Hormonal problems: वेट बढ़ना आम बात है, लेकिन ये अगर अचानक से बढ़े या बेहिसाब बढ़ता जाए तो कहीं न कहीं इसके पीछे गंभीर वजह होती है। खाने-पीने से वजन धीरे-धीरे बढ़ता है लेकिन अगर किसी बीमारी या हार्मोन्स की दिक्कत हो तो वेट बढ़ने की गति बहुत तेज होती है। इसलिए अगर वेट बढ़ रहा हो तो आप अपने खाने का हिसाब-किताब ही नहीं बल्कि अपने सेहत की जांच भी कराने से न चूकें।
ये समझने की जरूरत है कि कई बार वेट उनके भी बढ़ने लगता है क्योंकि इसके पीछे कारण हार्मोन्ल होते हैं। हार्मोन्स के असंतुलित होने से ये दिक्कत होती है। हालांकि हार्मोन्स के असंतुलित होने से केवल वेट ही नहीं बढ़ता बल्कि इससे बाल झड़ना, स्किन का ड्राई होना, मूड में बदलाव जैसे लक्षण भी नजर आने लगते हैं। तो आइए आज कुछ ऐसे ही लक्षणों को जाने जो हार्मोन्स के में होने वाली गड़बड़ी का मुख्य कारण हैं।
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अगर ऐसा है तो करा लें जांच
क्या आप अब ज्यादा सोच में डूबे रहते हैं? बात-बात में गुस्सा या चिड़चिड़ापन नजर आने लगा है? क्या अचानक से आप महत्वूपर्ण बातें भी भूलने लगे हैं। क्या आपको शोर से दिक्कत है? आप अकेले रहना चाहते हैं? क्या आपकी सेक्स से रुचि कम होने लगी है। आपको खाना अच्छा नहीं लगता या बहुत ज्यादा खाने का मन करने लगा है? क्या आप बार बार मीठा खाना चाहते हैं? आपको नींद ज्यादा या कम आ रही है? आदि। अगर आपको ऐसे लक्षण नजर आएं तो आपको डॉक्टर से मिलने की जरूरत है।
ऐसे पहचानें हार्मोन्स बदलाव के लक्षण
हॉर्मोनल असंतुलन होने पर असामान्य बॉडी शेप, गर्दन के पास स्किन पिग्मेंटेशन, असामान्य हेयर ग्रोथ, बालों का रूखा और बेजान होना, बाल झड़ना, नाखूनों का रंग असामान्य होना, उनमें सफेद धब्बे दिखना, त्वचा का रूखापन और झाइयां, कमर की माप बढ़ते जाना और हिप एरिया में फैट का अत्यधिक जमाव, असामान्य बीएमआइ, मूड स्विंग और डिप्रेशन के लक्षण नजर आने लगते हैं।
खुद करें प्रयास
हर्मोन्स में गड़बड़ी का एक बड़ा कारण तनाव होता है। सबसे पहले अपने तनाव का कम करना सीखें। अगर आपके दिमाग पर दबाव होगा तो वह कई ऐसे हार्मोन्स सिक्रिट करेगा जो सेहत के लिए सही नहीं। इतना ही नहीं ऐसे हार्मोन्स का स्राव कम कर देगा तो आपकी सेहत के लिए बेहतर होते हैं। इसलिए तनाव न होने दें। दबाव बढ़ने से सबसे पहला असर डाइजेशन पर पड़ता है और इससे खानपान में पौष्टिक तत्वों की कमी से भी टिश्यूज का क्षरण होता है, जिससे इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (आइबीएस) और पेप्टिक अल्सर जैसी बीमारियां पनपने लगती हैं।
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टॉक्सिन भी हैं जिम्मेदार
टॉक्सिन कम करना होगा ताकि सही तरीके से सो सकें और जाग सकें। इंडस्ट्रियल केमिकल्स जैसे कीटनाशक, परफ्यूम्स, कृत्रिम रंग, फ्लेवरिंग्स और प्लास्टिक शरीर पर बुरा प्रभाव डालते है। इसका असर स्त्रियों के साथ ही पुरुषों पर भी दिखता है। इनमें से कई केमिकल्स एंडोक्राइन सिस्टम में बाधा पहुंचाते हैं, जिससे हॉर्मोंस प्रभावित होते हैं और शरीर में अधिक फैट जमने लगता है।
इनसे भी डिस्टर्ब होता है हार्मोन्स
यह केमिकल कंपाउंड्स का एक ग्रुप है, जो कई घरेलू सामानों जैसे वॉटर बॉटल्स, साबुन, शैंपू, कॉस्मेटिक्स, प्लास्टिक कंटेनर्स, खिलौनों, पाइप और दवाओं में पाया जाता है। अन्य टॉक्सिंस के साथ इनका ज्य़ादा संपर्क ओवरी के फंक्शन और स्पर्म की गतिशीलता को डिस्टर्ब करते हैं। यही कारण है कि प्यूबर्टी के लक्षण भी जल्दी नजर आने लगते हैं।
टॉक्सिन क्लींजिंग टीम
लिवर, किडनी और छोटी आंत शरीर के नेचुरल क्लींजर माने जाते हैं। ये शरीर के टॉक्सिंस को बाहर निकालने में मिलकर काम करते हैं। अगर हार्मोन्स डिस्टर्बेंस हो तो ये भी काम सही तरीके से नहीं कर पाते। इससे भी कई समस्या होने लगती हैं। लीवर भी काम करना बंद कर देता है।
इसलिए याद रखें हार्मोन्स शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिए जरूरी हैं लेकिन इससे भी जरूरी है इनका बैलेंस होना। अगर शरीर में कुछ भी इनसे रिलेटेड दिक्कत नजर आए तो बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करें।
Note : हम यहां मौजूद तथ्यों की पुष्टि नहीं करते हैं। साथ ही सेहत को लेकर कोई भी प्रयोग करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
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