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मुस्लिम होने के चलते मुकम्मल नहीं हुआ साहिर लुधियानवी का इश्क, टूटे दिल से ल‍िखा- अभी ना जाओ छोड़कर...

Updated Mar 08, 2022 | 18:17 IST

1949 में आई फ‍िल्‍म आजादी की राह पर के लिए पहली बार साहिर लुधियानवी ने गीत लिखे लेकिन उन्‍हें लोकप्रियता मिली फिल्म नौजवान से। इस फ‍िल्‍म का गाना 'ठंडी हवायें लहरा के आयें' बहुत लोकप्रिय हुआ!

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Sahir Ludhianvi
मुख्य बातें
  • मोहब्‍बत के गीत ल‍िखने के ल‍िए जाने जाने थे साहिर
  • 8 मार्च 1921 को लुध‍ियाना में पैदा हुए थे साहिर लुध‍ियानवी
  • साहिर ने हिंदी सिनेमा को समृद्ध बनाने का काम किया

Geetkar Ki Kahani Happy Birthday Sahir Ludhianvi: 8 मार्च 1921 में लुधियाना के एक जागीरदार घराने में पैदा हुए साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हयी साहिर था। पिता बहुत धनी थे लेकिन मां के साथ उनका अलगाव था। इस कारण साहिर को मां के साथ रहना पड़ा और बचपन गरीबी में गुजरा। लुधियाना के खालसा हाई स्कूल से साहिर ने शिक्षा ली। साहिर लुधियानवी, एक ऐसा गीतकार जिनके गीतों ने मोहब्‍बत की गहराई बताई और हर इश्‍क करने वाले को उसे बयां करने की जुबां दी। लंबे अंतराल तक साहिर लुधियानवी की कलम चली और उनकी कलम से निकले ऐसे सदाबहार गीत, जो आज भी गुनगुनाए जाते हैं।

1957 में आई नया दौर फ‍िल्‍म का गाना 'आना है तो आ' हो, 1976 में आई फ‍िल्‍म कभी कभी का गाना मैं पल दो पल का शायर हूं हो, 1970 की फ‍िल्‍म नया रास्‍ता का गाना ईश्‍वर अल्‍लाह तेरे नाम हो या 1961 की फ‍िल्‍म हम दोनों का गाना अभी ना जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं, ये गाने साहिर ने ही लिखे और हिंदी सिनेमा को समृद्ध बनाने का काम किया। 

1949 में आई फ‍िल्‍म आजादी की राह पर के लिए पहली बार साहिर ने गीत लिखे लेकिन उन्‍हें लोकप्रियता मिली फिल्म नौजवान से। इस फ‍िल्‍म का गाना 'ठंडी हवायें लहरा के आयें' बहुत लोकप्रिय हुआ! बाद में साहिर लुधियानवी ने बाजी, प्यासा, फिर सुबह होगी, कभी कभी जैसे लोकप्रिय फिल्मों के लिये गीत लिखे। सचिनदेव बर्मन के अलावा एन. दत्ता, शंकर जयकिशन, खय्याम आदि संगीतकारों ने उनके गीतों की धुनें बनाई हैं। 

अमृता प्रीतम से हुई मोहब्बत

कॉलेज के दिनों में अमृता प्रीतम से उनकी मुलाकात हुई और दोनों के बीच प्रेम हो गया। साहिर अपनी शायरी से कॉलेज में मशहूर थे और उनकी कलम का जादू अमृता प्रीतम पर भी हो गया। अमृता के घरवालों को ये रास नहीं आया कि उनकी बेटी एक मुस्लिम से प्‍यार करती है। अमृता के पिता के कहने पर उन्हें कालेज से निकाल दिया गया। जीविका चलाने के लिये उन्होंने छोटी-मोटी नौकरियां कीं। 1943 में साहिर लाहौर आ गये। लाहौर में वह एक मैगजीन के संपादक थे और इस मैगजीन में छपी एक रचना को सरकार के विरुद्ध मानकर पाकिस्तान सरकार ने उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया। इसके बाद 1949 में वे भारत आ गए। 

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उम्रभर नहीं की साहिर ने शादी

साहिर ने आजीवन विवाह नहीं किया। अमृता प्रीतम के बाद उन्‍हें सुधा मल्‍होत्रा से इश्‍क हो गया लेकिन वह भी असफल रहा। उनके जीवन की तल्खि‍यां इनके लिखे शेरों में झलकती है। फ़िल्मों के लिए लिखे उनके गानों में भी उनका व्यक्तित्व झलकता है। उनके गीतों में संजीदगी कुछ इस कदर झलकती है जैसे ये उनके जीवन से जुड़ी हों। साहिर वे पहले गीतकार थे जिन्हें अपने गानों के लिए रॉयल्टी मिलती थी। उनके प्रयास के बावजूद ही संभव हो पाया कि आकाशवाणी पर गानों के प्रसारण के समय गायक तथा संगीतकार के अतिरिक्त गीतकारों का भी उल्लेख किया जाता था।

सरकार ने पद्मश्री से नवाजा

साहिर लुधियानवी को भारत सरकार ने साल 1971 में पद्मश्री पुरस्‍कार ने नवाजा था। वहीं दो बार उन्‍हें फ‍िल्‍मफेयर पुरस्‍कार से नवाजा गया। साल 1964 में फ‍िल्‍म ताजमहल के गाने जो वादा किया, वो निभाना पड़ेगा के लिए और साल 1977 में कभी कभी फ‍िल्‍म के गाने 'कभी कभी मेरे दिल में ख्‍याल आता है' के लिए उन्‍हें फ‍िल्‍मफेयर पुरस्‍कार मिला था। साहिर आज हमारे बीच नहीं है लेकिन वह हमारे दिलों में और उनके गीत हमारे बीच हमेशा रहेंगे। 59 वर्ष की अवस्था में 25 अक्टूबर 1980 को दिल का दौरा पड़ने से साहिर लुधियानवी का निधन हो गया।

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