- पिछले पांच साल के दौरान भारत ने सीमाओं पर दिया है विशेष ध्यान, आधारभूत ढांचे को किया है मजबूत
- किसी से छिपी नहीं है चीन की विस्तारवादी नीति, घरेलू मुद्दों पर जूझ रहा है ड्रैगन
- विदेशी कंपनियां चीन से अपना कारोबार समेट रही है, बढ़ रही है बेरोजगारी दर
नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच लगभग पिछले एक महीने से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव बना हुआ है। पूर्वी लद्दाख में उपजे इस तनाव के बाद दोनों देशों की सेनाएं बिल्कुल आमने सामने आ गई थीं। हालांकि अब खबर आई है कि अपने मंसूबों में कामयाब नहीं होने के कारण अब करीब दो किलोमीटर पीछे हट गया है। इन सबके बीच एक सवाल लोगों के मन में उठ रहा है कि आखिर चीन अचानक से ऐसी हरकत क्यों कर रहा है और सीमा पर उसका रूख इतना आक्रामक क्यों हो गया है?
आंतरिक मुद्दों से भी जूझ रहा है चीन
दरअसल चीन की विस्तारवादी नीति किसी से छिपी नहीं है। दक्षिण चीन सागर हो या फिर वियतनाम, ताइवान और हांगकांग। इसके अलावा कोरोना संकट के बाद चीन की पूरी दुनिया में जो बदनामी हुई है उससे वह और बौखलाया हुआ है। विदेशी कंपनियां चीन से अपना कारोबार समेट रही है और बेरोजगारी की दर वहां सबसे अधिक बढ़ गई है। ऐसे में चीन अपने नागरिकों का ध्यान भटकाने के लिए भी सीमा पर ऐसी नापाक हरकतों को अंजाम दे रहा है।
डोकलाम के बाद सबसे बड़ा तनाव
अब आते हैं लद्दाख में चीनी सेना के रवैये पर। दरअसल मई महीने की शुरूआत में चीनी सैनिकों की गतिविधियां दर्ज की गई है। इसके कुछ दिनों बाद सेनाध्यक्ष जनरल नरवाणे ने सीमा का दौरा किया। यह पहली बार नहीं है जब दोनों देशों के बीच इस तरह का तनाव पैदा हुआ हो 2017 में डोकलाम में भी दोनों देशों के बीच लगभग दो महीने से भी ज्यादा समय तक तनाव चला था। इस बार जहां तनाव हुआ है यह वही इलाका है जहां चीन और भारत के बीच 1962 में जंग हुई थी।
क्या है वजह
दरअसल चीन लगातार भारत की सीमा से सटे इलाकों में अब आक्रामक रुख अपना रहा है चाहे वो पूर्वोत्तर हो या फिर उत्तर भारत के उत्तराखंड या हिमाचल से सटे सीमावर्ती इलाके। विशेषज्ञ इस तनाव का एक मुख्य कारण भारत द्वारा पिछले पांच छ साल के दौरान इंफ्रॉटक्चर को मजबूत कर रोड़ निर्माण आदि है। जिस गलवान घाटी में तनाव पैदा हुआ है वो एलएसी के बिल्कुल करीब है और इसके नजदीक ही भारत ने सबसे दुर्गम इलाके में सड़क का निर्माण कर लिया है।
मोदी सरकार सीमाओं पर कर रही है बेहतर विकास
चीन पहले धीरे-धीरे चुपचाप तरीके से विवादित इलाकों में अपना कब्जा कर लेता था लेकिन अब भारतीय सीमाओं पर आधारभूत ढांचे को मजबूत करते हुए सड़के बनाई गई है जिससे चीन के सामने जबरन कब्जाने वाले विकल्प कम होते जा रहे हैं। क्योंकि पिछले पांच साल में सरकार ने जिस तरह से सीमाओं को बेहतर करने पर ध्यान दिया है उससे चीन की परेशानी बढ़ना भी स्वाभाविक है। वहीं जब भारत ने कश्मीर से आर्टिकल 370 को खत्म किया था चो राज्य को दो क्रेंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया। लद्दाख और जम्मू-कश्मीर। लद्दाख का जो नक्शा जारी किया उसमें अक्साई चीन भी था जो चीन को नागवार गुजरा था।
आर्थिक कारण
कोरोना वायरस की मार विश्व के लगभग सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ी है। चीन से जन्मे इस वायरस की वजह से अमेरिका और चीन में पहले से ही तनातनी चल रही है। इस वायरस की वजह से चीन की अर्थव्यवस्था भी बदहाल है। विकास दर में जबदस्त गिरावट हुई है। लेकिन चीन अपनी चालाकी से यहां भी बाज नहीं आ रहा है। ऐसे समय जब उसकी आर्थिक हालत बुरी हो चली है तो वह वैश्विक जगत में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए बड़ी विदेशी कंपनियों में निवेश कर रहा है और इसका ताजा उदाहरण है भारत के निजी क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक एचडीएफसी में निवेश कर शेयरों की खरीद करना।
भारत ने किया ये बदलाव
चीन के इस कदम के बाद भारत ने भी तुरंत हरकत में आते हुए पड़ोसियों के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति में बदलाव कर लिया जिसके तहत अगर कोई भी विदेशी कंपनी अब भारतीय कंपनी के शेयरों को खरीदती है तो उससे पहले सरकार से अनुमति लेनी होगी। साफ है कि इसका सबसे बड़ा असर चीन पर होगा जिससे वह चिढ़ा हुआ है।