बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दल अपने तीर तरकश के कील कांटें दुरूस्त करने में लग गए हैं सबकी निगाहें सत्ता हासिल करने पर लगी हैं जिसके लिए सभी तरीके के दांव पेंच अपनाने में पार्टियां पीछे नहीं रहना चाहती हैं। शायद यही वजह है कि इस बार राजनीतिक दल जो भी संभावित मुद्दे लग रहे हैं उनको लेकर धारदार अभियान आदि चलाकर अपनी तैयारियों को पुख्ता करने में जुट गए हैं। वहीं सत्ता पर काबिज नीतीश सरकार के लिए ये चुनाव इस मामले में अहम है कि उनके 15 साल के शासन को लेकर अब कई तरह से सवाल उठ रहे हैं और विपक्ष भी इस बार उन्हें कड़ी चुनौती देता दिख रहा है ऐसे में अपनी सत्ता को बचाए रखना उनके लिए बड़ी चुनौती है।
चुनाव का ऐलान होते ही हर पार्टी अलग अलग तरीकों से मतदाताओं को लुभाने का प्रयास कर रही हैं, बिहार में बहुत से मुद्दे हैं जिनको लेकर चुनाव लड़ा जाएगा। बताया जा रहा है कि इस बार बेरोजगारी, किसान बिल,बाढ़ वंशवाद,विकास जैसे मुद्दे चुनाव में खासे अहम रहने वाले हैं जिनपर बिहार के चुनावी दंगल में राजनीतिक दलों की ताकत की आजमाइश होने जा रही है।
बेरोजगारी जैसी गंभीर जमीनी मुद्दे इस दफा सबसे अहम, निभायेंगे खास भूमिका
इस बार बेरोजगारी जैसी गंभीर जमीनी मुद्दे मुख्य चुनावी मुद्दा बनने जा रहे हैं ऐसा बिहार की जनता का मिजाज बता रहा है इसके पीछे की वजह भी बाजिब है इस साल देश कोरोना की मार झेल रहा है जिसकी वजह से लाखों श्रमिक बड़े शहरों से उखड़कर अपनी जड़ों की ओर वापस लौटने को मजबूर हो गए थे। ऐसे लोगों की तादाद बिहार से बहुत ज्यादा है जिनके लिए रोजगार उपलब्ध कराना अहम मुद्दा है जबकि राज्य पहले से ही बेरोजगारी की समस्या से दो-चार हो रहा है।
मजदूरों का पलायन बड़ा चुनावी मुद्दा जिससे बिहार दो-चार हो रहा है
कोरोना काल में दूसरे राज्यों से मजदूरों का पलायन बड़ा चुनावी मुद्दा है। हजारों लोग अलग-अलग शहरों से लॉकडाउन में अपने घर लौटे। उन्हें रोजगार नहीं मिलने पर विपक्ष लगातार हमले कर रहा है। ऐसे में राज्य सरकार के सामने उनके लिए रोजगार मुहैय्या कराना बड़ी चुनौती होगा।इसको देखते हुए प्रदेश की दो मुख्य पार्टियों जेडीयू और आरजेडी ने नौकरी और बेरोजगारी के आसपास अपनी चुनावी रणनीति बनाना शुरू कर दी है।
यदि किसी दलित का मर्डर हुआ तो वो पीडि़त परिवार के एक सदस्य को नौकरी देंगे ये दांव भी नीतीश ने इस बार चला है।अब ये कितनी कारगर होती है ये देखने वाली बात होगी।
हर चुनाव की तरह इस बार चुनाव में भी बाढ़ बड़ा मुद्दा बनेगा ऐसा कहा जा रहा है कि क्योंकि इस साल बाढ़ से बिहार में भारी नुकसान हुआ है। सत्ता पक्ष का दावा है कि गरीबों को अनाज मुहैया करवाया गया जबकि विपक्ष का कहना है कि बाढ़ से भारी नुकसान हुआ है और सरकार इससे निपटने में विफल रही है।
शराब बंदी और महिलाओं को आरक्षण के मुद्दे को सत्ता पक्ष अपनी कामयाबी बता रहा है तो वहीं विपक्ष का आरोप है कि सरकार अपने वादे पूरे करने में नाकाम रही है वहीं विपक्ष लचर कानून व्यवस्था,गरीबी, खराब सड़कों को लेकर सत्ता पक्ष पर हावी होने की कोशिश कर रही है। लालू परिवार के 15 साल बनाम नीतीश के 15 साल की तुलना की जा रही है और लोगों को लगता है कि इस बार एंटी इनकंबेंसी हो सकती है लेकिन राजनीति के जानकारों का कहना है कि कई बार विकल्प कमजोर हो तो एंटी इनकंबेंसी का मुद्दा हावी नहीं होने पाता है।
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत का भी असर दिखेगा?
दिवंगत फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत भी इस बार चुनावी मुद्दा बनेंगे कहा जा रहा है कि सुशांत को बिहारी अस्मिता बताते हुए फिल्म अभिनेता की मौत के बाद बिहार सरकार की ओर से सीबीआई जांच की प्रक्रिया को सत्ता पक्ष भुनाने के मूड में है और कांग्रेस और आरजेडी पर सवाल उठाएगा। केंद्र सरकार ने संसद में कृषि सुधार बिल पास किया है। विपक्ष हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा लाये गए किसान बिल को लेकर भी हमलावर है सत्ता पक्ष का दावा है कि इस बिल से किसान खुशहाल होंगे वहीं विपक्ष इसे किसानों को बर्बाद करने वाला बिल बताता नजर आ रहा है।यह चुनाव का तात्कालिक मुद्दा बना है, कांग्रेस भी इस मुद्दे को जोर शोर से उठा रही है,वहीं आरजेडी नेता तेजस्वी ने भी इसे लेकर खासा विरोध प्रदर्शन किया है।