- 24 साल की उम्र में रवि गायक बनने के लिए मुंबई आ गए।
- घूमते-घूमते एक दिन मुलाकात निर्माता-निर्देशक देवेन्द्र गोयल से हुई।
- सबसे पहले आशा भोंसले के साथ गाय “चंदा मामा दूर के पुआ पकाये पूर के”
Ravi Shankar Sharma Biography: हिंदी सिनेमा के कई मशहूर गीतों को संगीतबद्ध करने वाले ऐसे संगीतकार थे रविशंकर शर्मा जिनके गीतों के बिना हर शादी अधूरी सी लगती है। लोकप्रिय गीत 'आज मेरे यार की शादी है', 'डोली चढ़ के दुल्हन ससुराल चली', 'मेरा यार बना दुल्हा…' और बाबुल की दुआएं लेती जा को अपने संगीत से अमर कर देने वाले संगीतकार रविशंकर शर्मा चार दशक तक अपनी आवाज से हर किसी को दीवाना बनाते रहे। रवि की आवाज में कुछ ऐसा जादू था कि ना जाने वो कितनों की शामों को गुलजार करते थे तो कितनों की रातों का सहारा बनते थे।
‘ऐ मेरी ज़ोहरा ज़बीं’ (वक़्त) जैसे गाने के बिना शायद ही कोई मेंहदी या संगीत जैसे कार्यक्रम पूरे होते हों। इस गाने को भी रवि ने संगीत दिया। रवि (रवि शंकर शर्मा) का जन्म 3 March 1936 को हुआ था। 24 साल की उम्र में वो गायक बनने के लिए मुंबई आ गए। यह पचास का दशक था। घूमते-घूमते एक दिन मुलाकात निर्माता-निर्देशक देवेन्द्र गोयल से हुई। गोयल ने फिल्म वचन में काम दिया और उन्होंने आशा भोंसले के साथ गाया गाना “चंदा मामा दूर के पुआ पकाये पूर के”। यह गाना जबरदस्त हिट हुआ। पहली फिल्म में रवि की आवाज को हर किसी ने पसंद किया लेकिन बॉलीवुड में मुकाम हासिल करने में उन्हें 5 साल लग गए।
इस गाने ने बदली जिंदगी
1960 में गुरूदत्त की क्लासिक फिल्म ‘चौदहवीं का चांद’ आई और इसके बाद रवि ने फिल्म इंडस्ट्री में बतौर संगीतकार अपनी जगह कायम कर ली। फिल्म में ‘चौदहवी का चांद हो या आफताब हो’, ‘बदले बदले मेरे सरकार नजर आते है’ जैसे उनके गानों ने सुनने वालों पर कमाल का जादू किया। रवि को अपने शानदार करियर और काम के लिए दो बार फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाजा गया। पहली बार 1961 में फिल्म ‘घराना’ के सुपरहिट म्यूजिक के लिए रवि को फिल्म फेयर मिला तो दूसरी बार 1965 में फिल्म ‘खानदान’ के लिये उन्हें फिल्म फेयर दिया गया।
काम को मिला सम्मान
रवि ने अपने चार दशक लंबे कॅरियर में करीब 200 फिल्मों और गैर फिल्मी गानों में संगीत दिया। उन्होंने कई हिन्दी और मलयालम फिल्मों के लिये संगीत रचना की। हिन्दी सिनेमा में सफल करियर के बाद, उन्होंने 1970 से 1982 तक के लिए अवकाश ले लिया। बाद में बॉम्बे रवि नाम के साथ उन्होंने सफल वापसी की। 1982 में उन्होंने निकाह फिल्म से वापसी की। इस फिल्म के लिये सलमा आगा को फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका पुरस्कार मिला था। रवि के बनाये गाने ‘तुम्हीं मेरे मंदिर’ के लिए ही लता को 1965 में सर्वश्रेष्ठ गायिका का फिल्मफेयर अवार्ड दिया गया था। उन्हें ‘सरगम’ (1992) और ‘परिनायम’ (1994) के लिए 2 बार मलयालम फिल्मफेयर अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया।
हिन्दी फिल्मों में उन्हें बलदेव राज चोपड़ा की फिल्मों में संगीत देने के लिये जाना जाता है। महेन्द्र कपूर को लोकप्रिय पार्श्व गायक बनाने में भी उनका योगदान था। इस वक्त वो साहिर लुधियानवी को गीतकार के रूप में लेते थे और उनकी जोड़ी ने कई यादगार गीत निर्मित किये हैं। उनकी अंतिम उल्लेखनीय फिल्म निकाह मानी जाती है जिसके गीत ‘दिल के अरमां आंसुओं में बह गए’ को संगीत प्रेमी काफी पसंद करते हैं। उन्होंने घर संसार, मेहंदी, चिराग, नई राहें, घूंघट, घराना, चाइना टाउन, आज और कल, गुमराह, गृहस्थी, काजल, खानदान, फूल और पत्थर, सगाई, हमराज, आंखें, नील कमल, बड़ी दीदी जैसी फिल्मों के गीतों को संगीत दिया। 7 मार्च 2012 उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।