- पीएमएलए पर रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई
- पीएमएल पर ईडी के अधिकार क्षेत्र को सुप्रीम कोर्ट ने माना है वैध
- याचियों ने व्यक्तिगत आजादी का किया है जिक्र
पीएमएलए से संबंधि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय और केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है। दरअसल कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने पीएमएलए के तहत ईडी द्वारा संपत्तियों को अटैच किए जाने के संबंध में याचिका लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 27 जुलाई के आदेश में पीएमएलए की वैधता को बरकरार रखा था।
होगी खुली सुनवाई
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की पीठ ने आज चैंबर्स में याचिका पर विचार किया था। आदेश में कहा गया था कि मौखिक सुनवाई के लिए आवेदन की अनुमति दी जाती है। मामले को 25 अगस्त, 2022 को अदालत में सूचीबद्ध करें।"सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई को पीएमएलए के प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखा था।फैसले में मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में सख्त जमानत शर्तों को बरकरार रखा गया, जो सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसलों के विपरीत था।
अदालत ने धारा 3 (धन शोधन की परिभाषा), 5 (संपत्ति की कुर्की), 8(4) [संपत्ति का कब्जा लेना), 17 (खोज और जब्ती), 18 (व्यक्तियों की तलाशी) की वैधता को भी बरकरार रखा था। 19 (गिरफ्तारी की शक्तियां), 24 (सबूत का उल्टा बोझ), 44 (विशेष अदालत द्वारा विचारणीय अपराध), 45 (अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती और अदालत द्वारा जमानत देने के लिए जुड़वां शर्तें) और 50 (ईडी को दिए गए बयान) से जुड़े समीक्षाधीन निर्णय में यह भी कहा गया कि पीएमएलए कार्यवाही के तहत प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) की आपूर्ति अनिवार्य नहीं है क्योंकि ईसीआईआर एक आंतरिक दस्तावेज है और इसे प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के बराबर नहीं किया जा सकता है।
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ईसीआईआर की तुलना एफआईआर से नहीं
ईसीआईआर की तुलना एफआईआर से नहीं की जा सकती और ईसीआईआर ईडी का आंतरिक दस्तावेज है।आरोपी को ईसीआईआर की आपूर्ति अनिवार्य नहीं है और गिरफ्तारी के दौरान केवल कारणों का खुलासा करना ही पर्याप्त है। यहां तक कि ईडी मैनुअल को भी प्रकाशित नहीं किया जाना है क्योंकि यह एक आंतरिक दस्तावेज है। हालाकि, कोर्ट ने कहा था कि 2019 में पीएमएलए अधिनियम में संशोधन को धन विधेयक के रूप में लागू करने का प्रश्न सात न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ द्वारा तय किया जाना है, जिनके समक्ष एक ही प्रश्न पहले से ही लंबित है।
संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को नकारने के रूप में कानूनी समुदाय में कई लोगों द्वारा इस फैसले की आलोचना की गई थी। दिलचस्प बात यह है कि शीर्ष अदालत की तीन-न्यायाधीशों की एक अन्य पीठ ने बुधवार को कहा था कि पीएमएलए की धारा 8(4) के संबंध में पीएमएलए के फैसले के अनुपात ने मनमाने आवेदन की गुंजाइश छोड़ दी है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और जस्टिस कृष्ण मुरारी और हेमा कोहली की पीठ ने कहा कि विजय मदनलाल चौधरी और अन्य बनाम भारत संघ में पीएमएलए के फैसले द्वारा निर्धारित धारा 8 (4) से संबंधित अनुपात को मनमाने ढंग से रोकने के लिए और विस्तार की आवश्यकता होगी। बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम 1988 के विभिन्न प्रावधानों और 1988 के अधिनियम में 2016 के संशोधनों को असंवैधानिक बताते हुए एक निर्णय में अवलोकन किए गए थे।