- कर्नल नरेंद्र कुमार का निधन, दिल्ली के एक अस्पताल में ली अंतिम सांस
- कर्नल नरेंद्र कुमार ने 1984 में भारत को दिलाया था सियाचीन ग्लेशियर
- आर्मी सहित कई क्षेत्रों में कर्नल नरेंद्र कुमार ने दिया अहम योगदान
नई दिल्ली: 1984 को एक कड़े संघंर्ष के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को हराकर सियाचिन ग्लेशियर को अपने कब्जे में ले लिया था। भारत को इस ग्लेशियर को दिलाने में जिस नायक की सबसे अहम भूमिका थी वो थे कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार। कर्नल नरेंद्र ने आज दिल्ली के आरआर अस्पताल में अंतिम सांस ली। आर्मी में बुल कुमार के नाम मशहूर कर्नल नरेंद्र कुमार तीन साल तक हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान के प्रधानाचार्य भी रहे, और फिर 1971 से 1977 तक गुलमर्ग कश्मीर स्थित नेशनल स्की स्कूल के प्रधानाचार्य रहे।
कई चोटियां की फतह
1953 में कुमाऊं रेजीमेंट से आईएमए देहरादून से पास आउट कर्नल नरेंद्र कुमार नंदा देवी पर्वत पर चढ़ने वाले पहले भारतीय थे। 1961 में इस पर्वतारोही सैन्य अफसर ने अपने पैर की 4 उँगलियाँ फ्रॉस्ट बाईट में खो दीं थीं, बावजूद इसके 1964 में वे नंदा देवी पर चढ़ने वाले पहले भारतीय थे , 1965 में एवरेस्ट में भारत का झंडा फहराने वाले पहले भारतीय और 1976 में कांचनजंगा को उत्तर पूर्व दिशा, जो सबसे विकट है, से चढ़नेवाले पहले भारतीय थे।
इसलिए पढ़ा बुल कुमार नाम
भारतीय सेना की दुनिया में ये 'बुल कुमार' के नाम मशूहर कर्नल नरेंद्र कुमार के इस नाम के पीछे भी एक ऐसा वाकया जुड़ा है जो रोचक है। अंग्रेज़ी के 'बुल' शब्द का उपनाम कर्नल नरेंद्र कुमार के नाम के साथ तब जुड़ा जब नॅशनल डिफेंस अकाडेमी में वे अपने पहले बॉक्सिंग मैच खुद से 6 इंच लम्बे और कहीं ज़्यादा तगड़े प्रतिद्वंद्वी से एक बैल की तरह भीड़ गए। एक गठीले शरीर वाले कर्नल नरेंद्र कुमार इस बॉक्सिंग मैच में अपने प्रतिद्वंद्वी और सीनियर, सुनिथ फ्रांसिस रोड्रिग्स के हाथों हार तो जरूर गए लेकिन लोगों का दिल जीत लिया। बाद में बुल उपनाम हमेशा के लिए उनके साथ जुड़ गया I
सियाचीन फतह के पीछे की कहानी
कर्नल नरेंद्र कुमार के सियाचीन फतह के बारे में कहा जाता है कि 70 के दशक के अंत में एक जर्मन पर्वतारोही ने उन्हें उत्तरी कश्मीर का एक अमेरिकी नक्शा दिखाया जिसमें भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम रेखा उसके कहीं उत्तर में थी जिसकी उन्हें उम्मीद थी। इस नक्शे को में सियाचीन ग्लेशियर सहित पूर्वी काराकोरम का अधिकांश हिस्सा पाकिस्तान को दे दिया गया था। कर्नल बुल कुमार ने इस नक्शे को अपने ऑफिस को भेज दिया। इसके बाद कर्नल कुमार की सूचनाओं के बाद आर्मी ने 1984 में 'ऑपरेशन मेघदूत' शुरू किया है साल्टोरो रेंज सहित मुख्य दर्रों पर कब्जा कर लिया।