- AIMIM नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने औरंगजेब की कब्र पर चादर और फूल चढ़ाए, जिसके बाद से राजनीति गरमा गई है।
- बनारस में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि विवाद से औरंगजेब का सीधा नाता है।
- साल 2015 में एनडीएमसी ने औरंगजेब रोड का नाम बदल दिया था।
Aurangazeb Controversy:आजाद भारत की राजनीति में ऐसे बिरले ही उदाहरण मिलेंगे, जिसमें देश की राजनीति किसी बादशाह या राजा के नाम के इर्द-गिर्द इस तरह घूमती हो। जी हां, हम बात मुगल बादशाह औरंगजेब की कर रहे हैं। वैसे तो औरंजगजेब ने देश में 49 साल के करीब शासन किया लेकिन उसकी चर्चा, उस दौरान किए गए कुछ अहम कार्यों से ज्यादा कुछ ऐसे धार्मिक फरमानों को लेकर होती है, जिसने आज भारतीय राजनीति को दो ध्रुवीय बना दिया है। चाहे उसके नाम पर सड़क हो या फिर उसके द्वारा देश के कई हिस्सों में बनाई गई मस्जिद या फिर उसकी कब्र, हर बात पर विवाद हो जाता है।
ताजा मामला औरंगजेब की महाराष्ट्र के औरंगाबाद स्थित कब्र का है। जहां पर AIMIM नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने चादर और फूल चढ़ाए। इस दौरान ओवैसी के साथ औरंगाबाद के सांसद इम्तियाज जलील भी मौजूद थे। औवैसी द्वारा औरंगजेब की कब्र पर चादर चढ़ाते ही राजनीति गरमा गई। शिवसेना नेता चंद्रकांत खैरे ने औवोसी को चेतावनी देते हुए कहा है 'अकबरुद्दीन ओवैसी के औरंगजेब के मकबरे पर जाने का मकसद समझ नहीं आता। हमें उनका एक पुराना बयान याद है, जिसमें उन्होंने कहा था कि कोई भी औरंगजेब के मकबरे पर नहीं जाता है। अगर वह समाज में समस्या उत्पन्न करने के लिए ऐसा कर रहे हैं, तो हम इसे बर्दाशत नहीं करेंगे।' वहीं बीजेपी नेता राम कदम ने कहा, 'महाराष्ट्र सरकार को लोगों की आवाज दबाने और उन पर राजद्रोह का आरोप लगाने का शौक है। अगर वो इतने हिम्मती हैं तो वह ओवैसी पर राजद्रोह का मुकदमा दायर करें ।
ओवैसी गरमा रहे हैं राजनीति !
साफ है कि ओवैसी ने ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे और मथुरा स्थित श्री कृष्ण जन्मभूमि को लेकर हुए विवाद के बाद औरंगजेब की मजार पर चादर चढ़ाकर राजनीति को गरमा दिया है। क्योंकि ज्ञानवापी और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि विवाद को लेकर सीधा औरंगजेब से नाता है। हिंदू पक्ष और भाजपा का दावा है कि बनारस में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर उसी के ढांचे पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था। इसी तरह मथुरा स्थित कृष्ण जन्मभूमि के पास स्थित मस्जिद का निर्माण भी इसी आधार पर औरंगजेब ने कराया था। इन दोनों जगहों के अलावा इस बात का दावा हिंदू पक्ष द्वारा किया जाता है कि गुजरात के सोमनाथ मंदिर को भी औरंगजेब ने तुड़वाया था। ऐसे में औवेसी का औरंजगेज का चादर चढ़ाना निश्चित तौर पर राजनीति को गरमाएगा।
औरंगजेब भारतीय राजनीति में कैसे हो गया अहम
औरंगजेब भारतीय राजनीति में ऐसा मोहरा बन चुका है, जिसका सड़क, चुनाव, मंदिर निर्माण से लेकर हर जगह जिक्र होता है। हाल के वर्षो में औरंगजेब का नाम तब चर्चा में आया। जब साल 2015 में एनडीएमसी ने औरंगजेब रोड का नाम बदल दिया। दिल्ली के इंडिया गेट के पास से गुजरती औरंगजेब रोड का नाम डॉ ए.पी.जे अब्दुल कलाम कर दिया गया। जिसको लेकर मुस्लिम संगठनों ने विरोध भी जताया था। इस सड़क का नाम बदलवाने में भाजपा सांसद डॉ महेश गिरी ने अभियान चलाया था। इसके बदा चुनावों में भी औरंगजेब एक प्रमुख मोहरा बनता रहा है। जिसे भाजपा, कांग्रेस और दूसरे नेता अपने अनुसार इस्तेमाल करते रहे हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के चुनावों में भी औरंगजबे का नाम काफी उछला था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी करते हैं जिक्र
दिसंबर 2021 में काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने औरंगजेब का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि समय कभी एक जैसा नहीं रहता है। औरंगजेब का अत्याचार और आतंक का इतिहास साक्षी है। औरंगजेब ने तलवार के बल पर हमारी सभ्यता को बदलने और संस्कृति को कुचलने की कोशिश की, लेकिन इस मिट्टी की बात ही कुछ और है। यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं।
इसी तरह अप्रैल 2022 में गुरू तेगबहादुर के 400वें प्रकाश पर्व पर लाल किले पर आयोजित एक कार्यक्रम में औरंगजेब का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि धर्म को दर्शन, विज्ञान और आत्मशोध का विषय मानने वाले हमारे हिंदुस्तान के सामने ऐसे लोग थे जिन्होंने धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार की पराकाष्ठा कर दी थी। उस समय भारत को अपनी पहचान बचाने के लिए एक बड़ी उम्मीद गुरु तेगबहादुर जी के रूप में दिखी थी। औरंगजेब की आततायी सोच के सामने उस समय गुरु तेगबहादुर जी, 'हिन्द दी चादर' बनकर, एक चट्टान बनकर खड़े हो गए थे। इतिहास गवाह है, ये वर्तमान समय गवाह है और ये लाल किला भी गवाह है कि औरंगजेब और उसके जैसे अत्याचारियों ने भले ही अनेकों सिरों को धड़ से अलग कर दिया, लेकिन हमारी आस्था को वो हमसे अलग नहीं कर सका।
औरंगजेब के नाम पर दो गुट
भारतीय राजनीति में इस समय औरंगजेब के नाम पर दो गुट बन चुके हैं। एक पक्ष जहां उसे हिंदू संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश करने वाला मानता है। और उसे क्रूर शासक के रूप में देखता है। तो दूसरा पक्ष उसकी इस छवि से इत्तेफाक नहीं रखता है। लेकिन करीब 315 साल पहले मरने वाला मुगल बादशाह औरंगजेब राजनीति का सबसे अहम मोहरा बनता जा रहा है। और जिसका फायदा उठाने की कोशिश सभी पक्ष कर रहे हैं।