- वयस्कों की तुलना में बच्चों में कोरोना संक्रमण का खतरा कम देखने में आ रहा है
- सीडीसी की रिपोर्ट के मुताबिक तमाम एहतियात बरतने के बाद भी स्कूलों में हो सकता है कोरोना का प्रसार
- स्कूल प्रशासन व अभिभावकों को शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइन करना होगा फॉलो, लापरवाही देखे जाने पर की जाएगी सख्त कार्रवाई
ठीक एक साल पहले कोरोना के भयावह प्रकोप के कारण भारत ने पूरी तरह तालाबंदी कर दी थी। जिससे स्कूल, कॉलेज, रेस्टोरेंट, ऑफिस और सार्वजनिक संस्थानों को पूरी तरह बंद कर दिया गया था। लेकिन एक बार फिर सभी चीजें दोबारा खुलने लगी है, ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि क्या स्कूल कॉलेज और इंस्टिट्यूट को फिर से खोलना चाहिए या नहीं? इस बात को लेकर दुनिया भर में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में आइए जानते हैं क्या फेस मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग औऱ कोरोना के प्रति तमाम एहतियात के जरिए स्कूल में कोरोना के भयावह प्रकोप से बच्चों को बचा सकते हैं या नहीं।
वयस्कों की तुलना में बच्चों के संक्रमित होने का खतरा होता है कम
कोरोना के प्रति एहतियात बरतकर हम इसके प्रकोप से बच सकते हैं। जी हां हाल ही में एक अध्ययन के दौरान पाया गया कि स्कूल कॉलेज और अन्य शैक्षणिक संस्थान में फेस मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य एहतियात बरतने से बच्चों और स्कूल के कर्मचारियों के बीच कोरोना के फैलाव को रोका जा सकता है।
आपको बता दें एक अध्ययन के मुताबिक वयस्कों की तुलना में बच्चों में कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा कम होता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च(ICMR) के अनुसार जब भारत में 97 लाख लोग कोरोना वायरस के चपेट में थे, तब तगभग 12 प्रतिशत संक्रमितों में 20 साल से कम उम्र के बच्चे शामिल थे। जबकि 88 प्रतिशत संक्रमितों में 20 साल के युवा व इससे अधिक उम्र के लोग थे।
बच्चों में क्यों होता है कोविड का खतरा कम
शोध के मुताबिक कोरोना वायरस का खतरा शरीर की बनावट के आधार पर निर्भर करता है। वयस्कों की तुलना में बच्चों में कोविड के संकुचन औऱ इससे होने वाली मृत्यु का खतरा इसलिए कम होता है क्योंकि बच्चों की नाक में मौजूद एपिथिलियम टिशु में कोरोना वायरस के लिए मददगार रिसेप्टर ACE2 की मात्रा बहुत कम होती है। यह रिसेप्टर इंसान के शरीर में उम्र के साथ बढ़ता है। इसलिए वयस्कों की तुलना में बच्चे इससे कम संक्रमित होते हैं।
क्या बच्चे नहीं हो सकते कोरोना से संक्रमित
बच्चों में वयस्कों की तुलना में कोरोना के संक्रमण का खतरा कम होता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चे कोरोना संक्रमित हो ही नहीं सकते। सीडीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक देखा गया है कि जिन बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है औऱ सांस से संबंधित कोई परेशानी या बीमारी होती है उनमें इसके संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में बच्चों की देखभाल अधिक करनी चाहिए और कोरोना के लक्षण दिखने पर नजरअंदाज ना करें अन्यथा यह भयावह रूप धारण कर सकता है।
क्या स्कूल में बच्चे होंगे सेफ, क्या कहती है सीडीसी की रिपोर्ट?
एक साल बाद भी कोरोना का भयावह प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा दिन प्रतिदिन इसके संक्रमितों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है। ऐसे में यह देखते हुए कि वच्चों में वयस्कों की तुलना कोरोना संक्रमण का खतरा कम है दुनिया भर में स्कूल व कॉलेज खुलने लगे हैं और माता पिता भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार हैं। लेकिन इसको लेकर बेहद चिंतित भी हैं। यूएस सेंटर डिसीज एंड प्रिवेंशन (CDC) की एक रिपोर्ट के मुताबिक आपको बता दें मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ तमाम एहतियात बरतने के बाद भी कोरोना का प्रसार स्कूल में हो सकता है।
गाइडलाइन को फॉलो कर स्कूल में क्या रोका जा सकता है कोरोना का फैलाव?
अमेरिकी राज्य मिसौरी द्वारा किए गए पायलट अध्ययन के अनुसार पैटनविले जिले के 57 स्कूलों के आंकणों को देखा गया। इस अध्ययन के दौरान सभी स्कूल के बच्चों औऱ कर्मचारियों को फेस मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और कोरोना प्रति तमाम एहतियात बरतने कि लिए कहा गया। इस शोध के मुताबिक कोरोना प्रति सभी गाइडलाइन को फॉलो कर हम स्कूल में इसके फैलाव को रोक सकते हैं।
अध्ययन के शोधकर्ताओं में से एक जेसन न्यूलैंड के अनुसार स्कूल कोरोना महामारी के रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
स्कूल खुलने के बाद कैसा होगा माहौल
लॉकडाउन के बाद एक बार स्कूल फिर से खुल रहे हैं। लेकिन स्कूल खुलने के बाद अब पहले जैसा माहौल नहीं देखा जाएगा। इसके लिए शिक्षा मंत्रालय ने आवश्यक दिशा निर्देश जारी किए हैं। जिसके अनुसार माता पिता अपनी सहमित के बाद ही बच्चों को स्कूल भेज सकते हैं। स्कूल प्रशासन बच्चों या फिर अभिभावक पर कोई दबाव नहीं बना सकता। तथा माता पिता को अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने और ले जाने के लिए अपने निजी परिवहन का इस्तेमाल करना होगा। स्कूल में सभी के लिए मास्क पहनना अनिवार्य होगा, बार बार सैनेटाइज करना और सोशल डिस्टेंश भी जरूरी होगा। इसके अनुसार बच्चों को एक दूसरे से छह फुट की दूरी पर बैठना होगा। बच्चों को आपस में नोटबुक, टिफिन या अन्य चीजों को साझा करना सख्त वर्जित कर दिया गया है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी दिशा निर्देशों के अनुसार यदि स्कूल प्रशासन की तरफ से कोई भी लापरवाही देखी जाती है तो स्कूल के प्रति सख्त कार्रवाई की जाएगी।
(टाइम्स ऑफ इंडिया से साभार)