- कपिल सिब्बल ने 2004 में दिल्ली की चांदनी चौक सीट से भाजपा की स्मृति ईरानी को हराया था।
- वह आजम खान और लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं के केस की पैरवी कर चुके हैं।
- सिब्बल का जुलाई 2022 में राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा था।
Kapil Sibal Left Congress: करीब 30 साल का कांग्रेस से साथ और पिछले 2 साल से लगातार गांधी परिवार के नेतृत्व पर सवाल उठाने वाले वरिष्ठ राजनीतिज्ञ कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने कांग्रेस को अलविदा कर दिया है। सिब्बल ने यह इस्तीफा बीते 16 मई को दिया। इस्तीफे की टाइमिंग देखकर यह समझा जा सकता है। उदयपुर में हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर के बाद सिब्ब्ल और गांधी परिवार के बीच कमजोर डोर टूट गई और वह भी उन नेताओं की लिस्ट में शामिल हो गए, जो कभी कांग्रेस के मजबूत स्तंभ हुआ करते थे। 73 साल के कपिल सिब्बल ने भी वहीं किया , जो कांग्रेस का साथ छोड़ने वाले दूसरे नेताओं ने किया। सिब्बल ने अपनी भविष्य की राजनीतिक पारी को संवारने के लिए समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के सहारे राज्यसभा में जाने का कदम उठाया है। सिब्बल का जुलाई 2022 में राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा था। और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के रुख से यह भी तय था कि वह उन्हें फिर से राज्यसभा में भेजने के मूड में नहीं है।
16 मई को इस्तीफे का मतलब
वैसे तो राजस्थान के उदयपुर में 13-15 मई तक हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर से उम्मीदें तो पार्टी को मजबूत करने की थी । लेकिन लगता है शिविर ने कई नेताओं को अलग राह दिखा दी है। इसीलिए गुजरात के कार्यवाहक अध्यक्ष हार्दिक पटेल (Hardik Patel), पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ और अब कपिल सिब्बल ने पार्टी छोड़, अलग राह पकड़ ली है। कपिल सिब्बल ने आज (25 अप्रैल) जैसा कि बताया कि वह 16 मई को ही कांग्रेस छोड़ चुके हैं। उससे साफ हो गया कि उन्होंने चिंतन शिविर में कांग्रेस नेतृत्व के रवैये को देखने के बाद ही यह फैसला किया है। सूत्रों के अनुसार सिब्बल को उम्मीद थी कि कांग्रेस में सुधार के लिए आयोजित किए गए चिंतन शिविर से सुलह का रास्ता निकलेगा। लेकिन राहुल गांधी से उनकी दूरी ने सुलह के रास्ते बंद कर दिए। जिसके बाद उन्होंने यह फैसला किया।
चिंतन शिविर में मिले थे ये संकेत
असल में सिब्बल को उस समय इशारा मिल गया था, जब कांग्रेस के चिंतन शिविर में पॉलिटिकल अफेयर्स कमिटी बनाने की रूपरेखा पर मंथन हो रहा था। उन्होंने यह समझ आ गया था कि अब पार्टी नेतृत्व से उनकी दूरियां कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं। और उसके सबूत 24 मई को कांग्रेस द्वारा जारी पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी और टॉस्क फोर्स के सदस्यों के नाम से मिलते हैं। इन लिस्ट में G-23 समूह में शामिल गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा को जगह मिली है।
अगस्त 2020 में कांग्रेस नेतृत्व पर उठाए थे सवाल
जब राहुल गांधी 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष बनाए गए थे, तो उनका शुरू से यह मानना रहा कि पार्टी को युवा ब्रिगेड की जरूरत है। और इस कड़ी में कपिल सिब्बल जैसे नेता उनकी गुड बुक से दूर होते चले गए । यही कारण है कि जब 2019 में कांग्रेस पार्टी को लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के नेतृत्व में करारी हार का सामना करना पड़ा। तो सिब्बल जैसे नेता पार्टी मीटिंग में कहीं ज्यादा मुखर होने लगे थे। इस बीच राहुल गांधी ने भी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और कोई नया अध्यक्ष नहीं चुना गया । लगातार हार और नेतृत्व न होने की स्थिति में पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं ने अगस्त 2020 में सोनिया गांधी के नाम एक खुली चिट्ठी लिखी थी। और उसमें कांग्रेस की बुरी हालत, नेतृत्व अकुशलता पर सवाल उठाए थे। इन नेताओं के समूह को G-23 कहा जाता है। और समूह की कपिल सिब्बल ने काफी मुखरता से अगुआई की। और लगातार मीडिया और बैठकों के जरिए सिब्बल इस मुद्दे को उठाते रहे। अभी मार्च में पांच राज्यों में कांग्रेस की करारी हार के बाद भी G-23 के नेताओं ने बैठककर फिर से बड़े सुधारों की बात कही।
'घर की कांग्रेस' की जगह 'सबकी कांग्रेस' से बिगड़े संबंध ?
पांच राज्यों के चुनाव में हार के बाद कपिल सिब्बल का एक बयान काफी सुर्खियों में रहा था। उन्होंने कहा था कि अब वक्त आ गया है कि कांग्रेस पार्टी को घर की कांग्रेस की जगह सबकी कांग्रेस के दिशा में काम करना चाहिए। साफ है सिब्बल गांधी परिवार पर निशाना साध रहे थे। हालांकि इस बीच वह यह भी कहा करते थे कि हम कांग्रेस छोड़ कर कहीं जाने वाले नहीं है। जब तक हमें निकाला नहीं जाएगा, हम कांग्रेस नहीं छोड़ेगे। लेकिन सिब्बल अपने इस तीखे बयान के कारण गांधी परिवार के करीबी नेताओं के निशाने पर आ गए थे। वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने यहां तक कह दिया था कि कपिल सिब्बल अच्छी वकील हो सकते हैं पर अच्छे नेता नहीं है। वह लगातार पार्टी को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाएंगे।
'केवल दरबारियों की पार्टी बनकर रह गई है कांग्रेस', सिब्बल के पार्टी छोड़ने पर BJP का तंज
विपक्ष के पसंदीदा वकील
कपिल सिब्बल यूपीए सरकार में टेलीकॉम, साइंस और आईटी मंत्रालय के मंत्री के रूप में प्रमुख रूप से काम कर चुके हैं। उस समय 2जी घोटाले पर जीरो लॉस (Zero loss) का बयान भी काफी चर्चा में रहा था और भाजपा ने 2014 के चुनाव में उसे काफी भुनाया था। वह 2004 में दिल्ली की चांदनी चौक सीट से कांग्रेस के सांसद रह चुके हैं। उन चुनावों में उन्होंने भाजपा की स्मृति ईरानी को हराया था। वह 2009 भी वहां से चुनाव जीत चुके हैं। राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ कपिल सिब्बल वरिष्ठ वकील भी है। अभी सपा नेता आजम खान (Azam Khan) का केस उन्होंने ही लड़ा था और उनकी दलीलों के बाद ही आजम खान को रिहाई मिली है। इसके अलावा वह लालू प्रसाद यादव का भी केस लड़ रहे हैं। अप्रैल से झारखंड हाईकोर्ट से मिली जमानत के समय सिब्बल ही लालू के वकील थे।