- NDMA की रिपोर्ट के अनुसार शहरों में बाढ़ एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है।
- अतिक्रमण, प्राकृतिक जल निकासी सिस्टम का तबाह होना भी शहरों की इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है।
- जलवायु परिवर्तन की वजह से साल 2100 तक भारत के कई शहरों के बड़े क्षेत्र डूब सकते हैं।
Bengaluru Flood: भारत की सिलिकॉन वैली बंगलुरू में आई बाढ़ ने एक बार फिर उस खतरे की आहट दे दी है। जिसको लेकर प्रकृति के साथ-साथ वैज्ञानिक हमें लगातार चेतावनी दे रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और शहरों के बेतरतीब विस्तार ने शहरी बाढ़ की नई चुनौती खड़ी कर दी है। पिछले 3-4 दिन में बंगलौर के पॉश इलाके से लेकर निचले स्तर तक डूबे हुए हैं। आलम यह है करोड़पति अपने परिवार के साथ ट्रैक्टर पर शरण लिए हुए हैं। उनकी करोड़ों की कारेx और आलीशान घर डूबे हुए, जेसीबी पर बैठकर सुरक्षित स्थानों पर जा रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि बंगलुरू भारत का पहला और आखिरी शहर है जो ऐसी तबाही देख रहा है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट पर नासा (NASA) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार भारत के 12 तटीय शहरों के डूबने का खतरा मंडरा रहा है। इसमें गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल से लेकर तमिलनाडु के शहर शामिल हैं।
ये शहर भी देख चुके हैं तबाही
ऐसा नहीं है कि बंगलुरू भारत का कोई पहला शहर है, जहां पर ऐसी स्थिति आई है। NDMA के अनुसार इसके पहले साल 2000 में हैदराबाद, 2001 में अहमदाबाद, 2002 और 2003 में दिल्ली, 2004 में चेन्नई, 2005 में मुंबई, 2006 में सूरत, 2007 में कोलकाता, 2008 में जमशेदपुर, 2010 मे गुवाहाटी में इसी तरह की बाढ़ आ चुकी है। और ये शहर पूरी तरह से लाचार दिख रहे थे।
क्यों शहर डूब रहे हैं
NDMA की रिपोर्ट के अनुसार शहरों में बाढ़ एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। उसकी प्रमुख वजह तेज बारिश और कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर है। उसके अनुसार मुंबई में जुलाई में औसतन 868 मिलीमीटर बारिश होती है। जबकि शहर में बारिश के लिए जल निकासी के लिए बने नालो की क्षमता 12-20 मिलीमीटर के आसपास होती है। इसके अलावा खराब मेंटनेंस की वजह से भी कई बार यह जल निकासी सिस्टम अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं करते हैं। इसके अलावा अतिक्रमण, प्राकृतिक जलनिकासी सिस्टम का तबाह होना भी शहरों की इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है।
RMSI की रिपोर्ट के अनुसार सितंबर 2014 में श्रीनगर में आई बाढ़ के दौरान देखा गया, जिस नदी की क्षमता बेसिन में उत्पन्न प्रवाह का लगभग आधा था। इसके बावजूद खराब जल निकासी नेटवर्क की वजह से शहर में हफ्ते भर तक पानी मौजूद रहा।
कुछ ऐसा ही हाल बंगलुरू का भी रहा है। तेजी से शहरीकरण होने के नाते तमाम गांवों को बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका में जोड़ा गया लेकिन नगर निगम ने गांवों को शहर के सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर से जोड़ने की कवायद नहीं की जिसके चलते जलजमाव की स्थिति सामने आ गई। इसके अलावा प्राकृतिक जल निकासी सिस्टम भी तबाह हो चुके हैं।
नहीं सुधरे तो ये शहर भी जाएंगे डूब
नासा (NASA) ने IPCC की रिपोर्ट के विश्लेषण के आधार पर बीते अगस्त में भारत के 12 शहरों के डूबने का खतरा बताया था। उसके अनुसार जलवायु प्रणाली और जलवायु परिवर्तन से बदलती परिस्थितियों के कारण साल 2100 तक दुनिया का तापमान काफी बढ़ जाएगा। और उसका सीधा असर भारत के 12 तटीय शहरों में दिखेगा।
शहर | कितना डूब जाएंगे |
ओखा | 0.60 मीटर |
कांडला | 0.57 मीटर |
भावनगर | 0.82 मीटर |
मुंबई | 0.58 मीटर |
मरमगांव | 0.63 मीटर |
मंगलौर | 0.57 मीटर |
कोचीन | 0.71 मीटर |
तूतीकोरन | 0.59 मीटर |
चेन्नई | 0.57 मीटर |
विशाखापत्तनम | 0.54 मीटर |
पारदीप | 0.59 मीटर |
किडरोपोर | 0.15 मीटर |
स्रोत: NASA Sea level Tool