आज 26 नवंबर है। आज ही के दिन वर्ष 1949 में भारत ने औपचारिक रूप से संविधान को अपनाया था और आज से ठीक दो महीने बाद यानी 26 जनवरी, 1950 को देश में संविधान लागू हो गया था। 26 नवंबर, 1949 सरकार के कैलेंडर में संविधान दिवस के तौर पर दर्ज है, लेकिन 2015 से इस तारीख को हर साल संविधान दिवस समारोह के तौर पर मनाने की परंपरा शुरू हुई और इसकी शुरुआत नरेंद्र मोदी ने की।
प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार लोकतांत्रिक मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए इस समारोह को शुरू किया गया। नरेंद्र मोदी ने आज इस मौके पर कहा कि ये समारोह आजादी के बाद से ही शुरू हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। प्रधानमंत्री मोदी आज संसद के सेंट्रल हॉल में जब ये बातें कह रहे थे, तब कांग्रेस सहित 14 विपक्षी दलों ने अपने आप को इस समारोह से अलग कर लिया था। इन दलों ने ये आरोप लगाकर समारोह का बहिष्कार किया कि मोदी सरकार में संवैधानिक मूल्यों को कुचला जा रहा है। मोदी सरकार को संविधान और किसान की हत्यारी बताया गया। लेकिन क्या मोदी सरकार पर लगाए गए विपक्ष के ये आरोप सही हैं? क्योंकि जब आप इतिहास के पन्नों को खंगालेंगे तो पाएंगे कि इमरजेंसी से बड़ा संविधान का अपमान अब तक नहीं हुआ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज संसद के सेंट्रल हॉल से परिवारवाद वाली पार्टी पर हमला किया। भ्रष्टाचारी नेताओं के महिमामंडन का विरोध किया और उन सभी दलों को निशाने पर लिया, जिन्होंने इस समारोह का बहिष्कार किया। संविधान दिवस समारोह पर प्रधानमंत्री मोदी जब विपक्ष को आईना दिखा रहे थे, उसी वक्त विपक्षी नेता मोदी सरकार को संविधान विरोधी कहकर हमला कर रहे थे। कांग्रेस ने इसे देश नहीं बीजेपी का समारोह कहा। समाजवादी पार्टी ने संविधान बचाओ रैली तक निकाल दी और मायावती ने कहा कि इस सरकार में निचले तबके को दबाया जा रहा है।
कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा, मोदी सरकार प्रजातांत्रिक प्रणाली पर वार कर रही है। आनंद शर्मा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और उन्हें इमरजेंसी याद ना हो, ऐसा हो नहीं सकता। 25 जून 1975 को जो हुआ, उसे संवैधानिक देश में काला दिन कहते हैं। इसी दिन इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी। तो सोचिए संविधान की हत्या कब हुई थी और किसने की थी? कांग्रेस कह रही है कि साल 2014 से संविधान का अपमान हो रहा है तो क्या कांग्रेस इमरजेंसी को भूल गई है?
आपातकाल के दौरान करीब एक लाख ग्यारह हजार लोगों को हिरासत में लिया गया। कई बड़े नेताओं को जेल में डाला गया। 21 महीने तक देश में ये इमरजेंसी लागू रही। आधी रात अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई थी। कड़ी सेंसरशिप की वजह से कई अखबार इस दौरान बंद हो गए थे। रॉयटर्स समेत कई विदेशी न्यूज एजेंसी की सुविधाएं भी खत्म कर दी गई थीं। सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाली सिनेमा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। अभिनेताओं गायकों पर सरकार के पक्ष में बोलने का दबाव डाला गया था। सिनेमा के जरिये समाज और देश को जागरूक करने की कोशिशों पर भी रोक लगा दी गई थी। तो सोचिये संवैधानिक अधिकारों को कुचलने की कोशिश किस पार्टी ने की थी?
अब जरा कांग्रेस के आरोप और कांग्रेस की रियलिटी के एक Comparison पर नजर डालें:
- कांग्रेस ने कहा कि बीजेपी संविधान और किसान की हत्यारी है, जबकि कांग्रेस ने खुद संविधान को दरकिनार करते हुए 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगाई थी।
- कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाए कि संविधान पर बीजेपी के हमले बढ़ गए हैं, जबकि संविधान पर इमरजेंसी से बड़ा दूसरा हमला हो ही नहीं सकता।
- कांग्रेस आरोप लगा रही है कि मोदी सरकार में बोलने पर देशद्रोही का तमगा लगा दिया जाता है, जबकि आपातकाल में इसी कांग्रेस ने बोलने की आजादी तक छीन ली थी।
- कांग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार संवैधानिक अधिकारों को कुचल रही है, जबकि इसी कांग्रेस ने आपातकाल में पूरे देश को एक तरह से जेल बना डाला था और विरोध करने वाले हर नेता और आम आदमी को जेल में डाल दिया था।
अब सवाल है:
संविधान का अपमान किसने किया?
क्या मोदी विरोध में इमरजेंसी भूल गई कांग्रेस?
संविधान दिवस समारोह, भारत का या किसी पार्टी का?
क्या संविधान दिवस पर सियासी एजेंडा चलाना जरूरी था?