- छह में से पांच सांसद पारस पासवान के साथ आ गए हैं।
- चिराग भी खुद को लोजपा अध्यक्ष बता रहे हैं और पारस भी।
- झोपड़ी पर अधिकार की लड़ाई में जनता क्या सोचती है? यहां जानिए
दलित नेता के तौर पर विख्यात रहे स्वर्गीय रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी में बिखराव हो गया। अभी उनके निधन का एक साल भी नहीं बीता कि उनके बेटे चिराग पासवान और भाई पारस पासवान के बीच पार्टी पर वर्चस्व की जंग छिड़ गई। पारस लोजपा के छह सांसदों में से पांच को अपने गुट में शामिल करते हुए खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया। उधर चिराग ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर खुद को लोजपा का अध्यक्ष बताया। अब दोनों गुट पार्टी पर अपना दावा कर रहे हैं। इसका फैसला अब चुनाव आयोग ही करेगा कि झोपड़ी चाचा के पास जाती है या भतीजे के पास।
लेकिन नेता वही होता है जिसके पास जनता होती है। पार्टी की इस लड़ाई को समर्थक और उनके वोटर भी मीडिया के जरिये ध्यान से देख रहे हैं। उनके मन में भी बहुत कुछ चल रहा होता है। उनके ऊपर ही निर्भर होता है वे पार्टी का प्रमुख नेता किसे मानें। हालांकि जनता का असली मूड चुनाव में ही सामने आता है। जोकि पांच साल में देखने को मिलता है। इन 5 वर्षों में नेता मनमानी करते हैं। यही हाल लोजपा में भी देखने को मिला। पारस पासवान ने पांच सांसदों को अपने पक्ष में करके खुद को पार्टी प्रमुख बताया। इस लड़ाई में जब पारस के संसदीय क्षेत्र हाजीपुर के पासवान की बस्ती में लोगों से पूछा गया कि आपके नेता कौन हैं? तो 99 प्रतिशत लोगों ने बताया कि हम अपना नेता रामविलास पासवान को मानते रहे हैं। अब हमारे नेता चिराग पासवान हैं। शायद ही कोई व्यक्ति मिला हो जिसने अपना नेता पारस पासवान को बताया हो। यही हाल उनके गृह जिला खगड़िया का है। वहां के लोगों ने भी चिराग के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया। चिराग के संसदीय क्षेत्र जमुई के लोगों ने भी लोजपा का असली नेता चिराग पासवान को ही माना है।
चूंकि रामविलास पासवान 50 वर्षों से दलितों-शोषितों के उत्थान के लिए संघर्ष करते रहे हैं। इसलिए दलितों के मन में क्या है यह जानना जरूरी है। अधिकांश युवाओं ने चिराग को अपना नेता माना। युवाओं ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि चिराग पढ़े लिखे युवा नेता है। वे हमारे उत्थान के लिए काम करेंगे। बिहार में लोजपा का 5-6 प्रतिशत वोट बैंक है। जो निर्णायक साबित होता है। प्रत्येक विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों में इनके वोटर अहम भूमिका निभाते हैं। विधानसभा चुनाव 2021 में चिराग ने एनडीए में रहते हुए नीतीश कुमार का विरोध किया जिसकी वजह से जदयू को 30 से 32 सीटों का नुकसान हुआ।
बिहार की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स का कहना है कि चिराग बाउंस बैक करेंगे। क्योंकि लोजपा के समर्थक चिराग के साथ है। चिराग में रामविलास पासवान की छवि है। वे युवा हैं। उनमें बात कहने की शैली भी शानदार है। अभी कम उम्र है। वे संघर्ष कर आगे बढ़ सकते हैं। इनकी तुलना में पारस पासवान कहीं नहीं ठहरते हैं। भले ही अभी उन्हें 6 में से 5 सांसदों का समर्थन हासिल हो। लोकसभा में वे लोजपा के नेता हो सकते हैं। लेकिन जनता के बीच उनकी उतनी पकड़ नहीं है जितनी चिराग की है।
पारस पासवान कई बार अलौली विधानसभा ने विधायक चुने गए हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक वे अपने बलबूते चुनाव जीतने की क्षमता नहीं रखते हैं। उनके हर चुनाव प्रचार में लोजपा के तत्कालीन अध्यक्ष और उनके बड़े भाई रामविलास पासवान उनके लिए वोट मांगने जाते थे। वे वोटरों से कहते थे कि पारस को वोट देने का मतलब है आप मुझे वोट दे रहे हैं। इस तरह उनकी जीत होती रही है। बिहार के अलौली विधानसभा के सहरबन्नी गांव में उनका पुश्तैनी घर भी है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पारस पासवान का लोगों पर कितनी पकड़ है। वर्तमान में पारस हाजीपुर लोकसभा से सांसद हैं। जहां से रामविलास पासवान चुनाव जीतते रहे हैं। यहां भी उन्हें लोगों ने रामविलास की वजह से ही वोट दिया।