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Chhatrapati Shivaji Maharaj: बेजोड़ थी शिवाजी की नौसेना, वीरता की मिसाल थे उनके नेवी कमांडर कान्होजी आंग्रे

शिशुपाल कुमार | Principal Correspondent
Updated Sep 03, 2022 | 00:21 IST

Chhatrapati Shivaji Maharaj: छत्रपति शिवाजी महाराज ने कल्याण, भिवंडी और गोवा जैसे शहरों में व्यापार के लिए और एक लड़ाकू नौसेना स्थापित करने के लिए जहाजों का निर्माण किया था।

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बेजोड़ थी छत्रपति शिवाजी महाराज की नौसेना
मुख्य बातें
  • चोल साम्राज्य के बाद ज्यादातर शासकों ने नौसेना की ताकत को कर दिया था नरअंदाज
  • गद्दी संभालने से पहले ही शिवाजी महाराज नौसेना को खड़ा करने में जुट गए थे
  • शिवाजी की नौसेना से खौफ खाते थे मुगल

शुक्रवार को जब नौसेना का झंडा बदला गया और इसमें छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रतीक चिन्ह को शामिल किया तो एक बार फिर से उनकी नौसेना की चर्चा होने लगी है। कहा जाता है कि शिवाजी की नौसेना इतनी ताकतवर थी कि ब्रिटेन, पुर्तगाल से लेकर डच तक डरते थे। उस दौर में जब कई देशों के पास नौसेना का नामोनिशान नहीं था या यू कहें कि सिर्फ नाम मात्र की नौसेना थी, तब शिवाजी की नौसेना के सामने कई बड़े देशों की नौसेना टक्कर लेने से पहले सोचती थी।

शिवाजी महाराज की ही दूरदर्शिता थी कि उन्होंने एक मजबूत नेवी की नींव रखी, जो धीरे-धीरे आगे बढती रही। भारत जब आजाद हुआ तो उसी नींव के सहारे भारत में नौसेना का विकास होता रहा। 

यहां से शुरू हुई थी कहानी  

छत्रपति शिवाजी महाराज ने 17वीं शताब्दी में अपनी नौसेना पर काम करना शुरू किया था। तब उन्होंने एक आधुनिक नौसैनिक बल की नींव रखी थी। भारतीय नौसेना की वेबसाइट के अनुसार मराठा साम्राज्य के समुद्री व्यापार की रक्षा के लिए कोंकण तट पर एक मजबूत नौसैनिक बेस स्थापित की गई थी। भारतीय नौसेना के एक दस्तावेज के अनुसार- "शिवाजी के अधीन नौसेना इतनी मजबूत थी कि मराठा ब्रिटिश, पुर्तगाली और डचों के खिलाफ अपनी पकड़ बना सकते थे।"

यहां होता था जहाज निर्माण

शिवाजी महाराज ने जहाज निर्माण के लिए कल्याण, भिवंडी और गोवा का चुनाव किया था। यहां व्यापार और जंग दोनों के लिए जहाजों का निर्माण किया जाता था। बताया जाता है कि तब शिवाजी महाराज की नौसेना में 60 जहाज और 10 हजार नौसैनिक थे। नौसेना के दस्तावेज में कहा गया है-  "उन्होंने मरम्मत, भंडारण और शेल्टर के लिए कई समुद्री किलों और ठिकानों का भी निर्माण किया था। शिवाजी ने समुद्र तट पर जंजीरा के सिद्दियों के साथ कई लंबी लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने दक्कन में आठ या नौ बंदरगाहों पर कब्जा करने के बाद अपने दम पर विदेशियों के साथ व्यापार करना शुरू कर दिया।"

वीरता की मिसाल थे नौसेना के सेनापति

कान्होजी आंग्रे मराठा नौसेना के कमांडर थे। कान्होजी को एक मजबूत नौसैनिक नींव रखने का श्रेय दिया जाता है। जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि मराठों को समुद्र में आगे बढ़ने की शक्ति थी। कान्होजी आंग्रे को अंग्रेजी, पुर्तगाली और डच नौसैनिक बलों पर अपनी पकड़ बनाने का श्रेय दिया जाता है। कई इतिहासकारों के अनुमान में, कान्होजी आंग्रे पूर्व-आधुनिक भारतीय इतिहास में सबसे महान नौसैनिक कमांडर थे। मराठों से पहले, चोलों के पास जहाजों का एक दुर्जेय समुद्री बेड़ा था।

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