पटना: पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के संस्थापक रहे रामविलास पासवान के निधन के करीब दो साल गुजर जाने के बाद भी उनकी सियासी विरासत पर कब्जा जमाने को लेकर उनके भाई और पुत्र में होड मची है। जमुई के सांसद और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान और उनके चाचा, केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) के प्रमुख पशुपति कुमार पारस भले ही अलग-अलग राजनीति कर रहे हों, लेकिन दोनों पूर्व केंद्रीय मंत्री और दलित नेता पासवान की विरासत का खुद को दावेदार बता रहे हैं। यही कारण है कि पासवान की जयंती भी हाजीपुर और पटना में अलग-अलग मनाई गई।
चिराग का पूरा परिवार हाजीपुर में पासवान की प्रतिमा के अनावरण कार्यक्रम में शामिल रहा। इस दौरान चिराग भावुक भी हो गए तब परिवार के लोगों ने उन्हें संभाला। चिराग ने आने वाले महीनों में सभी जिला मुख्यालयों पर अपने पिता की और प्रतिमा स्थापित करने की योजना बनाई है।उल्लेखनीय है कि हाजीपुर रामविलास की कर्मस्थली रही है। पासवान वहां से 1977 में रिकार्ड मतों से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। हाजीपुर के लोग भी पासवान के साथ निकटता से जुड़े थे। पिछले लोकसभा चुनाव में पारस हाजीपुर से जीतकर सांसद बने।
रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा दो भागों में बंट गई
एक गुट का नेतृत्व जहां चिराग कर रहे हैं वहीं एक गुट का नेतृत्व पारस कर रहे हैं। बिहार में पासवान समुदाय चार प्रतिशत से कुछ अधिक वोट है। चिराग और पारस दोनों जानते हैं कि राज्य में एक दलित नेता के लिए जगह तैयार है। ऐसे में दोनों इस वोटबैंक को हथियाने को लेकर जुटे हैं।
पारस खुलकर एनडीए के साथ हैं,चिराग दोनों गठबंधनों से समान दूरी रखे हैं
पारस जहां खुलकर एनडीए के साथ हैं वहीं चिराग दोनों गठबंधनों से समान दूरी रखे हुए है। चिराग हालांकि बिहार सरकार पर निशाना साधते रहे हैं। ऐसे में भी वे कभी भी भाजपा के खिलाफ मुखर होकर बयान नहीं दिया है। चिराग तो यहां तक कहते हैं कि उनके लिए बिहार का विकास प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि अपने पिताजी रामविलास जी के सपनों को पूरा करना है।