नई दिल्ली: देश के कुछ राज्यों में अगले कुछ दिनों के लिए चक्रवात 'तौकते' का संकट मंडरा रहा है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने जानकारी दी है कि चक्रवाती तूफान 'तौकते' मजबूत हो गया है और यह गुजरात एवं केंद्र शासित प्रदेश दमन-दीव एवं दादरा-नगर हवेली की ओर बढ़ रहा है। वहीं, इसकी वजह से मुंबई में तेज हवाएं चल सकती है और बारिश हो सकती है। यह इस साल का पहला चक्रवाती तूफान है। ये ऐसे समय में दस्तक दे रहा है, जब भारत कोरोना वायरस की बेहद घातक दूसरी लहर से लड़ रहा है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन चक्रवातों का नाम कैसे रखा जाता है? आपको जानकर हैरानी होगी कि इसका एक इतिहास और प्रक्रिया है। आइए समझते हैं, चक्रवात 'तौकते' का नाम म्यांमार ने सुझाया है। यह एक बर्मी शब्द है जिसका अर्थ है गेको, एक 'छिपकली' है।
13 देश देते हैं नाम
चक्रवातों का नामकरण विश्व मौसम विज्ञान संगठन/संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग एशिया और प्रशांत (WMO/ESCAP) पैनल ऑन ट्रॉपिकल साइक्लोन (PTC) द्वारा किया जाता है। पैनल में 13 देश शामिल हैं- भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, पाकिस्तान, मालदीव, ओमान, श्रीलंका, थाईलैंड, ईरान, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन। ये 13 देश इस क्षेत्र के चक्रवातों को नाम देते हैं।
13 देशों से 13-13 नाम लिए गए
2004 में समूह (जिसमें आठ देश शामिल थे) ने 64 नामों की एक सूची को अंतिम रूप दिया था। इसमें प्रत्येक देश से आठ नाम थे। पिछले साल मई में भारत में आया चक्रवात अम्फान उस सूची में अंतिम नाम था। निसारगा, एक और चक्रवात जो पिछले साल अरब सागर में उत्पन्न हुआ था। ये ताजा सूची से पहला नाम था। इसका नाम बांग्लादेश ने रखा था। 2018 में WMO/ESCAP ने पांच और देशों को शामिल करने के लिए सूची का विस्तार किया। पिछले साल एक नई सूची जारी की गई थी जिसमें चक्रवातों के 169 नाम हैं। ये 13 देशों से 13-13 नामों का संकलन है।
मददगार होता है चक्रवातों का नाम रखना
चक्रवातों का नामकरण वैज्ञानिक समुदाय, विशेषज्ञों, आपदा प्रबंधन टीमों और आम जनता को प्रत्येक चक्रवात की पहचान करने में मदद करता है। यदि क्षेत्र में एक साथ दो या दो से अधिक चक्रवात आ रहे हों तो इससे भ्रम दूर होता है। नामकरण भविष्य के संदर्भ में भी मदद करता है जब पिछले चक्रवात का उल्लेख या चर्चा करने की आवश्यकता होती है। चक्रवातों के नाम छोटे, सरल और आसानी से समझे जाने वाले होने चाहिए। एक अन्य प्रमुख मानदंड यह है कि वे सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील नहीं होने चाहिए या उनसे कोई भड़काऊ अर्थ व्यक्त नहीं होना चाहिए।