- भारतीय सैन्यबलों ने चीन को लद्दाख में बड़ी ही प्लानिंग के धकेला बैकफुट पर
- एक महीने तक बनी योजना के बाद 30-31 अगस्त की रात को दिया गया ऑपरेशन को अंजाम
- विशेष सीमा बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और भारतीय सेना ने दिया अंजाम
नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में पिछले चार महीने से तनाव चल रहा है। लेकिन अगस्त के अंतिम सप्ताह में कुछ ऐसा हुआ कि चीनी पहली बार खुद को बैकफुट पर पा रही है। 29-30 अगस्त की रात को भारतीय जवानों ने पैंगोंग झील के दक्षिणी छोर से एक अहम पोजिशन पर कब्जा कर लिया। सुबह होने से पहले भारतीय सुरक्षा बलों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के साथ कुछ प्रमुख ऊंचाइयों पर बढ़त हासिल कर ली।, रेजांग ला और रेचिन ला तक भारत की पहुंच होने के बाद से चीन बौखला गया है क्योंकि दोनों जगह रणनीतिक और सामरिक रूप से अहम हैं।
राजनीतिक मंजूरी जरूरी थी
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, भारतीय सेना का यह कदम "पूर्व-नियोजित" था क्योंकि देखा गया था कि पीएलए के सैनिक पहले से ही मानवरहित स्थानों की तरफ बढ़ रहे थे। फिर भी इस अभियान को निर्बाध रूप से अंजाम देने ने के लिए लगभग एक महीने तक ड्रॉइंग रूम से लेकर अंजाम देने तक के लिए सावधानीपूर्वक योजना बनाई गई। सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक सूत्र ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि इस कदम के लिए दिल्ली से राजनीतिक मंजूरी भी जरूरी थी क्योंकि चीन वहां से अपने सैनिकों को हटाने के लिए तैयार नहीं था।
सैन्य कार्रवाई एकमात्र विकल्प
30 जून को कोर्प्स कमांडर-स्तरीय वार्ता की सफलता के बाद उम्मीद थी कि चीन पीछे हटेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। लेकिन 14 जुलाई को, चौथे दौर की वार्ता में यह स्पष्ट हो चुका था कि चीन गोगरा पोस्ट और हॉट स्प्रिंग क्षेत्रों से पूरी तरह से अपने सैनिकों को वापस नहीं बुला रहा है। जब 2 अगस्त की बैठक खत्म हुई तो चीन यह तक मानने को तैयार नहीं था कि उसने पैंगोग के उत्तरी छोर से भारतीय सीमा में उल्लंघन किया है। अब तक भारतीय पक्ष को महसूस हो चुका था कि कुछ सामरिक लाभ के लिए सैन्य कार्रवाई ही एकमात्र विकल्प है।
ऐसे तैयार की गई योजना
सेना के एक शीर्ष सूत्र ने कहा 'योजनाएं हमेशा सभी चरणों के लिए तैयार रहती हैं, और बहुत कम लोगों के साथ साझा की जाती हैं। सेना के पास हर कदम के लिए प्लान होता है और बातचीत फेल होने पर ही प्लानिंग शुरू नहीं होती है।' अखबार ने सूत्र के हवाले से लिखा है कि फाइनल प्लान 15 दिन पहले ही तैयार कर लिया गया था और इसे लेकर लोकल कमांडर्स दिल्ली आए और प्रजेंटेशन दिया। इस दौरान शीर्ष सैन्य अधिकारी और टॉप लीडरशिप भी मौजूद रही और उनके सामने पूरा प्लान रखा गया। इस दौरान बताया गया कि हमारी ताकत क्या है और चीन की कमजोरियां क्या हैं। ऑपरेशन को अंजाम देने से पहले राजनीतिक नेतृत्व से अनुमति ली गई। इस पूरी योजना को अंजाम देने में करीब एक महीने का वक्त लग गया जिसमें पूरी गोपनीयता बरती गई।
तीन यूनिटों ने दिया अंजाम
एक सुरक्षा स्थापना अधिकारी ने कहा कि दक्षिण तट में प्रत्येक चोटी एक विशेष यूनिट को सौंपी गई थी जिसमें - विशेष सीमा बल (SFF), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) और भारतीय सेना। कई स्थानों पर एसएफएफ कमांडो ने विशेष रूप से ऑपरेशन को लीड कर मिशन को अंजाम दिया। अखबार के सूत्रों के मुताबिक, ऑपरेशन को 30-31 अगस्त की रात में अंजाम दिया गया। इससे भारत को ब्लैक टॉप और हेलमेट टॉप के आसपास की ऊंचाइयों पर जाने में मदद मिली। सफलतापूर्वक इसे अंजाम दिया गया। एक खुफिया अधिकारी ने अखबार को बताया, 'ब्लैक टॉप और हेलमेट टॉप पर चीनी का दबदबा कायम है, लेकिन हमने उन्हें चारों ओर से ऊंचाइयों पर घेर लिया है। हालांकि एलएसी की धारणाएं भिन्न हैं, हम अभी भी अपने तरफ एलएसी में हैं।'
रेजांग और रेचिन ला के आसपास भारत की मौजूदगी से चीन बुरी तरह बौखलाया हुआ है। वहीं मगर हिल औ गुरुंग हिल पर सेना मौजूद है जहां से चीनी हरकतों पर उसकी सीधी नजर है जहां मोल्दो और स्पंगगूर गैप यहां से साफ देखा जा सकता है। 1982 में चीन ने 2 किलोमीटर चौड़े इस पास के जरिए ही हमला किया था।