नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) समर्थकों एवं विरोधियों के बीच हुई झड़पों में 20 से ज्यादा लोग अपनी जवान गंवा चुके हैं जबकि अस्पतालों में 150 से ज्यादा लोग जख्मी हालत में भर्ती हैं। उत्तर पूर्वी दिल्ली में हिंसा की चपेट में आए इलाकों में तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है। यहां सेना की तैनाती की मांग की जा रही है। राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप जारी है। हिंसा में अब तक जान-माल का काफी नुकसान हो चुका है। सवाल यह है कि क्या दिल्ली को इन हालातों से बचाया जा सकता था क्योंकि दिल्ली में शांति-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार, जनता, पुलिस और प्रशासन सभी की बनती है। अब तक यही सामने आया है कि शुरुआती हिंसा के दौरान प्रशासन और पुलिस की तरफ मुस्तैदी का अभाव दिखा। हिंसा ग्रस्त इलाकों में धारा-144 लागू है और पुलिस हालात पर काबू पाने की कोशिश में है।
शाहीन बाग में जारी है प्रदर्शन
सीएए के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में महिलाओं का धरना जारी है। यहां गत 15 दिसंबर से धरने पर बैठी महिलाएं सीएए वापस लेने की मांग कर रही हैं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। धरना स्थल खाली करने को लेकर शीर्ष अदालत अब 23 मार्च को अपना फैसला सुनाएगा। सीएए गत नौ दिसंबर को लोकसभा और 10 दिसंबर को राज्यसभा से पारित हुआ। इसके बाद विश्वविद्यालय कैंपस से शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन देश के अलग-अलग राज्यों में फैल गया। सबसे पहले इसका विरोध असम सहित पूर्वोत्तर के राज्यों में देखने को मिला। फिर इस प्रदर्शन ने पश्चिम बंगाल को अपनी चपेट में लिया। यहां हावड़ा सहित कई क्षेत्रों में हिंसक प्रदर्शन और आगजनी की घटनाएं देखने को मिलीं।
14 राज्यों में प्रदर्शन, 25 लोगों की मौत
असम और पश्चिम बंगाल के हिंसक उपद्रवों ने देश के अन्य भागों में प्रदर्शन को हवा दे दी। कई दनों तक देश के अलग-अलग राज्यों में हुए हिंसक प्रदर्शनों में कम से कम 25 लोगों की मौत हुई और करोड़ों रुपए की संपत्तियों का नुकसान हुआ। इनमें सबसे ज्यादा 18 मौतें उत्तर प्रदेश में हुईं। प्रदर्शनकारियों ने रेल और सार्वजनिक संपत्तियों को भारी नुकसान पहुंचाया। प्रदर्शन का असर कम से कम 14 राज्यों में देखने को मिला जहां कम से कम एक हिंसक प्रदर्शन हुआ अथवा पुलिस को लोगों को हिरासत में लेना पड़ा/लाठी चार्ज हुआ अथवा कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए दोनों कदम उठाने पड़े।
कई जगहों पर लगा कर्फ्यू , धारा 144
सीएए के खिलाफ उग्र एवं हिंसक प्रदर्शनों पर रोक लगाने के लिए असम के गुवाहाटी एवं डिब्रूगढ़ में कर्फ्यू, दिल्ली के लाल किले इलाके, गुजरात, कर्नाटक, एमपी के 43 जिलों में धारा-144 लागू हुई। मध्य प्रदेश के जबलपुर में कर्फ्यू, शिलांग में कर्फ्यू और पूरे यूपी में धारा-144 लागू करनी पड़ी। ध्यान देने वाली बात है कि इस कानून पर देश ही नहीं विदेशों से भी प्रतिक्रिया देखने को मिली। पाकिस्तान की प्रतिक्रिया तो समझी जा सकती है लेकिन इस पर अमेरिका और यूरोपीय यूनियन में भी चिंता जताई गई।
मुस्लिम समुदाय में डर
सवाल यह है कि क्या देश को इस जान-माल के नुकसान से बचाया जा सकता था। तो इसका जवाब बहुत कुछ हां में हो सकता है। विपक्ष का कहना है कि यह कानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और यह धर्म के आधार पर नागरिकता देना भारतीय समाज में अलगाव पैदा करने वाला है। दूसरा, इस कानून के आने से मुस्लिम समुदाय में डर पैदा हुआ है कि आने वाले समय में उनकी नागरिकता पर सवाल उठाए जा सकते हैं या नागरिकता के मसले पर उन्हें परेशान किया जा सकता है। विपक्ष का विरोध और मुस्लिम समुदाय में डर की आशंका सीएए की खिलाफत की मूल में है।
प्रदर्शन इतना व्यापक होगा, सरकार को नहीं थी उम्मीद
देश भर में सीएए का विरोध जिस तीव्रता एवं बड़े पैमाने पर हुआ उसकी उम्मीद सरकार को भी नहीं थी। भाजपा के कुछ नेताओं की मानें तो उन्होंने यह स्वीकार किया कि सीएए के खिलाफ विरोध का स्तर इतना व्यापक होगा, इसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी। प्रदर्शनों के असर और व्यापकता को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिल्ली की एक रैली में जोर देकर कहना पड़ा कि एनआरसी पर अभी दूर-दूर तक कोई चर्चा नहीं हुई। जबकि गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि एनआरसी देश भर में लागू होगी और सरकार का यह अगला कदम होगा।
एनआरसी पर बनी भ्रम की स्थिति
जाहिर है कि एनआरसी पर प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के बयानों ने मुस्लिम समुदाय में भ्रम की स्थिति पैदा की। मुस्लिम समुदाय का कहना है कि पीएम एनआरसी पर कुछ और गृह मंत्री कुछ और कह रहे हैं। इससे भ्रम की स्थिति बनी है। वे किसकी बात पर विश्वास करें। रही विपक्ष की बात तो विरोध करना उनका लोकतांत्रिक अधिकार है। विपक्ष यदि सीएए पर कथित रूप से भ्रम और झूठ फैला रहा है तो सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह उसकी आशंकाओं एवं आरोपों का खंडन अपने तथ्यों एवं दलीलों से करे।
टकराव को टाला जा सकता था
हिंसक प्रदर्शनों की अगर बात करें तो सुरक्षा एजेंसियों की जांच में इन उग्र प्रदर्शनों के पीछे पीएफआई सहित असमाजिक तत्वों का हाथ होने की बात कही गई है। बताया जा रहा है कि प्रदर्शनों को हिंसक बनाने और लोगों को हिंसा के लिए उसकाने के लिए पीएफआई की तरफ से फंडिंग की गई। यह बात अगर सच है तो यह सरकार के लिए काफी चिंता का विषय है। इन घटनाओं से जाहिर है कि सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियों को इस तरह के विरोध-प्रदर्शनों की भनक नहीं लगी। प्रदर्शन की व्यापकता से सरकार भी कहीं न कहीं अनभिज्ञ रही। सरकार को यह समझना चाहिए था कि नागरिकता देने के दायरे से एक धर्म विशेष को बाहर रखने के उसके फैसले पर विपक्ष उसे घेर सकता है। सरकार यदि थोड़ा सचेत और सतर्क रहती तो हिंसक एवं उग्र प्रदर्शनों को रोका जा सकता था और जान-माल की क्षति बचाई जा सकती थी।