दिल्ली हाई कोर्ट ने धोखाधड़ी के एक मामले में गिरफ्तार एक व्यक्ति को अपनी गर्भवती लिव-इन पार्टनर की देखभाल के लिए तीन सप्ताह की अंतरिम जमानत दी है। महिला मामले में सह आरोपी भी है। जस्टिस पूनम ए बंबा ने आवेदक को 30,000 रुपए के निजी मुचलके पर जमानत के साथ राहत दी। कोर्ट ने यह देखते हुए राहत दी कि उसके बुजुर्ग दादा-दादी के अलावा सह-आरोपी की देखभाल करने वाला कोई नहीं था। महिला कभी भी बच्चे को जन्म दे सकती है।
ट्रायल कोर्ट ने 3 जून के आदेश में कोर्ट ने कहा था कि उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और यह देखते हुए कि वर्तमान में उनके दादा-दादी को छोड़कर (90 साल से ज्यादा के हैं) आरोपी के लिव-इन पार्टनर की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। उनकी रिहाई की तारीख से तीन सप्ताह की अवधि के लिए अंतरिम जमानत दी जाती है।
आवेदक और उसकी गर्भवती साथी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत कई अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें धारा 419 (प्रतिरूपण के लिए धोखाधड़ी), 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी को प्रेरित करना), 468 (धोखाधड़ी के लिए जालसाजी) शामिल हैं। उन पर खुफिया एजेंसियों रॉ और आईबी की फर्जी और जाली आईडी रखने का भी आरोप है।
आवेदक ने इस आधार पर 8 सप्ताह के लिए अंतरिम जमानत मांगी थी कि वह सह-आरोपी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में था जो गर्भावस्था के अंतिम चरण में है और उसके 95 वर्षीय दादा-दादी जो असम से आए थे किसी भी जटिलता के मामले में उसकी देखभाल करने में असमर्थ होंगे। आवेदक ने कहा कि वह अकेला व्यक्ति है जो इस स्तर पर देखभाल प्रदान कर सकता है और आश्वासन दिया कि वह किसी भी तरह से मुकदमे में हस्तक्षेप नहीं करेगा और किसी भी शर्त का पालन करेगा।
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याचिकाकर्ता को रिहा करते हुए अदालत ने उसे निर्देश दिया कि वह सबूतों के साथ छेड़छाड़ न करे और गवाहों को किसी भी तरह से प्रभावित न करे और तय की गई तारीखों पर नियमित रूप से संबंधित अदालत में पेश हो। आवेदक को जांच एजेंसी को अपना मोबाइल नंबर प्रदान करने और अपने मोबाइल को हर समय चालू रखने का भी निर्देश दिया गया है।