बेंगलुरु : कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्धरमैया ने शुक्रवार को कहा कि हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा नहीं है। उन्होंने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर गैर-हिंदी भाषी राज्यों के खिलाफ ‘सांस्कृतिक आतंकवाद’ के अपने एजेंडे को शुरू करने की कोशिश करने का आरोप लगाया। राजभाषा के संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी पर आपत्ति जताते हुए, कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता ने उन पर अपने राजनीतिक एजेंडे के वास्ते अपने गृह राज्य गुजरात और मातृभाषा गुजराती से हिंदी के लिए विश्वासघात करने का आरोप लगाया।
शाह ने गुरुवार को कहा था कि हिंदी को स्थानीय भाषाओं के नहीं, बल्कि अंग्रेजी के विकल्प के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। शाह ने संसदीय राजभाषा समिति की 37वीं बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्णय किया है कि सरकार चलाने का माध्यम राजभाषा है और यह निश्चित तौर पर हिंदी के महत्व को बढ़ाएगा।
सिद्धरमैया ने ‘इंडिया अगेंस्ट हिंदी इम्पोजिशन’ टैगलाइन के साथ ट्वीट किया,‘एक कन्नड़भाषी के रूप में, मैं गृह मंत्री अमित शाह की राजभाषा और संचार के माध्यम को लेकर की गई टिप्पणी के लिए कड़ी निंदा करता हूं। हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है और हम ऐसा कभी नहीं होने देंगे।’ उन्होंने कहा कि भाषाई विविधता हमारे देश का सार है और हम एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करेंगे। बहुलवाद ने हमारे देश को एक साथ रखा है और भाजपा द्वारा इसे खत्म करने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध किया जायेगा।
सिद्धरमैया ने कहा कि हिंदी को थोपना सहकारी संघवाद के बजाय जबरदस्ती वाले संघवाद का संकेत है। हमारी भाषाओं के संबंध में भाजपा के अदूरदर्शी दृष्टिकोण को ठीक करने की जरूरत है और उनकी राय सावरकर (विनायक दामोदर सावरकर) जैसे छद्म राष्ट्रवादियों के विचार पर आधारित है।
शाह ने कहा था कि मंत्रिमंडल का 70 प्रतिशत एजेंडा अब हिंदी में तैयार किया जाता है। उन्होंने कहा था कि वक्त आ गया है कि राजभाषा हिंदी को देश की एकता का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जाए। उन्होंने कहा था कि हिंदी को स्थानीय भाषाओं के नहीं, बल्कि अंग्रेजी के विकल्प के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।