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HSTDV: ब्रम्होस के बाद एक और अजेय मिसाइल बनाने की तैयारी? रफ्तार से कांपेंगे चीन-पाकिस्तान!

Updated Sep 09, 2020 | 11:38 IST

India's Hypersonic Vehicle Programme HSTDV: फिलहाल भारत के पास दुनिया की सबसे तेज और ताकतवर मिसाइल ब्रम्होस है और भविष्य में भी इस क्षमता को बरकरार रखने की तैयारी की जा रही है।

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हायपर सोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV)
मुख्य बातें
  • 7 सितंबर को डीआरडीओ ने किया स्क्रैमजेट तकनीक वाले हायपरसोनिक व्हीकल का परीक्षण
  • भविष्य में इसी तकनीक से सेनाओं को हासिल होगी हायपरसोनिक मिसाइल की क्षमता
  • सबसे सक्षम क्रूज मिसाइल ब्रम्होस की ताकत को नए स्तर पर ले जाने की तैयारी

नई दिल्ली: 7 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और डीआरडीओ ने देश को भारत की तकनीकी दक्षता से जुड़ी एक उपलब्धि के बारे में जानकारी दी। उड़ीसा टेस्ट फायर रेंज से भविष्य की संभावनाओं से भरे एक प्रोजेक्ट से जुड़े सफल टेस्ट के बारे में जानकारी दी गई। रक्षा मंत्री ने अपने ट्वीट में लिखा, 'डीआरडीओ ने स्वदेशी रूप से विकसित स्क्रैमजेट प्रप्लशन प्रणाली का इस्तेमाल करते हुए हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर व्हीकल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। इस सफलता के साथ, सभी महत्वपूर्ण तकनीकें अब अगले चरण की ओर जाने के लिए सुनिश्चित हो गई हैं।'

इस तकनीक का भविष्य में कई तरह से इस्तेमाल हो सकेगा। जिसमें कम लागत के साथ सैटेलाइट लॉन्च करने की क्षमता के अलावा नई पीढ़ी की मिसाइलें बनाना शामिल हैं। वैसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) समय समय पर मिसाइलों और रॉकेट प्रणाली के अलग-अलग तरह के टेस्ट करता रहता है लेकिन यह परीक्षण कई मायनों में बेहद अलग और खास है।

यह पहली बार है जब भारतीय रक्षा क्षेत्र के हायपरसोनिक हथियार प्रणाली विकसित करने की दिशा में ठोस सफलता हासिल हुई है। इस नींव पर भविष्य के भारत की मिसाइल क्षमता को विकसित किया जाएगा। साथ ही अब अमेरिका, रूस, चीन के एक खास क्लब में भारत ने भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी है।

ब्रह्मोस जैसी क्षमता को बरकरार रखने की तैयारी:


(PHOTO- HSTDV Test / DRDO)

लद्दाख में एलएसी पर जारी तनाव की परिस्थिति के बीच भी इस सफलता के अपने मायने हैं। दरअसल कई अलग-अलग रिपोर्ट्स में ऐसी बातें कही जाती रही हैं कि भारत के तुनीर में मौजूद हथियारों में से ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल चीन का सबसे बड़ा सिरदर्द है। वजह है इसकी बेहद रफ्तार के साथ अचूक वार करने की क्षमता है।

2.5 से 2.8 मैक के बीच आवाज की गति से कहीं ज्यादा रफ्तार से उड़ती इस मिसाइल को रोकना दुनिया के किसी भी डिफेंस सिस्टम के लिए बड़ी चुनौती है क्योंकि जब तक इसे रोकने की कोशिश होती है, मिसाइल लक्ष्य को तबाह कर चुकी होती है। मतलब अगर भारत ने ब्रह्मोस को दागा तो लक्ष्य की तबाही तय है और शायद इसलिए इसे अजेय मिसाइल की संज्ञा भी दी जाती है।

ब्रह्मोस एक सुपरसोनिक मिसाइल है जिसे भारत और रूस ने मिलकर विकसित किया है जिसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदी पर रखा गया है। भारत ने न सिर्फ चीन से सटी सीमा पर इसकी तैनाती कर रखी है बल्कि वियतनाम, फिलीपींस सहित दक्षिण चीन सागर के कुछ देशों को इसे बेचने की खबरें भी आती रही हैं। इस मिसाइल को फिलहाल दुनिया की सबसे तेज और क्षमतावान मिसाइल होने का गौरव हासिल है, जिसे हवा, समुद्र और जमीन कहीं से भी दागा जा सकता है।


(PHOTO- HSTDV Test / DRDO)

जाहिर है यह क्षमता भारत को रणनीतिक रूप से बढ़त दिलाती है और भविष्य में इसे बरकरार रखने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। हायपरसोनिक व्हीकल से सफल टेस्ट को इसी कड़ी में एक बड़ा कदम माना जा सकता है, जो ब्रह्मोस से कहीं आगे जाते हुए 6 मैक की रफ्तार और कई नई तकनीकों के साथ उड़ान भरेगा।

हायपरसोनिक मिसाइल से क्या हासिल होगा?

मिसाइल की बात करें तो दुनिया का हर शक्तिशाली देश दो तरह की क्षमताएं हासिल करने में जुटा है।
पहली- ऐसा सुरक्षा तंत्र बनाया जाए कि हमले के लिए आती दुश्मन देश की किसी भी मिसाइल का तुरंत पता लगाकर उसे हवा में ही मार गिराया जाए। उदाहरण के लिए रूस का एस-400 सिस्टम या फिर भारत का पृथ्वी डिफेंस सिस्टम।

दूसरी क्षमता- ऐसी मिसाइलें विकसित करना जो किसी भी मिसाइल डिफेंस सिस्टम को चकमा देकर उस लक्ष्य को तबाह कर दें जिन पर इन्हें दागा जाता है। हायपरसोनिक मिसाइल विकसित करने की कोशिश इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है।

अगर निकट भविष्य में यह क्षमता हासिल कर ली जाती है तो क्षेत्र का रणनीतिक संतुलन एक बड़े स्तर तक भारत के पक्ष में हो जाएगा।

सुपरसोनिक और हायपरसोनिक मिसाइल में अंतर:
सुपरसोनिक मिसाइल रैमजेट तकनीक पर काम करती है जबकि हायपरसोनिक मिसाइल स्क्रैमजेट इंजन की ताकत पर उड़ान भरती है। स्क्रैमजेट इंजन की एक खास बात यह है कि इन्हें शुरु करने के लिए पहले हायपरसोनिक रफ्तार हासिल करनी पड़ती है और इसके लिए पहले रॉकेट बूस्टर का इस्तेमाल किया जाता है जो मिसाइल को सुपरसोनिक रफ्तार तक ले जाता है, जिसके बाद स्क्रैमजेट इंजन इसे हायपरसोनिक रफ्तार देता है।

ब्रह्मोस-2 पर भी हो रहा काम:

भारत अपने स्तर पर तो हायपरसोनिक तकनीक विकसित कर ही रहा है लेकिन रूस-चीन की संयुक्त कंपनी ब्रह्मोस भी अपनी सफलता को अगले चरण में ले जाने के लिए ब्रह्मोस-2 पर काम कर रहे हैं। सुपरसोनिक ब्रह्मोस-1 के बाद ब्रह्मोस-2 एक हायपरसोनिक मिसाइल होने वाली है और यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि यह हथियार किस हद तक भारतीय सेनाओं को सक्षम बना सकता है।

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