- चीन भारत को घेरने के लिए लद्दाख के बाद एक नए फ्रंट पर विवाद करने की कोशिश कर रहा है।
- चीन और पाकिस्तान की तरफ से ऐसी कोशिशों की खबरें आने के बाद भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
- 16 दौर की वार्ता के बाद भी लद्दाख विवाद अनसुलझा है।
India-China Relation: एक तरफ भारत और चीन के विदेश मंत्री कल शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भाग लेंगे। और ऐसी संभावना है कि उजबेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में हो रहे दो दिवसीय सम्मेलन (28-29 जुलाई)में भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी की मुलाकात हो सकती है। उसके पहले चीन ने पाकिस्तान के साथ मिलकर नई चाल चल दी है। असल में चीन और पाकिस्तान ने चीन पाक आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) में तीसरे देश को शामिल करने की कोशिशें शुरू कर दी है। इसका अर्थ यह होगा कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी POK में चीन के अलावा किसी तीसरे देश की एंट्री हो जाएगी। जाहिर यह कदम भारत की परेशानी बढ़ाने वाला होगा। साफ है कि चीन भारत को घेरने के लिए लद्दाख के बाद एक नए फ्रंट पर विवाद करने की कोशिश कर रहा है।
भारत ने जताया कड़ा विरोध
चीन और पाकिस्तान की तरफ से ऐसी कोशिशों की खबरें आने के बाद भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची द्वारा जारी किए गए बयान में कहा गया है,सीपीईसी परियोजनाओं में तीसरे देशों की भागीदार बनाने की दोनों देशों पर रिपोर्ट देखी है। किसी भी पक्ष द्वारा इस तरह की कोई भी कार्रवाई सीधे भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करती है। भारत पाकिस्तान द्वारा अवैध रुप से कब्जा किए गए भारत के क्षेत्र में तथाकथित सीपीईसी प्रोजेक्ट के किसी परियोजना का विरोध करता है।
विदेश मंत्रालय के बयान से साफ है कि भारत पीओके में होने वाले किसी भी तरह के निर्माण गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं करेगा। ऐसे में अगर ताशकंद में दोनों देशों के विदेश मंत्री मिलते हैं, तो लद्धाख विवाद के साथ-साथ इस मुद्दे पर भारत चीन को अपना विरोध जता सकता है।
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क्या है सीपीईसी प्रोजेक्ट
CPEC को 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत शुरू किया गया था। जिसकी शुरूआत चीन के शिनझियांग से होती है और वह पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर से भी गुजरते हुए ग्वादर बंदरगाह तक जाता है। इसलिए भारत इसे अपनी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता में दखल मानता है। पाकिस्तान ने इसके पहले भी सउदी अरब के जरिए इस प्रोजेक्ट में निवेश की कोशिश की थी, लेकिन वह उसमें सफल नहीं हो सका था। और अब चीन इसे अफगानिस्तान तक बढ़ाना चाहता है। सीपीईसी प्रोजेक्ट पर चीन ने करीब 46 अरब डॉलर का निवेश कर रखा है। हालांकि कंगाल होते पाकिस्तान के लिए यह प्रोजेक्ट अब गले की फांस बनता जा रहा है। और उसका पाकिस्तान के अंदर भी विरोध हो रहा है।
16 दौर की वार्ता के बाद भी लद्दाख विवाद अनसुलझा
जाहिर है सीपीईसी प्रोजेक्ट में तीसरे देश को शामिल करने की कोशिशें, भारत और चीन के रिश्तों में अविश्वास को बढ़ाएंगी। खास तौर से ऐसा तब है जब पिछले दो साल से दोनों देशों के बीच गलवान घाटी में हुए विवाद के बाद लद्दाख में गतिरोध खत्म नहीं हुआ है। इस बीच दोनों देशों के बीच लद्दाख गतिरोध को लेकर 16 दौर की बात हो चुकी है। लेकिन अभी स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है।
दलाई लामा की यात्रा पर चीन को लगी थी मिर्ची
इसके पहल के 15 जुलाई को करीब चार साल बाद तिब्बती आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा की लेह की यात्रा पर आपत्ति जताई थी। वहीं जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दलाई लामा को जन्मदिन पर बधाई दी थी, तो भी उसने आपत्ति जताई थी। चीन ने कहा था भारतीय पक्ष को 14वें दलाई लामा के चीन विरोधी अलगाववादी स्वभाव को पूरी तरह से पहचानना चाहिए। उसे चीन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का पालन करना चाहिए, समझदारी से बोलना और कार्य करना चाहिए तथा चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए तिब्बत से संबंधित मुद्दों का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए। जाहिर है दोनो देशों के बीच पहले से चल रहे विवाद के बीच सीपीईसी एक नया विवाद शुरू कर सकता है।