नई दिल्ली. डकार आने पर ज्यदातर लोग समझते हैं कि पेट भर गया और कुछ लोग इसे बदहजमी की शिकायत कहते हैं। लेकिन डकार आना बॉडी की क्रिया का एक हिस्सा है। कुकर में जैसे दाल या सब्जी पकाते समय गैस ज्यादा बन जाती है, तो सेफ्टी वॉल्व अपने आप सीटी देने लगता है, उसी तरह से पेट में इकट्ठा गैस आवाज के साथ जब मुंह व गले के सहारे बाहर निकलती है तो उसे डकार आना कहा जाता है।
ऐसे आती है डकार
जब हम खाना खाते हैं तभी से डकार की प्रोसेस शुरू हो जाती है। भोजन के साथ कुछ हवा पेट में प्रवेश कर जाती है। भोजन नली और पेट के बीच एक दरवाजा होता है जो भोजन करते समय खुल जाता है। भोजन के पेट में प्रवेश हो जाने के बाद यह खुद ही बंद हो जाता है। इससे पेट में कुछ हवा इकट्ठी हो जाती है।
लेमन सोडा आदि पेय पदार्थों के पीने से भी पेट में ज्यादा गैस पैदा हो जाती है, जिससे शरीर के कंट्रोल रूम रूपी मस्तिष्क बेकार गैसों को बाहर निकालने का आदेश दे देता है। इसके बाद कुछ मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं जिससे भोजन नली में छाती और पेट के बीच बना दरवाजा कुछ देर के लिए खुल जाता है। वायु गले और मुंह से होती हुई बाहर आती है जिसे डकार आना कहा जाता है।
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इसलिए डकार में आती है आवाज
पेट में इकट्ठी हवा जब भोजन नली में आती है तो एक तरह का कंपन करने लगती है जो गले और मुंह से बाहर निकलने पर आवाज करती है। अगर पेट की वायु बाहर निकलने पर कंपन न करे तो आवाज नहीं होगी, जो असंभव है क्योंकि यह स्वाभाविक शारीरिक क्रिया है।
होती है बेचैनी
गैस्ट्रो सर्जन डॉ आरवी सिंह के मुताबिक अगर डकार न आए यानी मस्तिष्क पेट में एकत्रित गैस को बाहर निकालने के लिए आदेश देने में कुछ देरी कर रहा है तो हमें बेचैनी होने लगती है। पेट में अक्सर दर्द की शिकायत रहने लगती है।
भूख कम लगने लगती है। पाचन क्रिया शिथिल पड़ जाती। शरीर थका हुआ और कमजोरी की शिकायत होने लगती है। डकार का आना शारीरिक क्रिया का एक अंग है। गैस होने के बावजूद डकार न आने पर कई तरह की दिक्कतें भी हो सकती हैं।