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Army Chief Bipin Rawat on CAA Protests: भीड़ को भड़काने वाले लोग नेता नहीं होते

Updated Dec 26, 2019 | 12:35 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

Army Chief General Bipin Rawat on CAA Protests सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने नागरिकता कानून के विरोध में देशभर में हुई हिंसा पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि जो लोग देश को भ्रमित कर रहे हैं वो नेता नहीं हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspANI
Bipin Rawat on CAA: जो लोग देश को भ्रमित कर रहे हैं वो नेता नहीं हैं- आर्मी चीफ
मुख्य बातें
  • आर्मी चीफ जनरल रावत ने नागरिकता कानून के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों पर दी प्रतिक्रिया
  • जनरल रावत ने कहा कि भीड़ को भड़काने वाले लोग नेता नहीं हो सकते हैं
  • हाल ही में नागरिकता कानून के खिलाफ देश के कई हिस्सों में हुए थे हिंसक प्रदर्शन

नई दिल्ली: सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने नागरिकता कानून के विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि भीड़ को भड़काने वाले लोग नेता नहीं होते बल्कि नेतृत्व वो होता है जो लोगों को सही दिशा दिखाए, सही रास्ते पर ले जाए। आर्मी चीफ ने कहा कि नेता वो नहीं होते हैं जो गलत तरीके से नेतृत्व करते हैं। जैसा कि हम बड़ी संख्या में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में देख रहे हैं कि छात्र शहर और कस्बों में आगजनी और हिंसा करने के लिए भीड़ का नेतृत्व कर रहे हैं। यह नेतृत्व नहीं है। जो लोग देश को भ्रमित कर रहे हैं वो नेता नहीं हैं।

सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत दिल्ली में एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान जनरल रवात ने कहा, 'जब हम दिल्ली में खुद को ठंड से बचाने में लगे होते हैं तब सियाचिन में सॉल्टोरो रिज पर हमारे जवान देश की सुरक्षा में लगातार खड़े रहते हैं, वहां तापमान -10 से -45 डिग्री के बीच रहता है। मैं उन जवानों को सलाम करता हूं।'

आपको बता दें कि संशोधित नागरिकता कानून और पूरे देश में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के प्रस्तावित क्रियान्वयन के खिलाफ देश के कई हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में कई लोगों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा और अरबों की संपत्ति का नुकसान भी हुआ। बड़ी संख्या में विश्वविद्यालयों के छात्रों ने इन प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। 

संशोधित नागरिकता कानून में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में प्रताड़ना झेलने वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, जैन, बौद्धों और पारसियों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में शरण ली है। प्रदर्शन करने वालों का कहना है कि मुसलमानों को इस कानून के दायरे से बाहर रखना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

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