नई दिल्ली: कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन लगाया गया। लेकिन इस लॉकडाउन से गरीबों, दिहाड़ी मजदूरों और कामगारों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। लॉकडाउन में कोई काम ना होने से ना इनके पास पैसे हैं और ना ही खाने को है। ये लोग पूरी तरह से सरकार की ओर से मिलने वाली मदद पर निर्भर हैं। दिल्ली के ऐसे ही ऑटो ड्राइवर हैं यूनुस अंसारी। इनके पास खाने तक के लिए पैसे नहीं हैं। अपना दुख बताते हुए उनकी आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं।
उन्होंने बताया, 'मुझे अपना पेट भरने के लिए भरपेट खाना नहीं मिलता। मैं बिना पैसे के भिखारी की तरह महसूस करता हूं। हम बाहर जाते हैं तो पुलिस हमें मारती है। मुझे पास के एक स्कूल से खाना मिलता है। मेरा परिवार है, लेकिन उन्हें भोजन उपलब्ध कराने के लिए भी पैसे नहीं हैं।'
यही हाल कैब ड्राइवरों का है। तेलंगाना के हैदराबाद में ऐप-आधारित कैब ड्राइवरों का कहना है, 'पिछले 1 महीने से कोई काम नहीं है। हमारे वित्तीय खर्चों का प्रबंधन करना बहुत मुश्किल हो गया है। हमारे बच्चे भी परेशान हो रहे हैं। हम राज्य और केंद्र सरकार से हमारी मदद करने का अनुरोध करते हैं।'
सरकार कर रही मदद का दावा
हालांकि सरकारें अपने स्तर पर ऐसे लोगों की मदद कर रही हैं, लेकिन वो नाकाफी है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को बताया कि 71 लाख लोगों को प्रति व्यक्ति 7.5 किलो राशन मिल चुका है। बिना राशन कार्ड के 3.5 लाख लोगों को भी राशन मिल चुका है। बिना राशन कार्ड वाले 31 लाख लोगों को भी राशन बांट रहे हैं। दिल्ली सरकार हर संभव कोशिश कर रही है कि दिल्ली में कोई भी भूखे पेट न सोएं। सभी ऑटो ड्राइवर, ई रिक्शा, ग्रामीण सेवा, फटाफट सेवा के ड्राइवर के बैंक खातों में 5000 रुपए की सहायता राशि पहुंचना शुरू हो गई है।
उन्होंने कहा, 'दिल्ली सरकार कोरोना संकट के समय अपने हर एक नागरिक का ख्याल रख रही है। आज एक ऑटो ड्राइवर का फोन आया। उसने कहा कि उसे बहुत खुशी है कि दिल्ली सरकार ऑटो ड्राइवरों की 5,000 रुपए की आर्थिक मदद कर रही है।'