नई दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक बार फिर भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए हैं, जिसके बाद देर रात लोग अपने घरों से बाहर निकल गए। भूकंप के झटके इतने तेज थे कि लोग खौफजदा हो गए। कंपन साफ महसूस किया गया। इसका केंद्र ताजिकिस्तान में बताया जा रहा है, जिसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.3 मापी गई। दिल्ली और आसपास के कई इलाकों में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए।
दिल्ली में बीते कुछ समय में भूकंप के कई झटके महसूस किए गए हैं। अभी 28 जनवरी को भी पश्चिमी दिल्ली के इलाके में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। हालांकि इसकी तीव्रता कम थी, लेकिन दिल्ली में बार-बार आ रहे भूकंप के झटकों को देखते हुए लोगों में चिंता बढ़ती जा रही है। बीते साल भी यहां भूकंप के कई झटके महसूस किए गए थे। आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में दिल्ली या उसके 200 किलोमीटर के दायरे में छोटे-मध्यम तीव्रता के भूकंप के 51 झटके महसूस किए गए थे।
डेंजर जोन-4 में है दिल्ली
दिल्ली में बार-बार आ रहे भूकंप के झटकों को देखते हुए चिंता स्वाभाविक है। दिल्ली को भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील डेंजर जोन-4 में रखा गया है, जिसका अर्थ यह है कि यहां रिक्टर पैमाने पर 8 तीव्रता वाला भूकंप आ सकता है। दिल्ली में यमुना नदी के पास के क्षेत्र, उत्तरी दिल्ली के कुछ इलाकों और दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के कुछ हिस्सों क्षेत्र भूंकप की दृष्टि से सबसे संवेदनशील बताया जाता है। इस लिहाज से देखें तो पूर्वी दिल्ली में शाहदरा, मयूर विहार, लक्ष्मी नगर जैसे इलाके भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील हैं।
भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील दिल्ली में दो साल पहले जमीन के भीतर के संरचना को लेकर एक अध्ययन भी किया गया था, जिसे सिस्मिक माइक्रोजोनेशन कहा जाता है। मिट्टी की संवेदनशीलता जांच कर इसे भूकंपीय खतरे के लिहाज से नौ जोन में बांटा गया था। इसे लेकर केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने एक रिपोर्ट भी जारी की थी, जिससे पता चला है कि दिल्ली में घनी आबादी वाले यमुनापार समेत तीन जोन सर्वाधिक खतरनाक हैं।
वैज्ञानिकों ने किया था अध्ययन
मिट्टी के नमूने लेने के लिए भू-वैज्ञानिकों ने राजधानी दिल्ली में करीब 500 स्थानों पर 30 मीटर और उससे अधिक नीचे तक ड्रिलिंग की थी। इसके जरिये मिट्टी की स्ट्रेंथ का पता किया गया था। भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि जब भूकंप आता है तो मकान का भविष्य काफी हद तक जमीन की संरचना पर भी निर्भर करता है। यदि इमारत नमी वाली सतह यानी रिज क्षेत्र या किसी ऐसी मिट्टी के ऊपर बना है जो लंबे समय तक पानी सोखती है तो उसे ज्यादा खतरा हो सकता है, क्योंकि वहां भूकंप आने पर मिट्टी ढीली हो जाती है।
माइक्रोजोनिंग पर केंद्र सरकार को सौंपी गई उस रिपोर्ट में भवन निर्माण के दौरान माइक्रोजोनिंग के आधार पर भवनों में भूकंपरोधी तकनीक के इस्तेमाल की सलाह भी दी गई थी।