- झारखंड के रांची में कार्यक्रम में बोले- वकालत के दौरान उनकी राजनीति में गहरी रुचि हो गई थी
- 'बार से बेंच की यात्रा आसान नहीं होती, न्यायाधीश का जीवन बहुत एकाकी व समाज से अलग-थलग'
- CJI ने कहा- अपनी इच्छा के विपरीत राजनीति में नहीं जा सके, फिर भी इस बात का मलाल नहीं
भारत के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमण ने शनिवार को कहा कि वह तो वास्तव में सक्रिय राजनीति में जाना चाहते थे लेकिन विधि का विधान ऐसा था कि वह न्यायाधीश बन गए लेकिन इस बात का उन्हें मलाल नहीं है। झारखंड के रांची में न्यायिक अकादमी में न्यायमूर्ति सत्यब्रत सिन्हा स्मारक व्याख्यान देते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि निचली अदालत में वकालत के दौरान उनकी राजनीति में गहरी रुचि हो गई थी और वह सक्रिय राजनीति में जाना चाहते थे लेकिन विधि का विधान ऐसा बना कि अपने पिता की प्रेरणा से वह हैदराबाद में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में वकालत करने चले गए। उन्होंने कहा कि फिर एक दिन उन्हें उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने का प्रस्ताव मिला, जिसे वह ठुकरा नहीं सके।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वकील (बार) से न्यायाधीश (बेंच) तक की यात्रा आसान नहीं होती क्योंकि न्यायाधीश का जीवन बहुत एकाकी और समाज से अलग-थलग होता है। उन्होंने कहा, ‘‘जब आप वकील होते हैं तो आपका समाज में बहुत गहरा रिश्ता होता है लेकिन जैसे ही बार से बेंच में आते हैं तो परंपरा के अनुसार सभी सामाजिक संबंध त्याग देने पड़ते हैं, जो बेहद कठिन होता है। लेकिन, न्यायाधीश को न्याय के हित में यह सब करना पड़ता है।’’ न्यायमूर्ति रमण ने अपने भाषण में स्पष्ट किया कि वह अपनी इच्छा के विपरीत राजनीति में नहीं जा सके, फिर भी उन्हें इस बात का मलाल नहीं है। उन्होंने इस बात का संतोष जताया कि जिस क्षेत्र को उन्होंने अपनाया, वहां वह न्यायपालिका और देश तथा समाज के लिए कुछ कर पाए हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि लोग अक्सर भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में लंबे समय से लंबित मामलों की शिकायत करते हैं। हालांकि, कई मौकों पर खुद उन्होंने भी लंबित मामलों के मुद्दे पर चिंता जतायी है। उन्होंने कहा कि इस समस्या को हल करने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है। न्यायमूर्ति रमण ने न्यायाधीशों को उनकी पूरी क्षमता से कार्य करने में सक्षम बनाने के लिए भौतिक और व्यक्तिगत, दोनों तरह के बुनियादी ढांचे को सुधारने की आवश्यकता की वकालत की।
'न्यायाधीश फैसलों के बारे में रात भर सोचते रहते हैं'
देश के प्रधान न्यायाधीश ने शनिवार को कहा कि अधिकतर लोगों में यह गलत धारणा है कि न्यायाधीशों की जिंदगी बड़े ही आराम की होती है, जबकि वे अपने फैसलों के बारे में रात भर सोचते रहते हैं। व्याख्यान माला के उद्घाटन भाषण में न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘लोगों के मन में यह गलत धारणा है कि न्यायाधीशों की जिंदगी बड़े ही आराम की होती है, वे सुबह 10 बजे से लेकर शाम 4.00 बजे तक अदालत में काम करते हैं और छुट्टियों का आनंद उठाते हैं। लेकिन यह विमर्श असत्य है...जब न्यायाधीशों के आराम की जिंदगी जीने के बारे में असत्य विमर्श पैदा किया जाता है तो यह हजम हो पाना मुश्किल होता है।’’
उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की जिम्मेदारी बहुत ही कठिन है क्योंकि उनके फैसलों का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा किसी आरोपी को सजा सुनाना, किसी बच्चे का संरक्षक अभिभावक तय करना, किसी किरायेदार या मकान मालिक के अधिकारों के बारे में फैसला सुनाना, जीवन बीमा के मुकदमे में किसी व्यक्ति या मनुष्य के जीवन के मोल का हिसाब लगाना... ये सब बहुत ही कठिन फैसले होते हैं, जिसका सीधा प्रभाव न्यायाधीशों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ हम अपने फैसले के बारे में रात भर सोचते रहते हैं... और उच्चतम स्तर पर यह तनाव उतना ही अधिक होता है। ’’ न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘कई बार बड़े पारिवारिक कार्यक्रमों में भी हम नहीं शामिल हो पाते हैं।’’