- आने वाले समय में युद्ध केवल पारंपरिक तरीके से नहीं होंगे। उसमें साइबर और स्पेस युद्ध की चुनौती भी शामिल हो सकती है।
- किसी भी देश में जब मिलिट्री रिफॉर्म हुए हैं तो एक साल में बदलाव नही आए हैं, यह लंबी प्रक्रिया है।
- थिएटर कमांड से मोर्चे पर प्लानिंग और एक्जीक्यूशन आसान हो जाएगी।
भारतीय सेना में चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ (सीडीएस) की नियुक्ति से क्या अहम बदलाव दिख रहे हैं। और नए सीडीएस की क्या चुनौतियां होगी, भविष्य के युद्ध कैसे होंगे, और फेक न्यूज किस तरह से दुश्मन को फायदा पहुंचाती है, इन सब मुद्दों पर लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) विनोद जी खंडारे ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से विशेष बातचीत की है। वह एनएससीएस (NSCS) के मिलिट्री एडवाइजर (सेक्रेट्री) और डीआईए (DIA) के डीजी भी रह चुके हैं। पेश है इंटरव्यू के प्रमुख अंश
सवाल-सेना के लिए सीडीएस की भूमिका कितनी अहम है, इससे क्या अहम बदलाव होंगे?
जवाब- देखिए आने वाले समय में युद्ध पारंपरिक तौर पर नहीं होगे। ऐसे में राजनीतिक निर्णय के लिए सैन्य सलाह बहुत अहम हो जाती है। हमारे देश में सीडीएस की जरूरत शुरू से थी, लेकिन नियुक्ति अब हुई है। बदलती जरूरतों को देखते हुए प्रोफेशनल सलाह कोई वर्दी वाला ही दे सकता है। क्योंकि उसे पता होगा कि युद्ध के समय कब एयरफोर्स की आवश्यकता है और कब नौसेना की आवश्यकता है। हमें 1971 के युद्ध की तैयारी के लिए काफी समय मिला था। कारगिल युद्ध की बात करें तो हमने एयरफोर्स थोड़े समय के लिए इस्तेमाल किया। हमने वह लड़ाई जीती लेकिन अगर सीडीएस होता तो और अच्छे तरीके से कोऑर्डिनेशन होता। लेकिन उससे हमें कई सबक भी मिले।
आगे की लड़ाई में कोऑर्डिनेशन की बहुत जरूरत पड़ेगी। क्योंकि वह केवल सैन्य शक्ति से नहीं लड़े जाएगी उसमें साइबर और स्पेस युद्ध भी शामिव हो सकते हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए आपको एक ओवरऑल प्लान बनाना होगा। साथ ही प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री को एक सिंगल प्वाइंट सलाह की जरूरत होगी। वह काम सीडीएस का है, जो सभी सेना प्रमुखों से सभी विकल्पों पर चर्चा कर बेस्ट सलाह देंगे।
यह तो हुई सैन्य आपरेशन की बात इसके अलावा भविष्य की तैयारियों के लिए बजट का इस्तेमाल कैसे हों, अगले 5,10,15 साल में क्या खतरे आ सकते हैं। उसके लिए तैयारी कैसी चल रही है। इसके लिए एक डायरेक्शन की आवश्यकता रहेगी, जो सीडीएस करेंगे।
सवाल- जनरल बिपिन रावत का सीडीएस के रुप में क्या योगदान रहा है
जवाब- उन्होंने सबसे पहले यह महसूस किया कि तीनों सेनाओं को किस तरह एक डायरेक्शन में लेकर चला जाय। इसके लिए उन्होंने ज्वाइंटनेंस पर फोकस किया। इसमें ट्रेनिंग से लेकर सभी पहलुओं पर फोकस किया गया। बजट का बेहतर इस्तेमाल कैसे हो, इसके लिए फाइनेंशियन प्लानिंग पर जोर दिया। बर्बादी (वेस्टेज) को रोकने पर भी उनका फोकस रहा है। जिसमें संसाधनों को बेहतर इस्तेमाल हो सके।
इसके अलावा मिलिट्री-सिविल फ्यूजन पर भी उनका जोर रहा। यानी जो मिलिट्री का लिए अच्छा है वह देश के लिए भी इस्तेमाल हो सकता है। और अगर सिविल की चीजें मिलिट्री के काम आ सकती हैं तो उसका भी इस्तेमाल होना चाहिए । उन्हें आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया। इसके लिए पहली बार 101 आयटम की लिस्ट निकाली जिसमें भारत के बने हुए उत्पाद का इस्तेमाल होगा। कुछ समय बाद उन्हें एक और 100 से ज्यादा आयटम की लिस्ट निकाली। इससे भारत में डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग में पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा मिला।
सवाल- यह भी सवाल उठते हैं कि सीडीएस की जो भूमिका है, उससे सेना के तीनो अंगों में इंटीग्रेशन का चैलेंज है।
जवाब- किसी भी देश में जब मिलिट्री रिफॉर्म हुए हैं तो एक साल में बदलाव नही आए हैं। कही 10 साल तो कही 20 साल का समय लगा हैं। जब अमेरिका में 9/11 हमला हुआ तो उसके बाद से वहां मिलिट्री रिफॉर्म शुरू हुए, जो अभी भी चल रहे हैं। रूस में भी 10 साल से रिफॉर्म चल रहा है। चीन में भी ऐसा ही हो रहा है। हमारे ये भी कई सालों तक चलते रहेंगे। और पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहेंगे।
