिल्म का गाना 'जहां तेरी ये नजर है' हो, सीआईडी फिल्म का गाना 'लेके पहला पहला प्यार' हो या हम किसी से कम नहीं फिल्म का गीत 'क्या हुआ तेरा वादा' हो, मजरूह सुल्तानपुरी ने ऐसे नगमे लिखे जो आज भी उतने ही प्यार के साथ सुने जाते हैं। मजरूह सुल्तानपुरी, एक ऐसा गीतकार जो कभी मरीजों को दवा दिया करता था लेकिन एक मुशायरे ने उसे गीतकार बना दिया। उसके बाद उनकी कलम से निकले ऐसे सदाबहार गीत जो आज भी अमर हैं।
मजरूह पहले ऐसे गीतकार थे, जिन्हें दादासाहब फाल्के सम्मान दिया गया। फिल्म दोस्ती के गीत 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे, फिर भी कभी अब नाम को तेरे..आवाज मैं न दूंगा..' के लिए दिया गया था। फिल्म दोस्ती के गाने 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ-सवेरे' के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने उनके नाम से डाक टिकट भी जारी किया था।
जो जीता वही सिंकदर फिल्म का फेमस गाना- पहला नशा, जिसे उदित नारायण, साधना सरगम ने आवाज दी, मजरूह सुल्तानपुरी ने ही लिखा था। वह ऐसे गीतकार थे जिनके गीतों ने मोहब्बत की गहराई बताई और हर इश्क करने वाले को उसे बयां करने की जुबां दी। दिग्गज गायक मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, लता मंगेशकर, आशा भोसले, शमशाद बेगम के वह प्रिय गीतकार थे। इन गायकों ने मजरूह सुल्तानपुरी के गानों को खूब आवाज दी है। मोहब्बत के गीत लिखने के लिए मजरूह सुल्तानपुरी मशहूर थे और बात में उदित नारायण, साधना सरगम ने भी उनके गीत गाए।