- भारत सप्लाई चेन के बिना किसी बाधा के काम करने को लेकर, सबसे ज्यादा आशान्वित है।
- IPEF के जरिए इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में चीन के दबदबे को रोकने की कोशिश है।
- IPEF का मकसद सप्लाई चेन की राह में आने वाले अवरोधों को दूर करना और सहयोग बढ़ाना है।
IPEF And India: 2022 का क्वॉड (Quad)सम्मेलन कई मायने में खास है। ऐसा इसलिए है कि इस सम्मेलन में खुले तौर पर चीन को चुनौती दी जा रही है। पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का ताइवान मामले पर चीन को चेतावनी वाला बयान और फिर सम्मेलन शुरू होने से पहले इंडो पेसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (Indo Pacific Economic Framework) के ऐलान ने साफ कर दिया है, कि अमेरिका इंडो पेसिफिक क्षेत्र में अपनी 2017 वाली रणनीति में बदलाव कर रहा है। और वह किसी भी हालत में चीन का इस क्षेत्र में दबदबा बढ़ाना नहीं चाहता है।
क्या है IPEF
इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क जो बाइडेन की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप की उस फैसले को बदलना चाहते हैं । जब ट्रंप ने ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP)से किनारा कर लिया था। अब बाइडेन IPEF के जरिए एक बार फिर से इस क्षेत्र में अमेरिका की हिस्सेदारी और विश्वसनीयता बढ़ाना चाहते हैं। IPEF सदस्य देशों के बीच अधिक से अधिक आर्थिक साझेदारी सुनिश्चित करने पर जोर देगा। इसका उद्देश्य एक ऐसा मंच तैयार करना है जिसमें सदस्य देश अपनी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बातचीत के लिए साथ आ सके।
इस समूह में अमेरिका ,भारत, ऑस्ट्रेलिया,जापान, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम शामिल हैं। इन देशों का विश्व की जीडीपी में हिस्सा 40 फीसदी से ज्यादा है। ऐसा अनुमान है कि इस समूह में सदस्य देशों की संख्या बढ़ेगी।
चीन के दबदबे को रोकेगा
IPEF को चीन से दूर एक अलग आर्थिक धुरी के रूप में भी देखा जा रहा है। असल में एशिया में दो प्रमुख कारोबारी समूह सीपीटीपीपी (CPTPP) और आरसीईपी (RECP) हैं। जहां तक चीन की बात है तो वह ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप यानी सीपीटीपीपी (CPTPP)की सदस्यत चाहता है। वहीं वह रीजनल कॉम्प्रिहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RECP) का सदस्य है। अमेरिका TPP से पहले ही अलग हो चुका है और RECP का वह सदस्य नहीं है। इसी तरह भारत भी दोनों समूह का सदस्य नहीं है। वह RECP से अलग हो चुका है। ऐसे में अमेरिका की कोशिश है कि वह IPEF के जरिए न केवल चीन के दबदबे को रोके बल्कि इस क्षेत्र में फिर से अपनी विश्वसनीयता बनाए। और इस काम में भारत उसका अहम साझेदार बन सकता है।
क्या काम करेगा IPEF
ऐसा माना जा रहा है कि आईपीईएफ में पारंपरिक फ्री ट्रेड एग्रीमेंट से अलग रास्ता अपनाया जाएगा। इसमें दो देश आपसी जरूरतों के देखते हुए तेजी से फैसले ले सके, इस पर ज्यादा फोकस किया जाएगा। इस समझौते से अमेरिकी और एशियाई अर्थव्यवस्थाएं सप्लाई चेन, डिजिटल व्यापार, ग्रीन एनर्जी ऊर्जा समेत कई मुद्दों पर साथ काम करेंगी। IPEF का मकसद सप्लाई चेन की राह में आने वाले अवरोधों को दूर करना और सहयोग बढ़ाना है। जिसका सबसे ज्यादा असर कोविड दौर में देखा गया है। और इसको लेकर चीन पर आरोप लगते रहे हैं कि उसने सप्लाई चेन में बाधा पहुंचाई।
भारत को क्या फायदा
IPEF के ऐलान के समय जापान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे। IPEF पर उन्होंने कहा है कि यह दुनिया के आर्थिक विकास का इंजन बनेगा। भारत हमेशा मुक्त, खुला और समावेशी इंडो पेसिफिक क्षेत्र को लेकर प्रतिबद्ध रहा है। यह क्षेत्र आर्थिक गतिविधि और निवेश का केंद्र रहा है। ऐसे में जरूरी है कि हम इस क्षेत्र की आर्थिक चुनौतियों का समाधान खोजें और व्यवस्थाएं बनाएं। विश्वास, पारदर्शिता और सामयिकता हमारे बीच लचीली सप्लाई चेन के तीन मुख्य आधार होने चाहिए।
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प्रधानमंत्री के बयान से साफ है कि भारत सप्लाई चेन के बिना किसी बाधा के काम करने को लेकर, सबसे ज्यादा आशान्वित है। क्योंकि कोविड दौर में इसका सबसे बड़ा असर हुआ है। इसके अलावा एशिया में वह क्वॉड और IPEF के जरिए अपने आर्थिक हितों को बेहतर तरीके साध सकेगा। हालांकि यह फ्रेमवर्क कैसे काम करता है, इसकी शर्तें क्या होंगी और उसका कितना फायदा मिलेगा, इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा। तभी जाकर तस्वीर साफ होगी।