- बताया जाता हैं कि प्रधानमंत्री नेहरु का वो भाषण औपचारिक तौर पर हार का संकेत था
- नेहरु का भाषण सुनने के बाद एक ही रात में पूरा शहर खाली हो गया
- तेजपुर के लोगों ने जब ये भाषण सुना तो वो रातों-रात वहां से निकल गए
नई दिल्ली: भारत-चीन के रिश्ते मधुर तो छोड़िए कभी सामान्य भी नहीं हो सकते। इसका कारण है चीन की घटिया युद्ध नीति। इतिहास के पन्नों को जब भी पलटा जाता है, भारत के प्रति चीन की धोखेबाजी, चालबाजी और कायरता ही सामने आती है। वर्ष 1962 के युद्ध में चीन सिर्फ लद्दाख ही नहीं उत्तर-पूर्व में भी अपनी जोर आजमाइश कर रहा था।
उस साल असम की दशा बेहद दयनीय थी। खासतौर पर असम राज्य के वो इलाके जो सीमा से सटे थे। 1962 की लड़ाई को पांच दशक से अधिक हो चुका है, लेकिन आज भी असम का तेजपुर टाउन देश के पहले प्रधानमंत्री को माफ नहीं कर पाया है। आखिर ऐसा क्या कह दिया था जवाहर लाल नेहरू ने कि एक ही रात में पूरा गांव खाली हो गया।
ऐसा क्या हुआ उस रात, जो वीरान हो गया पूरा शहर
भारत-चीन सीमा के काफी करीब बसा तेजपुर शहर 62 के युद्ध के समय डर के साए में जी रहा था। वहां के लोगों को मन ही मन ये डर सताता रहता कि न जाने कब चीन उन पर हमला कर दे और उन्हें बंदी बना ले। बासठ की लड़ाई का वो एक महीना असम के लोगों के लिए किसी काल से बढ़कर था। तेजपुर में भारतीय सेना की संख्या बहुत कम थी। धीरे-धीरे चीनी सैनिकों का हौसला बढ़ता जा रहा था और गोले-बारूद की आवाज यहां के लोगों की नींद उड़ाने के लिए काफी थी। देश के प्रधानमंत्री के एक भाषण ने शहरवासियों को शहर छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।
उस भाषण में नेहरु ने क्या कहा ?
‘असम खतरे में हैं...हम उन्हें तकलीफ से नहीं बचा सकेंगे’। देश के प्रधानमंत्री के भाषण में जब इस तरह के वाक्य हों, तो वहां की जनता का क्या हाल होगा, इसे आज भी बखूबी समझा जा सकता है। देश को आजाद हुए कुछ ही साल बीते थे ऐसे में चीनी सैनिकों का लगातार भारत पर हमलावर होना लोगों के मन में डर पैदा कर रहा था। कई जगह छपी खबरों के मुताबिक नेहरू द्वारा उस समय दिया गया भाषण औपचारिक रूप से हार का संकेत था। तेजपुर के लोगों ने जब ये भाषण सुना तो वो रातों-रात वहां से निकल गए। पूरा शहर वीरान हो गया।
'इस वक्त कुछ असम के ऊपर, असम के दरवाजे पर दुश्मन है और असम खतरे में हैं। इसलिए खास तौर से हमारा दिल जाता है हमारे भाइयों, बहनों पर जो असम में रहते हैं। हमें उनसे हमदर्दी है, क्योंकि उन्हें तकलीफ उठानी पड़ रही है और शायद और भी तकलीफ उठानी पड़े। हम उनकी पूरी मदद करने की कोशिश कर रहे हैं और करेंगे लेकिन, कितनी ही मदद करें हम उन्हें तकलीफ से नहीं बचा सकेंगे।'
'सी ला एक पास (दर्रा) है, पहाड़ है बॉमडिला के ऊपर, तवांग और बॉमडिला के बीच में। बॉमडिला भी हमारे हाथ से निकल गया है।रंज हुआ इसको सुनकर, रंज हुआ कि हमारी फौज को हटना पड़ा। वहां से इसके माने ये हैं कि जो लड़ाई हमारे सामने है उसको हमें जारी रखना है। थोड़े दिन नहीं बहुत दिनों तक। थोड़े महीने नहीं, वर्षों तक जारी रखना जरूरी है। हम लड़ते जाएंगे और बीच में कहीं-कहीं हारे तो उससे और ताकत पकड़ेंगे और आगे बढ़ेंगे।'
स्टेट बैंक के मैनेजर ने जला दिए थे नोट
तेजपुर में वह रात कितनी डरावनी थी, इसका अंदाजा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की घटना से लगाया जा सकता है। दरअसल भारतीय नोट चीनी सैनिकों के हाथ न लग जाए इस डर से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया तेजपुर ब्रांच के मैनेजर ने कर्मचारियों को बैंक में मौजूद सारे नोट और सिक्के इकट्ठा करने के लिए कहा।
बैंक मैनेजर ने इसके बाद सभी नोटों को पेटियों में भरा और फिर उनमें आग लगा दी। हालांकि, नोट जलाने के बाद भी सिक्के बचे हुए थे। उस वक्त सिक्कों की बहुत कीमत होती थी। बैंक मैनेजर ने सारे सिक्कों को बोरियों में भरा और शहर के बीचों-बीच स्थित तालाब में फेंक दिया।
आज भी तेजपुर के लोग पीएम नेहरु को माफ नहीं कर पाए हैं
युद्ध के समय देशवासियों का हौसला बढ़ाना और उनकी सुरक्षा निश्चित करना ही देश के प्रधानमंत्री का कर्तव्य है, लेकिन उस समय जिस तरह से नेहरु ने असम की जनता के नाम रेडियो पर संदेश भेजा, उसे याद कर आज भी तेजपुर के लोग बिफर पड़ते हैं। उनके जेहन में वो सारी घटना ताजी हो जाती है।
नेहरू के उस भाषण के बाद कई कांग्रेसियों ने सफाई देते हुए कहा था कि नेहरु के भाषण को गलत तरीके से समझा गया है, लेकिन इससे तेजपुर शहर के लोगों की आपबीती तो नहीं बदल सकती, इतिहास के उन पन्नों की स्याही को तो कोई नहीं मिटा सकता, जिसमें तेजपुर के लोगों का दर्द उकेरा गया है। चीनी सेना के बढ़ते दबदबे का न चाहते हुए भी जो नेहरु ने जिस तरीके से उसे बताया, उसे आज भी तेजपुर के लोग भुला नहीं पाए हैं ।