- जम्मू कश्मीर में दिखी भाईचारे की अद्भुत मिसाल
- 112 साल के कश्मीरी पंडित की शवयात्रा में मुसलमानों की जुटी भीड़
- कश्मीरी पंडित के शव को मुसलमान भाईयों ने दिया कंधा
श्रीनगर : आतंकी गतिविधियों से लहुलुहान जम्मू कश्मीर में गुरुवार को 112 साल के एक कश्मीरी पंडित के निधन के बाद वहां पर एक सुखद नजारा दिखा। दशकों से खूनखराबे का दंश झेल रहे इस कश्मीरी पंडित के निधन के बाद उसकी शव यात्रा के दौरान लोगों के बीच सौहार्द दिखा। कांथ राम टिक्कू उर्फ काक अब्बा के शव यात्रा में हिंदुओं से ज्यादा संख्या मुस्लिमों की दिखी।
उनकी इस अंतिम यात्रा में काफी दूर तक पैदल चलकर दोनों समुदायों के लोग शोपियां तक गए जहां पर उन्हें अंतिम संस्कार किया जाना था। करीब आधे किलोमीटर तक शव को टोपी पहने हुए मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कंधा दिया। यह बेहद सुखद नजारा गुरुवार घाटी में दिखा जो दोनों समुदायों के बीच सौहार्द की नई मिसाल पेश कर रहा था।
55 वर्षीय मुबारिक अहमद ने कहा कि अब्बा इलाके के सबसे पुराने व्यक्ति थे, वह हमारे बीच सबसे सम्माननीय व्यक्ति थे। हमारे बीच जाता, पात, लिंग भेद जैसी कोई बात नहीं थी। कांथ राम के बेटे रमेश टिक्कू ने कहा कि अंतिम यात्रा में शामिल हुए लोगों को देखकर हम भावुक हो गए हैं। हमारे पड़ोस में एक भी ऐसा मुस्लिम परिवार नहीं है जिनसे हमारे पिता को सम्मान नहीं मिला।
उनके शव यात्रा में ही ये पता चल गया कि वे लोगों के बीच कितने सम्माननीय थे। हमारे पास बोलने को शब्द नहीं है। जानकारी के मुताबिक रमेश अपने पिता के साथ 1990 के दशक से ही जैनपुरा में रह रहे हैं। उस दौरान घाटी में काफी हिंसा फैली थी। रमेश ने बताया कि पिताजी को कभी भी यहां रहने का अफसोस नहीं हुआ।
उसने बताया कि मैं यहां पर दवाईयों की दुकान चलाता हूं और मुझे याद नहीं है कि मुझे कभी भी मेरे बिजनेस को लेकर किसी प्रकार की कोई धमकी मिली हो।