- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुलाम नबी आजाद की कई मौके पर प्रशंसा कर चुके हैं।
- गुलाम नबी आजाद G-23 के उन नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने अगस्त 2020 में कांग्रेस की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे।
- जम्मू और कश्मीर में आजाद के कई समर्थक नेताओं ने नवंबर में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था।
नई दिल्ली: वैसे तो मौका बधाई देने का है, लेकिन लगता है कांग्रेस पार्टी में कुछ नेताओं उनके वरिष्ठ साथी और जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद को पद्य भूषण मिलना रास नहीं आ रहा है। एक तरफ उनके साथ जय राम रमेश तंज और नसीहत देते हुए ट्वीट पर ट्वीट किए जा रहे हैं। वहीं उनके दूसरे साथी कपिल सिब्बल पार्टी पर निशाना साधते हुए कह रहे हैं कि लगता है कि कांग्रेस पार्टी को गुलाम नबी आजाद की जरूरत नहीं है। इसके अलावा खबर लिखे जाने तक कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के तरफ से भी आजाद को पद्य पुरस्कार मिलने की कोई सार्वजनिक बधाई नहीं आई है। साफ है कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा कांग्रेस नेता को पुरस्कार मिलना कई नेताओं को रास नहीं आया है।
जयराम रमेश के ट्वीट का क्या है मतलब
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जब पद्य पुरस्कारों का ऐलान किया गया तो उसमें गुलाम नबी आजाद के साथ पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और कम्युनिस्ट नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य का भी नाम था। और उन्होंने पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया। इसी पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने ट्वीट किया कि सही कदम यही है, वह आजाद रहना चाहते थे न कि गुलाम। जाहिर है उनका ट्वीट गुलाम नबी आजाद पर तंज था। वह यही नहीं रुके उसके बाद उन्होंने एक और ट्वीट किया जिसमें उन्हें नौकरशाह पी.एन.हक्सर को पद्य पुरस्कार दिए जाने और उसे इंकार करने का जिक्र किया। साफ है कि यहां भी वह गुलाम नबी आजाद पर ही तंज कर रहे थे।
बेचैनी का कारण
असल में गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के उन नेताओं में शामिल हैं, जो अगस्त 2020 में कांग्रेस की कार्यशैली और पार्टी में व्याप्त असमंजस पर सवाल उठा चुके हैं। इन नेताओं के समूह को जी-23 कहा जाता है। जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल भी शामिल हैं। उन्ही सिब्बल ने न केवल गुलाम नबी आजाद को पद्य पुरस्कार मिलने पर बधाई दी बल्कि यह भी लिखा कि कांग्रेस पार्टी को गुलाम नबी आजाद की जरूरत नहीं है। सिब्बल का ट्वीट पार्टी के अंतर्कलह को स्पष्ट कर देता है। इन नेताओं द्वारा सार्वजनिक रूप से पत्र लिखे जाने के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने इन नेताओं की अनदेखी करनी शुरू कर दी और उन्हें कई समितियों से बाहर कर दिया गया।
असल में जिस तरह पार्टी के वरिष्ठ और कद्दावर नेता कांग्रेस छोड़कर जा रहे हैं, ऐसे में पार्टी में बेचैनी बढ़ती जा रही है। पिछले 2-3 साल में ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, सुष्मिता देव जैसे कद्दावर नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया। इसकी वजह से पार्टी में इस बात का डर है कि आने वाले समय में दूसरे नेता भी कांग्रेस का साथ छोड़ सकते हैं।
गुलाम नबी आजाद के हाल के बयानों का सियासी मतलब
राज्य सभा में नेता विपक्ष का कार्यकाल खत्म होने के बाद से गुलाम नबी आजाद काफी मुखर हैं। उन्होंने दिसंबर में एक इंटरव्यू में कहा था कि मौजूदा पीढ़ी सुझावों पर ध्यान नहीं देती। उन्होंने साथ में यह भी कहा कि भले ही ये सुझाव कांग्रेस के दिग्गज नेता क्यों ने दें, लेकिन इसे अपराध और विद्रोह के तौर पर ही देखा जाता है।
इसी तरह उन्होंने बीते नवंबर की पुंछ की रैली में कहा कि कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव में 300 से अधिक सीटें मिलती नहीं दिखाई पड़ रही हैं। कुछ लोग ऐसा दावा कर रहे हैं, लेकिन मुझे होता नहीं दिख रहा है। उन्होंने कहा कि धारा 370 को बहाल करने के लिए कांग्रेस को 300 से अधिक सीट मिलनी चाहिए। लेकिन 2024 में ऐसा होता हमें नहीं दिख रहा है। इस बीच उनका एक और बयान एक चैनल को दिए इंटरव्यू में सामने आया है। उन्होने कहा कि वह एक नई पार्टी शुरू नहीं कर रहे हैं, लेकिन भविष्य के बारे में वह कुछ नहीं कह सकते हैं क्यों राजनीति में कब-क्या हो कहा नहीं जा सकता है।
पद्य पुरस्कार मिलने पर सोशल मीडिया पर ऐसी फेक न्यूज भी चली कि आजाद ने अपने प्रोफाइल से कांग्रेस हटा दिया है। हालांकि उन्होंने इसका खंडन कर इसे गलत करार दिया।
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आजाद के समर्थक कांग्रेसी नेताओं ने दिए इस्तीफे
इस बीच नवंबर महीने में ही जम्मू और कश्मीर में गुलाम नबी आजाद के कई समर्थक नेताओं ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इसमें राज्य की सरकारों में रहे पूर्व मंत्री भी शामिल थे। उन्हें राज्य के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए इस्तीफा दिया था। हालांकि आजाद ने इस पर यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि उन्हें कोई जानकारी नहीं है। जम्मू और कश्मीर के कठुआ में आजाद ने एक रैली भी की, जिसे पार्टी नेतृत्व द्वारा शक्ति प्रदर्शन के रुप में देखा गया। और उन्होंने वहां पर कहा कि मैं वहीं करूंगा जो राज्य की बेहतरी के लिए लोग मुझसे कराना चाहते हैं। इस रैली के बाद आजाद को कांग्रेस ने अनुशासनात्मक समिति से बाहर कर दिया।
मोदी और आजाद एक दूसरे की करते हैं प्रशंसा
राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे गुलाम नबी आजाद के विदाई समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी जमकर तारीफ की थी। उस दौरान आजाद के मुख्यमंत्री रहने के दौरान हुई एक आतंकी घटना का जिक्र कर प्रधानमंतरी भावुक भी हुए और उन्हें सैल्यूट किया । और उसके बाद एक समारोह में आजाद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उसी तरह जमकर तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री अपनी असलियत नहीं छुपाते हैं और अतीत के बारे में खुलकर बात करते हैं। अपनी जड़ों को याद रखने की सीख उनसे लेनी चाहिए।
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