- कारगिल युद्ध के जांबाज सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव को कैप्टन की उपाधि दी जाएगी
- वह उन वीर सपूतों में शामिल रहे, जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल पर कब्जा किया था
- कारगिल में अदम्य साहस व वीरता के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था
नई दिल्ली : कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ा देने वाले परमवीर चक्र विजेता सूबेदार-मेजर योगेंद्र सिंह यादव को सरकार ने 'कैप्टन' के तौर पर प्रमोट करने का फैसला लिया है। स्वतंत्रा दिवस मौके पर उन्हें यह प्रमोशन दिया जाएगा। इस प्रमोशन के बाद वह मानद कैप्टन के रूप में सेना के एक अधिकारी होंगे। उनकी गिनती देश के सबसे बहादुर सपूतों में होती है। अदम्य साहस व वीरता को लेकर उन्हें पूर्व में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
18 ग्रेनेडियर्स के सूबेदार-मेजर योगेंद्र सिंह यादव ने 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान घर-घर में एक जाना-पहचाना नाम बन गए थे, जब उन्होंने द्रास इलाके में टाइगर हिल पर कब्जा जमा लिया था। यह उस वक्त शत्रु पक्ष पर बड़ी बढ़त थी, जिन्होंने घुसपैठ पर वहां कब्जा जमा लिया था। भारत और पाकिस्तान के बीच यह संघर्ष तीन महीने तक चला था, जिसके लिए चार लोगों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। इनमें से एक सूबेदार-मेजर योगेंद्र सिंह यादव भी थे।
चार जवानों को मिला था परमवीर चक्र
कारगिल युद्ध के जिन चार वीर जवानों को उस वक्त परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था, उनमें से केवल सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव और सूबेदार संजय कुमार ही बचे रहे, जबकि कैप्टन विक्रम बत्रा और लेफ्टिनेंट मनोज पांडे इस जंग में शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उन्होंने बताया कि टाइगर हिल की लड़ाई के दौरान किस तरह उन्हें पैर, छाती, कमर और हाथ में 15 बार मारा गया। यहां तक कि उनकी नाक पर भी चोट आई थी।
सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव के पिता 11वीं कुमाऊं के सिपाही रामकृष्ण यादव भी 1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ चुके थे। सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव ने अपने पिता को याद करते हुए कहा कि वह अक्सर युद्ध के मैदान में अपने अनुभवों को बयां करते थे। वह जानते थे कि सेना में शामिल होने के बाद वह युद्ध के लिए जाएंगे।