- कत्थे में एंटीफंगल गुण होते हैं
- कत्था खून साफ करने का काम करता है
- मुंह के छालों के लिए कारगर है
भारत में खाना खाने के बाद पान खाने का प्रचलन है। मीठा पान भोजन का लुत्फ और बढ़ा देता है। पान स्वाद ही नहीं, सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है। वहीं पान के साथ कत्था भी खाया जाता है। इसके अपने अलग फायदे हैं। यही कत्था पान खाते वक्त आपके होंठो को लाल करता है। लेकिन इसके अलावा कत्थे की एक और प्रजाति होती है जिसे सफेद कत्थे के रूप में जाना जाता है। इसे औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
क्या होता है कत्था
कत्था, खैर के पेड़ की लकड़ी से निकाला जाता है। कत्थे का पेड़ बिहार, राजस्थान, गुजरात के जंगलों में पाया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार कत्था, ठंडा, कड़वा, तीखा व कसैला होता है। यह कुष्ठ रोग, मुख रोग, मोटापा, खांसी, चोट, घाव, रक्त पित्त आदि को दूर करता है। मगर हां, कत्थे का अधिक सेवन करने से नपुंसकता भी हो सकती है। इसके अलावा कत्थे के अधिक सेवन से किडनी स्टोन भी बनता है।
कत्थे के प्रकार
सफेद कत्था औषधि और लाल कत्था पान में प्रयोग किया जाता है। पान में लगाया जाने वाला कत्था बीमारियों को दूर करने के लिये प्रयोग ना करें।
कत्थे के फायदे
- मलेरिया बुखार होने पर कत्था एक बेहतर औषधि के रूप में काम करता है। जी हां, समय-समय पर इसकी समान मात्रा में गोली बनाकर चूसने से मलेरिया से बचाव किया जा सकता है।
- अगर आप लगातार खांसी से परेशान हैं, तो कत्थे को हल्दी और मिश्री के साथ एक-एक ग्राम की मात्रा में मिलाकर गोलियां बना लें। अब इन गोलियों को चूसते रहें। इस प्रयोग को करने से खांसी दूर हो जाती है।
- पेट खराब होने या दस्त लगने की समस्या में कत्थे का इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है। कत्थे को पकाकर या पानी में उबालकर लेने से दस्त में राहत मिलती है। इसके अलावा पाचन संबंधी समस्याओं में भी कत्था काफी फायदेमंद होता है।
- दांत संबंधी किसी भी प्रकार की समस्या में कत्थे के चूर्ण को मंजन में मिलाकर प्रयोग करने से लाभ होता है। इस के अलावा कत्थे के चूर्ण को सरसों के तेल के साथ मिलाकर मंजन करने से भी बहुत लाभ होता है।
- किस प्रकार की चोट लगने पर घाव हो जाए, तो उसमें कत्थे को बारीक पीसकर इस चूर्ण को डाल दें। लगातार ऐसा करने पर घाव जल्दी भर जाता है और खून का निकलन भी बंद हो जाता है।
कत्थे के नुकसान
- पथरी का खतरा : कत्थे का ज्यादा उपयोग नुकसान भी करता है। इसे ज्यादा खाया जाए तो पथरी हो सकती है।
- किडनी स्टोन : कत्थे का ज्यादा इस्तेमाल किडनी स्टोन का कारण बन सकता है।
- नपुंसकता का कारण : इतना ही नहीं,पुरुषों में कत्थे का अत्यधिक सेवन नपुंसकता का कारण बन सकता है।
कत्थे को बनाया कैसे जाता है
खैर बबूल की प्रजाति का ही पेड़ है। इसकी टहनियां पतली व सीकों के जुड़ी होती हैं, जिसमें छोटे-छोटे पत्ते लगते हैं। कत्थे की टहनियां कांटेदार होती हैं। इसके फूल छोटे व सफेद या हल्के पीले रंग के होते हैं। पेड़ की छाल आधे से पौन इंच मोटी होती है और यह बाहर से काली भूरी रंग की और अंदर से भूरी रंग की होती है। जब इसके पेड़ के तने लगभग एक फुट मोटे हो जाते हैं तब इसे काटकर छोटे-छोटे टुकडे़ बनाकर गर्म पानी में पकाया जाता है।
गाढ़ा होने के बाद इसे चौकोर बर्तन में सुखाया जाता है और वहीं इसे काटकर चौकोर टुकड़ों में काट लिया जाता है। इसे कत्था कहते हैं। पान की दुकान वाले इसे किसी बर्तन में रखकर पानी के साथ मिलाते हैं और फिर पान के पत्तियों पर लगा कर परोसते हैं।
(डिस्क्लेमर: प्रस्तुत लेख में सुझाए गए टिप्स और सलाह केवल आम जानकारी के लिए है, इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जा सकता। कोई भी स्टेप लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श जरूर कर लें।)