- बाबा अमरनाथ का शिवलिंग एक गुफा में स्वत: निर्मित होता है
- अमरनाथ की गुफा 11 मीटर ऊंची है
- समुद्रतल से 13,600 फुट की उंचाई पर स्थित है
Amarnath Yatra 2022: अमरनाथ यात्रा 30 जून से शुरू होगी। यहा यात्रा 43 दिनों तक चलेगी। 43 दिनों के बाद रक्षा बंधन पर समाप्त होगी। सभी कोविड प्रोटोकॉल से तहत यात्रा शुरू होगी। अमरनाथ श्राइन बोर्ड की बैठक में यह फैसला लिया गया। अमरनाथ यात्रा हिंदू धर्म की सबसे कठिन यात्राओं में से एक है। इसका सफर काफी मुश्किल होता है। इसके लिए रजिस्ट्रेशन कराए जाते हैं। हेल्थ की भी जांच होती है। क्योंकि यहां पहुंचने के लिए दुर्गम पहाड़ों से गुजरना पड़ता है। कहा जाता है कि बाबा बर्फानी का दर्शन करना भाग्य की बात होती है। आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर सावन महीने तक पवित्र हिमलिंग के दर्शन के लिए यहां हर साल लाखों लोग आते हैं।
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की बैठक में अध्यक्षता
जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल के कार्यालय ने कहा कि अमरनाथ यात्रा 30 जून, 2022 से सभी कोविड प्रोटोकॉल के साथ शुरू होगी और परंपरा के अनुसार रक्षा बंधन के दिन समाप्त होगी। अमरनाथ यात्रा इस साल 43 दिनों तक चलेगी। एक अधिकारी ने रविवार को कहा कि दक्षिण कश्मीर हिमालय में 3,880 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ मंदिर की वार्षिक तीर्थयात्रा 30 जून से शुरू होने वाली है। 43 दिवसीय तीर्थयात्रा को निर्धारित करने का निर्णय उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता में श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड की बैठक में लिया गया। सिन्हा ने ट्विटर पर लिखा, आज श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड की बोर्ड बैठक की अध्यक्षता की। 43 दिवसीय पवित्र तीर्थयात्रा 30 जून को सभी कोविड प्रोटोकॉल के साथ शुरू होगी और परंपरा के अनुसार रक्षा बंधन के दिन समाप्त होगी। आगामी यात्रा पर भी हमने विभिन्न मुद्दों पर गहन चर्चा की।
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गुफा में दर्शन देते हैं बाबा बर्फानी
बाबा अमरनाथ का शिवलिंग एक गुफा में अवतरित होता है। यह शिवलिंग स्वत: प्राकृतिक रूप से बर्फ से निर्मित होता है। इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग या बाबा बर्फानी के नाम से भी जानते हैं। अमरनाथ का गुफा 11 मीटर ऊंची है और इसकी लंबाई 19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है। कश्मीर के श्रीनगर से करीब 135 किमी दूर बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए कठिन यात्रा करनी पड़ती है। ये समुद्रतल से 13,600 फुट की उंचाई पर स्थित है।
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से पहले 2019 में अमरनाथ यात्रा को बीच में ही रद्द कर दिया गया था, जबकि पिछले दो वर्षों में कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप के कारण केवल एक प्रतीकात्मक यात्रा हुई थी।