- भारत, नेपाल और ब्रिटेन के बीच 9 नवंबर 1947 को त्रिपक्षीय समझौता हुआ था।
- इस 7 गोरखा राइफल्स भारतीय सेना में संचालित हैं।
- पूर्व सीडीएस बिपिन रावत और परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडे गोरखा राइफल्स का हिस्सा रहे हैं।
Gorkha Soldiers in Indian Army:करीब 75 साल से भारतीय सेना में नेपाली यानी गोरखा लोगों की चली आ रही भर्ती पर नेपाल सरकार को अटका दिया है। बुधवार को इस संबंध में नेपाल के विदेश मंत्री डॉ नारायण खड़का ने भारतीय राजदूत नवीन श्रीवास्तव से मुलाकात कर अग्निपथ योजना के तहत नेपाली युवाओं की भर्ती की योजना को स्थगित करने को कहा है। इस बात की जानकारी नेपाल के पोर्टल माई रिपब्लिका ने दी है। नेपाल के इस कदम के बाद भारत सरकार की भी प्रतिक्रिया आई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा है कि भारत लंबे समय से भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की भर्ती करते रहे हैं और हम अग्निपथ योजना के तहत भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की भर्ती जारी रखना चाहते हैं।
भारतीय सेना में नेपाल के लोगों की भर्ती की परंपरा साल 1947 के उस त्रिपक्षीय समझौते से शुरू हुई थी। जिसमें भारत, नेपाल और ब्रिटेन सरकार शामिल थी। और उसके आधार पर भारतीय सेना में नेपाल के लोगों की भर्तियां होती रही हैं। काठमांडू पोस्ट के अनुसार इस समय भारतीय सेना में करीब 34 हजार नेपाल के युवा भर्ती हैं। और करीब हर साल 1300-1400 नेपाली सैनिक भर्ती होते हैं।
क्या है त्रिपक्षीय समझौता
भारतीय सेना की वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार भारत, नेपाल और ब्रिटेन के बीच 9 नवंबर 1947 को त्रिपक्षीय समझौता हुआ था। जिसमें आजादी के बाद नए सिरे से 11 गोरखा राइफल्स बनाई गाई। जिसमें से एक जनवरी 1948 को दूसरी, छठी, सातवीं और 10 वीं गोरखा राइफल्स टीएफआर हो गई। ये चार बटालियन ब्रिटेन के पास चली गईं। और बची 7 गोरखा राइफल्स भारतीय सेना में संचालित हैं। और इसी के आधार पर भारतीय सेना में नेपाल के युवाओं की भर्ती होती है। और उन्हें भी उसी तरह के वेतन, भत्ते और पेंशन आदि मिलते हैं, जैसे कि भारतीय सेना के दूसरे अफसरों और जवानों को मिलती है। गोरखा राइफल्स में भारतीय सैनिकों के साथ-साथ नेपाल के आए सैनिक शामिल होते हैं। और इस समय भारतीय सेना में 43 बटालियन हैं।
पूर्व सीडीएस बिपिन रावत और परमवीर चक्र विजेता मनोज पांडे भी रहे हैं हिस्सा
भारत में गोरखा सैनिकों का इतिहास भी गौरवशाली रहा है। भारत के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने भी सेना में अपने करियर की शुरूआत दिसंबर 1978 में 11 वीं गोरखा राइफल्स की 5वीं बटालियन के जरिए की थी। और वहां से वह सेना के सर्वोच्च पद तक पहुंचे। इसी तरह करगिल युद्ध में मरणोपरांत परमवीर चक्र पाने वाले कैप्टन मनोज पांडे भी 11 वीं गोरखा राइफल्स के थे। 11 वीं गोरखा राइफल्स के 4 जवानों को अशोक चक्र से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसी तरह 9वीं गोरखा राइफल्स के जवानों को 3 विक्टोरिया क्रॉस , 1 अशोक चक्र से नवाजा गया है।
भारतीय सेना में गोरखाओं की भर्ती ब्रिटिश दौर से ही होती आ रही है। साल 1815 में ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाली के युद्ध में नेपाल को हार मिली थी। लेकिन गोरखा सैनिकों की बहादुरी ने ब्रिटिश कमांडर सर डेविड ऑक्टरलोनी का दिल जीत लिया। और बाद में जब 1816 में अंग्रेजों और नेपाल की राजशाही के बीच सगौली की संधि हुआ तो ईस्ट इंडिया कंपनी में गोरखा रेजिमेंट बनाने का फैसला किया गया।
अग्निपथ के बहाने उठाए सवाल
भारत सरकार अब अग्निपथ स्कीम के तहत जवानों की भर्ती कर रही है। जिसमें 4 साल की नौकरी के बाद 75 फीसदी जवानों के रिटायरमेंट का प्रावधान है। नेपाल सरकार और विपक्षी दल के नेता इसी प्रावधान पर ऐतराज जता रहे हैं। उनका कहना है कि 4 साल बाद हमारे युवाओं का क्या होगा। असल में अग्निपथ के बहाने नेपाल में सेना भर्ती को लेकर राजनीति भी चल रही है। जिसके तहत इस बात पर राजनीतिक दल सवाल उठा रहे हैं कि नेपाल के युवा किसी दूसरे देश की सेना में क्यों भर्ती हो और फिर किसी तीसरे देश के लिए क्यों युद्ध लड़े। यह नेपाल की संप्रभुता का सवाल है। इस राजनीति का ही असर है कि शेर बहादुर देउबा की सरकार बैकफुट पर नजर आ रही है। क्योंकि उनकी सरकार पुष्प कमल दहल प्रचंड की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) के समर्थन से चल रही है। और वह अग्निपथ स्कीम का विरोध कर रही है।