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ED के निशाने पर गांधी परिवार, 35 साल पहले भी उठे थे सवाल, जानें कैसे आया था राजनीतिक भूचाल

rahul gandhi and sonia gandhi national herald
Updated Jun 16, 2022 | 17:48 IST

National Herald Case: प्रवर्तन निदेशालय 3 दिनों से कांग्रेस नेता राहुल गांधी से पूछताछ कर रहा है। जबकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी पूछताछ के लिए समन भेजा जा चुका है।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
नेशनल हेराल्ड केस में गांधी परिवार निशाने पर
मुख्य बातें
  • आज से 35 साल पहले साल 1987 में बोफोर्स घोटाले ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया था।
  • साल 2004 में कोर्ट ने स्वर्गीय राजीव गांधी को बोफोर्स मामले में बरी कर दिया था।
  • AJL का गठन साल 1938 में पंडित जवाहर लाल नेहरू की अगुआई में कई स्वतंत्रता सेनानियों ने मिलकर किया था।

Rahul Gandhi Questioned by ED: गांधी परिवार सवालों के घेरे में है। मामला नेशनल हेराल्ड (National Herald) मनी लॉन्ड्रिंग केस का है। जिसको लेकर प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) पिछले 3 दिनों से कांग्रेस नेता राहुल गांधी से पूछताछ कर रहा है। जबकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी पूछताछ के लिए समन भेजा चुका है। सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) फिलहाल कोरोना से संक्रमित होने के कारण अस्पताल में भर्ती हैं और इस कारण वह अभी ईडी के सामने पेश नहीं हो पाई हैं। 

गांधी परिवार का सीधे जांच के दायरे में आना, आज से 35 साल पहले की घटना की याद दिलाता है। जिसकी वजह से पूरे देश की राजनीति में भूचाल आ गया था। और पहली बार सीधे तौर पर भ्रष्टाचार के आरोप के दायरे में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी  थे। उस वक्त बोफोर्स घोटाले (Bofors Scam) के नाम से चर्चित मामले की वजह से कांग्रेस को 1989 के चुनाव में सत्ता भी गंवानी पड़ गई थी। आम चुनावों में पार्टी के खिलाफ ऐसा माहौल बन गया था कि वह 404 सीटों से गिरकर 193 सीटों पर आ गई थी। 

इस बार क्यों है गांधी परिवार निशाने पर

ईडी गांधी परिवार की मालिकाना हक वाली कंपनी यंग इंडियन लिमिटेड की 800 करोड़ की संपत्ति मामले में जांच कर रही है। उसका आरोप है कि जब कंपनी किसी तरह की व्यावसायिक गतिविधियों में शामिल  नहीं है। तो 2010 में मात्र 5 लाख रूपये की पूंजी से शुरू हुई कंपनी के पास इतनी संपत्ति कहां से आ गई । चूंकि यंग इंडिया का मालिकाना हक राहुल गांधी और सोनिया गांधी के पास है, ऐसे में वह शक के दायरे में हैं। और अब इसी मामले में राहुल गांधी से लगातार पूछताछ की जा रही  है।

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यंग इंडिया की संपत्ति में इजाफे की वजह नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन करने वाली कंपनी असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के अधिग्रहण को बताया जाता है। महज 3 महीने पहले बनी यंग इंडिया ने 2010 में घाटे में चल रही असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL)को खरीद लिया थी। एजीएल को कांग्रेस पार्टी ने 90 करोड़ रुपये का लोन भी दे रखा था। AJL का गठन साल 1938 में पंडित जवाहर लाल नेहरू की अगुआई में सैकड़ों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने मिलकर किया था । जिनका मकसद एक क्रांतिकारी अखबार शुरू करना और उसके जरिए आजादी की लड़ाई को तेज करना था। कंपनी ने नेशनल हेराल्ड नाम से अंग्रेजी में , कौमी आवाज नाम से उर्दू में और नवजीवन नाम से हिंदी में अखबार निकालना शुरू किया। AJL में पंडित नेहरू के अलावा 5000 दूसरे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के भी शेयर थे। आजादी के बाद ये तीनों अखबार कांग्रेस के मुखपत्र बन गए। साल 2008 में AJL की माली हालत ठीक नहीं होने के कारण नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन बंद कर दिया गया। और बाद में उसी AJL को गांधी परिवार की स्वामित्व वाली कंपनी यंग इंडिया ने खरीद लिया।

मामला तब खुला जब AJL के कई शेयरहोल्डरों ने सौदे पर ये कहकर सवाल उठाया कि उन्हें इसकी कोई जानकारी ही नहीं दी गई और न ही उनकी सहमति ली गई । फिर 2012-13 में बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी पूरे मामले पर अदालत में चले गए। दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में उन्होंने आरोप लगाया कि यंग इंडिया लिमिटेड द्वारा AJL का अधिग्रहण गैरकानूनी तौर पर हुआ है। और सिर्फ 50 लाख रुपये देकर AJL के 90 करोड़ रुपये के कर्ज की वसूली का अधिकार हासिल कर लिया यही नहीं 2000 करोड़ रुपये से ज्यादा की सपत्तियों का मालिकाना हक भी हासिल कर लिया।

1987 में क्या हुआ था

गांधी परिवार कुछ इसी तरह शक के दायरे में, आज से 35 साल पहले साल 1987 में आया था। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार पर बोफोर्स सौदे में दलाली के आरोप लगे थे। उस वक्त अप्रैल 1987 में स्वीडिश रेडियो ने दावा किया था कि स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स ने सौदे के लिए भारत के वरिष्ठ राजनीतिज्ञों और रक्षा विभाग के अधिकारी को 60 करोड़ रुपये घूस दिए थे। और शक की सुई सीधे राजीव गांधी के ऊपर आ गई थी। इसके पहले साल 1986 में भारत सरकार और स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स के बीच, 400 होवित्जर तोप की सप्लाई के लिए1437 करोड़ रुपये का सौदा हुआ था। हालांकि इन आरोपों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सफाई देते हुए कहा था कि न ही कोई रिश्वत दी गई और न ही बीच में किसी बिचौलिये की भूमिका थी।

लेकिन इस आरोप ने भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया था और पूरे मामले की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया गया। इस बीच 1989 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की बुरी हार हुई और कांग्रेस से अलग हुए वी.पी.सिंह के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनीं। और 1990 में सीबीआई ने आपराधिक षडयंत्र, धोखाधड़ी और जालसाजी का मामला दर्ज किया। मामला एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन आर्डबो, कथित बिचौलिये विन चड्ढा और हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ दर्ज हुआ।  इटली के व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोकी पर बोफोर्स घाटाले में दलाली के जरिए घूस लेने का आरोप लगा। और लंबे चले केस के बाद 2004 में कोर्ट ने स्वर्गीय राजीव गांधी को इस मामले में बरी कर दिया। लेकिन बोफोर्स मामले ने भारत की राजनीति की दिशा ही बदल दी और उसके बाद से कांग्रेस के लिए अपने दम पर (बहुमत) सत्ता पाना मुश्किल होता चला गया।

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