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भारत और पाकिस्तान के बीच अगर हुआ 'परमाणु युद्ध' तो दुनिया भर में पड़ जायेंगे 'खाने के लाले'

Updated Mar 17, 2020 | 17:20 IST

परमाणु युद्ध की विभीषिका बेहद ही खौफनाक होती है, अक्सर भारत और उसके पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध का जिक्र आ जाता है लेकिन उसके परिणाम बेहद ही भयावह होंगे ऐसा कहा जा रहा है।

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परमाणु हथियारों का और भयावह एवं सीधा असर यह होगा कि युद्ध क्षेत्र से बाहर ज्यादा लोग भूख से मरेंगे (प्रतीकात्मक फोटो)

नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच सीमित परमाणु युद्ध (Nuclear War,) से आधुनिक इतिहास में वैश्विक स्तर पर सबसे भयावह खाद्यान्न संकट (Food Crisis) पैदा हो सकता है। अपनी तरह के एक पहले अध्ययन में ऐसा कहा गया है। पत्रिका पीएनएएस में प्रकाशित इस अध्ययन में सामने आया कि वैश्विक परमाणु आयुधों के एक फीसद से भी कम ऐसे हथियारों के उपयोग वाले युद्ध के बाद वैश्विक स्तर पर तापमान में गिरावट तथा वर्षा एवं सूर्य की रोशनी में कमी से दुनियाभर में खाद्यान्न उत्पादन एवं व्यापार करीब एक दशक के लिए बाधित हो सकते हैं।

अमेरिका के रटजर्स यूनिवर्सिटी- न्यू ब्रून्सविक के शोधकर्ताओं का कहना है कि इसका असर 21 वीं सदी के आखिर तक मानवजनित जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से कहीं ज्यादा होगा। 

उनका मानना है कि वैसे तो कृषि उत्पादकता पर वैश्विक तापमान में वृद्धि का व्यापक रूप से अध्ययन किया गया है लेकिन तापमान में अचानक गिरावट के वैश्विक फसल वृद्धि पर प्रभाव की नहीं के बराबर समझ है।

'परमाणु हथियारों का अवश्य ही सफाया किया जाना चाहिए'
इस अध्ययन के सह लेखक और विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अलान रॉबोक ने कहा, 'हमारे नतीजे से इस वजह को बल मिलता है कि परमाणु हथियारों का अवश्य ही सफाया किया जाना चाहिए क्योंकि यदि वे बने रहे तो उनका इस्तेमाल किया जा सकता और दुनिया के लिए इसके परिणाम त्रासद हो सकते हैं।'

उन्होंने कहा, 'परमाणु हथियारों का और भयावह एवं सीधा असर यह होगा कि युद्ध क्षेत्र से बाहर ज्यादा लोग भूख से मरेंगे।'
पत्रिका ‘साइंस एडवांसेज) में हाल ही में प्रकाशित रॉबोक के एक अध्यनन में अनुमान व्यक्त किया गया है कि यदि भारत और पाकिस्तान परमाणु युद्ध करते हैं तो तत्काल 10 करोड़ लोगों की जान जाएगी और उसके बाद दुनियाभर में भुखमरी पैदा होगी।

इस नवीनतम अध्ययन में वैज्ञानिकों ने माना कि यदि महज 100 परमाणु हथियार भी इस्तेमाल किये गये तो उसके फलस्वरूप उपरी वायुमंडल में 50 लाख टन काला धुंआ पैदा होगा और कम से कम पांच सालों के लिए धरती का तापमान 1.8 डिग्री घट जाएगा, वर्षा में आठ फीसद गिरावट आएगी और सूर्य की रोशनी भी कम हो जाएगी।

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