- नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विपक्ष कर रहा है मोदी सरकार विरोध
- एक मुद्दे पर विरोध लेकिन साथ आने से कतरा रहे हैं विपक्षी दल
- सीपीएम ने नागरिकता संशोधन कानून और आपातकाल को एक जैसा बताया
नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विपक्षी दल आर पार की लड़ाई के मूड में हैं। एक सुर में विपक्षी दलों का कहना है कि यह कानून संविधान की धज्जियां उड़ाता है। बीजेपी एक खास रणनीति के तहत समाज को बांटने की कोशिश कर रही है। सीपीएम के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी कहते हैं। यह सच है कि नागरिकता संशोधन कानून संसद द्वारा पारित है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि आपातकाल की घोषणा भी संसद द्वारा ही की गई थी। लेकिन उसके खिलाफ हमने न सिर्फ लड़ाई लड़ी थी बल्कि जीत भी हासिल की थी।
कांग्रेस के साथ भी और खिलाफ भी
आपात काल के खिलाफ जब लोग सड़कों पर उतरे थे तो उस समय आज के सत्ताधारी शामिल थे ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या उनका विरोध संसद के खिलाफ था।एक दूसरे ट्वीट में सीताराम येचुरी कहते हैं कि संविधान की भावना का ख्याल करते हुए सरकार को सीएए, एनपीआर और एनआरसी को वापस ले लेना चाहिये।
एकजुट विपक्ष फिर भी है आपसी तनातनी
सवाल यह है कि सीएए, एनपीआर और एनआरसी के मुद्दे क्या पूरा विपक्ष एकजुट है। इस सवाल के जवाब में जानकार कहते हैं कि विपक्षी दलों को लगता है कि खोई जमीन को हासिल करने के लिए यह बेहतर अवसर है। लेकिन वो यह भी चाहते हैं कि इस लड़ाई का नायक कोई और न बने। मिसाल के तौर पर पश्चिम बंगाल में टीएमसी, कांग्रेस और वामदलों की राय इस मुद्दे पर एक जैसी है। लेकिन जब संयुक्त लड़ाई की बात सामने आती है तो ममता बनर्जी का रुख अलग होता है, उसका एक उदाहरण सामने यह है कि जब सोनिया गांधी ने दिल्ली में बैठक बुलाई थी तो आप, टीएमसी और बीएसपी ने किनारा कस लिया था।
अपनी ढफली अपनी राग
अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां भी समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस इस विषय पर मुखर हैं लेकिन साझा लड़ाई लड़ने से बचना चाहते हैं। सीएए के खिलाफ जब यूपी के अलग अलग शहरों में हिंसा भड़की और सरकारी कार्रवाई में कुछ लोगों की जान गई तो सियासत तेज हो गई है। 26 में से सिर्फ तीन लोगों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर कांग्रेस की तरफ से सवाल उठाया गया। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने सोमवार को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत भी दर्ज कराई थी। लेकिन समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी कांग्रेस के साथ कदमताल करते हुए नजर नहीं आ रही है। जानकार कहते हैं कि सभी दलों के साथ समस्या ये है कि खास वोटबैंक के लिए वो लड़ाई तो लड़े लेकिन संघर्ष से निकली मलाई का बंटवारा न करना पड़े।