सवाल- थिएटर कमांड क्या है, इससे क्या फायदा होगा
जवाब- देखिए जब चीन ने 5 थिएटर कमांड बनाए। तो उसके बाद हमारे देश में भी यह चर्चा हुई कि थिएटर कमांड बनना चाहिए लेकिन किसी देश ने किया तो हमें भी कॉपी नहीं करना चाहिए। बल्कि अपनी जरूरत के अनुसार चीजें करनी चाहिए। हम अपनी जरूरतों के आधार पर काम कर रहे हैं। वेस्टर्न और ईस्टर्न कमांड पर काम चल रहा है। जनरल रावत ने बीज डाल दिया है, उस पर आगे काम चलता रहेगा। इसका फायदा यह है कि इससे किसी मोर्चे पर प्लानिंग और एक्जीक्यूशन आसान हो जाएगी। इसके तहत सभी एजेंसियों को एक साथ लाकर बेहतर तरीके से काम हो सकेगा।
सवाल- स्ट्रैटेजिक पार्टनशिरप मॉडल क्या है
जवाब- इसके दो अलग-अलग मॉडल है। एक स्ट्रैटेजिक है और दूसरा डिफेंस प्रोडक्शन मॉडल है। 2016 में जब मनोहर पर्रिकर रक्षा मंत्री थे तो उनको यह बताया गया कि हमारे यहां तकनीकी की कमी है। जिससे भी तकनीकी मांगी जाती है वह बहुत महंगी है। या फिर हमें सेकंड ग्रेड और थर्ड ग्रेड मिलती हैं। उस वक्त स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप मॉडल बनाने की परिकल्पना की गई थी। जिसमें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर फोकस था। इसके लिए उन्होंने पब्लिक और प्राइवेट दोनों सेक्टर के लिए सोचा था।लेकिन पब्लिक सेक्टर के इस्तेमाल को लेकर अभी कंफ्यूजन है। इस वजह से वह बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई है।
दूसरा डिप्लोमेटिक रिलेशन में स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप मॉडल फार सिक्योरिटी है। उशे क्वॉड (Quad) के तौर पर देखा जा सकता है। लेकिन हमने अभी तक किसी भी देश की सैन्य शक्ति का अपनी आंतरिक या बाहरी मामलों में इस्तेमाल नहीं किया है। क्वॉड में भी हमने कोई सैन्य समझौता नहीं किया है। हम अपनी लड़ाई खुद ही लड़ते हैं। ऐसे में स्ट्रैटेजिक पार्टनशिरप को देखने का हर देश का नजरिया अलग होगा। इस दिशा में अभी तक हम केवल एक-दो कदम ही चले हैं।
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सवाल- डिजिटल युद्ध को आप कैसे देखते है।
जवाब- देखिए रेलवे, बिजली, बैंकिंग, टेलीकॉम, सेना, अन्य विभाग सभी इससे प्रभावित होते है। हमें यह समझना होगा कि यह केवल सेना की लड़ाई नहीं है। यह पूरे देश की लड़ाई है। यह गोली चलाने वाली लड़ाई नहीं है, यह हर वक्त चलती रहती है। हमें अपने पूरे सिस्टम को सुरक्षित रखना होगा। और आगे की तैयारियां सुदृढ़ करते रहना होगा।
सवाल- कई बार कुछ राजनीतिक दलों के तरफ से सीमा की स्थिति को लेकर सवाल उठाए जाते हैं, और उस पर संशय की स्थिति बन जाती है, इसे आप कैसे देखते हैं
जवाब- चीन के विचारक शुंजू का कहना था हमें ऐसी लड़ाई लड़नी है, जिसमें गोली नहीं चले और हम जीत जाए। आज के तारीख में प्रोपेगेंडा न्यूज गोली के समान है। वह तस्वीर (इमेज) के रूप में या किसी अन्य रूप में आ सकती है। देखिए अगर सीमा पर सुरक्षा की जिम्मेदारी सेना को मिली हुई है तो उन्हें करने दीजिए। सेना के जवान और अफसर का उसके लिए चयन हुआ है, उसे ट्रेनिंग के साथ-साथ अनुभव दिया गया है। और उस आधार पर उसकी जवाबदेही तय हुई है। हमारे देश में लोगों का सेना पर भरोसा रहा है।
जहां तक राजनीति का सवाल है फौज उससे दूर है। लेकिन जब बिना जांचे-परखे ऐसे न्यूज फैलाई जाती है तो एक फौजी जो सीमा पर तैनात है, उसे बुरा लगता है। लोगों को यह सोचना चाहिए कि जब तक तकनीकी नहीं थी तो आपका हम भरोसा था, अब जब तकनीकी आ गई तो शंका क्यों कर रहे हैं। ये कैसा संबंध है। और राजनीतिक दलों के अगर कुछ भी सवाल है तो उन्हें संसद में बात करना चाहिए। रक्षा समिति के जरिए सेना से सारी जानकारी ली जा सकती है। लेकिन जब बिना जांचे-परखे न्यूज फैलाते हैं,तो उसका फायदा चीन और पाकिस्तान और उन तत्वों को होता है, जो हमारे देश को बर्बाद करना चाहते हैं।
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