नई दिल्ली: अल्जाइमर एक दिमागी रोग है। इस रोग में पीड़ित व्यक्ति की मेमोरी,याददाश्त कमजोर होने लगती है। इसकी पूरा असर उस व्यक्ति के दिमागी कामकाज पर पड़ता है। ज्यादातर यह बीमारी मध्यम उम्र या फिर वृद्धावस्था में होती है। इस बीमारी में व्यक्ति के सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो जाती है और उसे पता भी नहीं होता कि वह अमुक वक्त में क्या कर रहा है। मसलन इस बीमारी में व्यक्ति को यह भी याद नहीं रहता है कि वह बैठा हुआ है या फिर सो रहा है जिसका सीधा असर व्यक्ति के रोजाना के कामकाज पर पड़ता है। व्यक्ति की याददाश्त इस बीमारी में खोने लगती है और यह स्थिति धीरे-धीरे गंभीर होती चली जाती है अगर समय पर इलाज नहीं कराया गया तो।
अल्जाइमर रोग खास तौर पर बुजुर्गों को प्रभावित करता है। इसे डिमेंशिया के नाम से भी जाना जाता है। अल्जाइमर रोग में दिमाग के ऊतकों को नुकसान पहुंचने लगता है। इस बीमारी में दिमाग की कोशिकाएं डी-जेनेरेट होती है। अगर इस बीमारी को समय रहते ना पहचाना गया या फिर इसकी रोकथाम के उपाय नहीं किए जाते हैं तो हालात और खराब होते चले जाते है। इसलिए इस बीमारी को उचित समय पर उसका यथोचित इलाज जरूरी होता है। यह बीमारी हेरीडेट्री, डिप्रेशन ,सर में लगी गहरी चोट, हाई बल्ड प्रेशर या फिर मोटापे की वजह से हो सकता । शब्दों को दोहराना,बेचैनी, चिड़चिड़ापन,भूलना,मूड में बदलाव,अकेलापन आदि इस बीमारी में होते है। इस बीमारी की पहचान एक न्यूरोलॉजिस्ट करता है।
अल्जाइमर जिस व्यक्ति को होता है उसके लक्षण के तौर पर पीड़ित व्यक्ति में चीजों को भूलना,सोचने-समझने में मुश्किल होना, मानसिक रुप से भ्रमित होना, एकाग्रता में कमी का आना, चीजों को नहीं समझ पाना, लोगों को पहचानने में मुश्किल होना आदि होता है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को यह समझ में नहीं आ पाता कि उसके साथ क्या हो रहा है। सही समय पर फैसला नहीं ले पाना, बोलने में दिक्कत होना और चीजों को समझने में परेशानी का सामना करना ये सब अल्जाइमर रोग से पीड़ित व्यक्ति को सामना करना पड़ता है।
इसलिए याददाश्त को बढ़ाने के लिए जानकारों के मुताबिक ड्राई फ्रूट जरूर खाना चाहिए। दिमाग को सक्रिय बनाए रखने के लिए मौसमी फल, स्ट्रॉबेरी और ब्लूबेरी आदि का सेवन करना चाहिए। साथ ही ब्रोकली का सेवन करने से दिमाग तेज होता है। एक रिसर्च के मुताबिक बढ़ती उम्र में भी जो लोग अपना काम खुद करते हैं उन्हें यह बीमारी होने का खतरा काम होता है। खुद काम करने से दिमाग सक्रिय रहता है और इस बीमारी के होने का अंदेशा नहीं होता है। साथ ही जो व्यक्ति अपने जीवन में जितना सक्रिय होता है उतना ही उसका दिमाग वृद्धावस्था में भी सक्रिय रहता है।
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