- कोरोना वायरस की रोकथाम को लेकर टीकाकरण अभियान 16 जनवरी से शुरू हो रहा है
- पहले चरण में तीन करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीका लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है
- सरकार यह भी स्पष्ट कर चुकी है कि टीकाकरण का मकसद संक्रमण चेन को तोड़ना है
नई दिल्ली : देशभर में कोरोना वैक्सीनेशन के लिए तैयारियां जोरशोर से जारी हैं, जो 16 जनवरी से शुरू होने जा रहा है। पहले चरण में तीन करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स का टीकाकरण होगा, जिसका खर्च केंद्र सरकार वहन करेगी। इस बीच वैक्सीनेशन यानी टीकाकरण को लेकर कई सवाल लोगों के मन में उठ रहे हैं, जिनमें से एक यह भी है कि आखिर कितनी आबादी के टीकाकरण के बाद इस महामारी का खतरा टल सकेगा?
पूरी आबादी का टीकाकरण नहीं
खास तौर पर सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी की ओर से कुछ दिनों पहले दिए गए इस बयान के बाद यह सवाल और भी अहम हो गया है, जिसमें उन्होंने कहा कि पूरे देश के टीकाकरण की बात सरकार ने कभी नहीं की और यह भी सीमित जनसंख्या को ही कोरोना का टीका लगाया जाएगा। इससे पहले ऐसे सवाल भी उठते रहे कि एक अरब से अधिक की आबादी वाले भारत में हर किसी को वैक्सीन मिल पाएगी या नहीं?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में सचिव राजेश भूषण ने दिसंबर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीमित आबादी को ही वैक्सीन लगाने की बात कही थी, जिसे और अधिक स्पष्ट करते हुए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव ने कहा था कि टीकाकरण का मकसद वास्तव में वायरस की ट्रांसमिशन चेन को तोड़ना है, ताकि संक्रमण को फैलने से रोका जा सके।
क्या कहता है WHO?
उन्होंने कहा था कि जिन लोगों में संक्रमण के चपेट में आने की आशंका अधिक है, अगर उन्हें वैक्सीन लगाकर कोरोना संक्रमण रोकने में कामयाबी मिलती है तो संभव है कि पूरी आबादी को वैक्सीन लगाने की जरूरत न पड़े। अब सवाल है कि क्या एक निश्चित आबादी को ही वैक्सीन देकर संक्रमण रोका जा सकता है? इस मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) क्या कहता है? क्या एक छोटी व लक्षित आबादी को टीका लगातार कोरोना वायरस संक्रमण जैसी महामारी पर काबू पाया जा सकता है और इस जानलेवा वायरस का संक्रमण चेन तोड़ा जा सकता है? यह सवाल हर किसी के मन में है।
इस बारे में डब्ल्यूएचओ ने एक अनुमान में कहा था कि आदर्श रूप में 90 फीसदी आबादी का टीकाकरण किसी भी माहामारी को रोकने के लिए आवश्यक है, जबकि 80 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण इसके लिए नितांत आवश्यक है। वहीं इस मामले में वैक्सीन की उपलब्धता भी एक बड़ा मसला है। जानकारों का कहना है कि अगर किसी देश के पास सीमित मात्रा में ही वैक्सीन हैं तो मृत्यु दर घटाने के लिए उसे इस विकल्प का चुनाव करना पड़ जाता है और किसका वैक्सीनेशन जरूरी है, इसकी प्राथमिकता भी तय करनी होती है।
फ्रंटलाइन वर्कर्स को प्राथमिकता
इस मामले एक दूसरी परिस्थिति तब आती है, जब मृत्यु दर तो कम होता है, लेकिन संक्रमण तेजी से फैलता है। ऐसे में भी उन लोगों की पहचान करनी होती है, जिन्हें संक्रमण का सबसे अधिक खतरा होता है। फिलहाल तीन करोड़ फ्रंटवर्कर्स को कोरोना वैक्सीन देने का फैसले को भी इसी से जोड़कर देखा जा सकता है, जिनमें डॉक्टर, नर्स, सहित तमाम वार्ड बॉय, सफाईकर्मी और एंलेंस ड्राइवर्स के साथ-साथ पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले कुछ महीने में 30 करोड़ नागरिकों के टीकाकरण का लक्ष्य निर्धारित करने की बात कही है, जिससे आने वाले दिनों में अधिक से अधिक टीकाकरण के संकेत मिलते हैं।