- लंग्स में ऑक्सीजन और कार्बन डाइ ऑक्साइड में एक्सचेंज होता रहता है
- एयर सैक में वातावरण से ऑक्सीजन पहुंचता है और बाद में रक्त कोशिकाओं के जरिए पूरी शरीर में
- लंग्स में इंफेक्शन की वजह से एयर सैक सही से काम करना बंद कर देते हैं
आप फेफड़े यानि लंग्स के महत्व को तब तक नहीं समझ सकते हैं जब तक आपको सांस लेने में परेशानी ना हो। कोरोना काल में हम अक्सर इस तरह की खबरों से दोचार हो रहे हैं कि लोगों का ऑक्सीजन स्तर कम हो गया है या सांस लेने में दिक्कत महसूस हो रही है, सांस लेने में दिक्कत से मतलब यह है कि आपका फेफड़ा सहीं ढंग से काम नहीं कर रहा है। इसका अर्थ यह है कि फेफड़ा सही तरह से रेस्पिरेशन की प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पा रहा है। फेफड़े की शरीर भूमिका समझने से पहले फेफड़ों के बारे में समझना जरूरी है।
सांस के लिए लंग्स और रेस्पिरेटरी सिस्टम का होना जरूरी
लंग्स और रेस्पिरेटरी सिस्टम के जरिए ही हम सांस ले पाते हैं। इसके जरिए ऑक्सीजन हमारी शरीर में दाखिल होता है जिसे इंहेलेशन या इंस्पिरेशन कहते हैं और इसके बदले में शरीर से कार्बन डाइ आक्साइड बाहर निकलती है जिसे एक्सपिरेशन या एक्सहेलेशन कहते हैं। लंग्स के जरिए ऑक्सीजन और कार्बन डाई आक्साइड की अदला बदली होती रहती है। फेफड़ा छाती के दोनों तरफ होता है जो स्पंजी होती है जिसमें हवा से भरी ट्यूब्स होते हैं
इस तरह से काम करता है लंग्स
लंग्स में एयर सैक के चारों तरफ रक्त कोशिकाएं होती हैं जिसे कैपिलरी कहते हैं। जब हम ऑक्सीजन को लेते हैं तो वो एयर सैक के जरिए रक्त कोशिकाओं में पहुंचती है,इसे डिफ्यूजन कहा जाता है और इस तरह से ऑक्सीजन पूरी शरीर में पहुंच जाता है। लेकिन लंग्स में किसी तरफ का इंफेक्शन होने पर एयर सैक अच्छी तरह से काम नहीं कर पाते और उसका असर यह होता है कि ऑक्सीजन पूरी तरह से शरीर को नहीं मिल पाता है।
फेफड़ों से जुडे़ सामान्य रोग
अस्थमा, लंग्स का पूरी तरह या आंशिक तौर पर खराब होना जिसे न्यूमोथोरैक्स या एटलेक्टैसिस कहते हैं।
ब्रोंकियल ट्यूब में सूजन आना जो ऑक्सीजन को फेफड़ों तक ले जाती है।
लंग इंफेक्शन
लंग कैंसर
सीओपीडी
कोरोना काल में लंग्स में संक्रमण आम बात
कोरोना संक्रमण की वजह से इस समय लंग्स में इंफेक्शन की समस्या आम बात है। जब किसी मरीज में लंग्स में इंफेक्शन फैल जा रहा है तो उसकी शरीर में ऑक्सीजन के स्तर में कमी आ जा रही है और उसे कृत्रिम तरीके से ऑक्सीजन देना पड़ रहा है। लेकिन हालात बिगड़ने पर मरीज के सामने बचने की संभावना कम हो जाती है क्योंकि एक तरह से वो सेप्टीसेमिया का शिकार हो जाता है।