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प्रेग्नेंसी में बीपी का बढ़ना मां ही नहीं शिशु के लिए भी है खतरनाक, जा सकती है जान

Updated Sep 10, 2019 | 16:04 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

हाई बीपी और ब्लड शुगर का बढ़ना प्रेग्नेसी को और जटिल बना देता है। इस दौरान बीपी पर नजर रखना बहुत जरूरी होता है।

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तस्वीर साभार:&nbspThinkstock
Pregnancy
मुख्य बातें
  • सी-सेक्शन की वजह हाई बीपी बनता है
  • शिशु ही नहीं मां के अंग डैमेज हो सकते हैं
  • शिशु को नहीं मिल पाता पर्याप्त ऑक्सीजन

प्रेग्नेसी में कई बार थॉयराइड का बढ़ना, डायबिटीज और हाई बीपी कि समस्याएं हो जाती हैं। हालांकि ये समस्या डिलेवरी के बाद ठीक भी हो जाती है, लेकिन पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान इस बीमारी से मां ही नहीं बच्चे को भी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लापरवाही या इलाज में कोताही से कई बार मां या शिशु दोनों को ही जान का खतरा तक उठाना पड़ता है। हाई बीपी का होना किसी भी सूरत में सही नहीं होता और खास कर प्रेग्नेंसी में इसका होना ज्यादा सतर्कता मांगता है।

पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान बीपी पर नजर बनाए रखना बहुत जरूरी होता है क्योंकि ये कई बार मां के कुछ अंगों के डैमेज होने तक का खतरा रहता है। हाई ब्लड प्रेशर के कारण दिल ही नहीं किडनी पर भी बेहद दबाव पड़ता है जिसके कारण हार्ट स्ट्रोक, कडिनी फ्लेयोर या ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में शिशु को भी बेहद नुकसान उठाना पड़ता है। इतना ही नहीं कई और समस्याएं हाई बीपी के कारण हो सकती हैं। आइए जानें क्या खतरे पैदा कर सकता है हाई बीपी प्रेग्नेंसी में।

गर्भावास्था में हाई बीपी है खतरे का संकेत

प्रीक्लेम्पसिया : इसमें बीपी के हाई होते ही कडिनी और लिवर काम करना बंद कर देते हैं। इससे ब्रेन तक डैमेज हो सकता है। या कई बार मां कोमा तक में चली जाती है। इसलिए हाई बीपी डिटेक्ट होते ही हमेशा डॉक्टर के टच में रहना जरूरी होगा।

प्री-मेच्योर डिलेवरी : हाई बीपी यदि अधिक हो तो इससे गर्भ में पल रहे शिशु की धडकन पर भी असर पड़ता है। प्रीक्लेमपसिया होने पर कई बार प्री-मेच्योर डिलेवरी तक हो जाती है अथवा शिश को हो रहे खतरे को देखते हुए डॉक्टर्स को सी सेक्शन तक करना पड़ता है।

शिशु का डवलमेंट होता है बाधित : हाई बीपी का तीसरा बड़ा प्रभव बच्चे के विकास पर पड़ता है। जिस तरह से शिशु का डवलपमेंट होना चाहिए उस तरह नहीं होने पाता। सही मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिलने से उसके इंटरनल डवलपमेंट भी प्रभावित होते हैं। कई बार दिमाग पूरा विकसित नहीं होने पता या जन्म के समय वजन बेहद कम होता है।

ब्लीडिंग होना : बीपी ज्यादा होने के कारण प्लेसंटा यूट्रेस से अलग होने लगता है। इससे गर्भ में पल रहे शिशु को न तो पर्याप्त पोषण मिलता है न ऑक्सीजन। इसे मां केा ब्लीडिंग होना भी शुरू हो जाती है और मिसकैरेज का खतरा बढ़ जाता है।

सी-सेक्शन डिलिवरी : हाई बीपी में शिश यदि नार्मल पोजिशन में हो तो भी सी सेक्शन डिलेवरी ही कि जाती है क्योंकि डिलेवरी के समय दर्द और पुश करने से शरीर के कई अंग पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रेग्नेंसी के दौरान प्रॉपर चेकअप कराना बहुत जरूरी है। यदि हाई बीपी है तो डॉक्टर के बताए गए सलाह को गंभीरता से पालन करें।

डिस्क्लेमर: प्रस्तुत लेख में सुझाए गए टिप्स और सलाह केवल आम जानकारी के लिए हैं और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जा सकता।

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