- 25 जून को भारत में आपातकाल की घोषणा की गई, उस समय पीएम इंदिरा गांधी थीं
- इंदिरा गांधी को लगने लगा था कि बाहरी ताकतों के इशारे पर उनकी सरकार को गिराने की साजिश रची जा रही है।
- आपातकाल हटने के बाद सत्ता से बाहर हो गईं और गैर कांग्रेसी दल शासन में आया
25 जून का दिन आते ही 46 साल पहले का वो दृश्य नजर आता है जब एकाएक विपक्षी दलों के नेताओं को जेलों में ठूसा जाने लगा। प्रेस की आजादी पर कड़ा प्रहार किया गया। जो लोग सरकार की हां में हां नहीं मिलाते थे उनकी मंजिव पहले से जेल तय कर दी गई थी। आजादी की लड़ाई के दौरान जिन लोगों ने अपनी जवानी कुर्बान कर दी वो तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को षड़यंत्रकारी नजर आने लगे थे। ऐसे में यह विचार कौंधता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि इंदिरा गांधी को लगने लगा था कि अब अनुच्छेद 352 लागू करने का समय आ चुका है।
आपातकाल के उपबंधों पर नहीं थी एका
देश की आजादी के बाद संविधान सभा में जब कुछ खास उपबंधों पर चर्चा हो रही थी तो विवाद और विचार आपातकाल के उपबंध को लेकर हुआ। ज्यादातर लोगों का मानना था कि जिस दमनकारी सत्ता के खिलाफ लड़ाई लड़ कर हम सब खुली हवा में सांस ले रहे हैं क्या उन सांसों को फिर से कैद करने के लिए आपातकाल के उपबंध हथियार नहीं बनेंगे। इस सवाल के जवाब में तर्क दिया गया है अंग्रेज सिर्फ इस देश के दोहन के लिए आए थे। उन्हें भारतीयों से रीत प्रीत नहीं थी। लेकिन अब जब हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं और हम लोगों में से ही कोई शासन करेगा तो वो शासक नहीं बल्कि सेवक के भाव से करेगा। लेकिन वो मिथ 1975 में आकर टूट गया।
आपातकाल के 12 बड़े तथ्य
- आजादी के बाद से यह भारत का तीसरा आपातकाल था जो हमें बता रहा था कि राजनीतिक परिस्थितियां कितनी अस्थिर थीं।
- 1971 के पाकिस्तान के साथ युद्ध ने देश को बुरी स्थिति में छोड़ दिया। सूखे और तेल संकट जैसी समस्याओं ने अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया जिससे तनाव का स्तर बढ़ गया।
- हर जगह हड़ताल और विरोध प्रदर्शन और एक राजनीतिक विरोध का उदय आर्थिक पतन के लिए जिम्मेदार था।
- इस दौरान इंदिरा गांधी ने अर्थव्यवस्था की मदद और गरीबी और निरक्षरता से लड़ने के लिए 20 सूत्री कार्यक्रम पेश किया।
- सेंसरशिप ने एक बड़ी भूमिका निभाई। यह प्रेस, सिनेमा और कला के अन्य रूपों पर लगाया गया था, और राजनीतिक नेताओं को सरकार की इच्छा और कल्पना पर गिरफ्तार किया जा रहा था।
- राजनीतिक नेता और प्रदर्शनकारी भूमिगत होने लगे लेकिन फिर भी अपना विरोध जारी रखा। गांधीजी सत्ता के ऊपर चढ़ रहे थे।
- चुनाव स्थगित कर दिए गए।
- इंदिरा गांधी को लगा कि देश के मौजूदा कानून बहुत धीमे हैं। इसलिए उसने कानून को फिर से लिखने के लिए इसे अपने ऊपर ले लिया।
- वह डिक्री द्वारा शासन कर रही थी और उसके कार्यों के लिए उसकी भारी आलोचना की गई थी।
- 1977 में आपातकाल के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी ने गांधी परिवार को बाहर कर दिया।
- सबसे ज्यादा नुकसान मीडिया को हुआ। कागजों में जो कुछ भी गया उसकी सबसे पहले सरकार द्वारा जांच की जाएगी। इंडियन एक्सप्रेस विशेष रूप से बाहर खड़ा था - आपातकाल लगाने के बाद, इसमें संपादकीय के बजाय एक खाली पृष्ठ शामिल था। द फाइनेंशियल एक्सप्रेस में रवींद्रनाथ टैगोर की कविता थी, "जहां मन बिना डर के है, और सिर ऊंचा है"।
- लोग मारे गए और यह सब रिपोर्ट नहीं किया गया।
आज भी आपातकाल पर होता है वाद विवाद
लोकतंत्र की मजबूती के लिए आपात उपबंधों को अच्छा नहीं माना जाता है। डॉ अंबेडकर ने कहा का कि संविधान का कोई भी उपबंध खराब नहीं है। लेकिन जब कार्यपालिका में बैठ हुए शख्स का दिमाग निरंकुश हो जाएगा तो वो लोकतंत्र के लिए काला अध्याय ही साबित होगा। करीब 46 साल बाद भी इस बात पर चर्चा होती है कि क्या इंदिरा गांधी के पास उसके अलावा कोई रास्ता नहीं था। हर एक राजनीतिक दल जब सत्ता में रहते हैं तो वो अपने सभी कृत्यों का विधि सम्मत ठहराते हैं। लेकिन विपक्ष में रहने के दौरान उन्हें सरकारी कारनामों में फांसीवाद की झलक दिखने लगती है।