नई दिल्ली। आप में से हर एक शख्स कभी ना कभी कालका से शिमला तक टॉय ट्रेन का आनंद लिया होगा। कालका से शिमला की यात्रा में आप पहाड़ों के सीने को चीर कर बनाए गए सुरंगों के जरिए आगे का सफर करते हैं तो सुरम्य वादियों की अनुपम छंटा को निहारते हुए बढ़ते जाते हैं। यहां हम आपको कालका से शिमला रेल रूट की खासियत के बारे में बताएंगे जिसे जानने की उत्सुकता हर एक शख्स की होती है।
कालका- शिमला रेल रूट का विस्तार शिवालिक रेंज से लेकर धौलाधर की चोटियों तक है। इस रेल रूट को बनाने में तमाम तरह की दिक्कतें पेश आई थी। दरअसल जिस समय इस रेल रूट को जमीन पर उतारने की कवायद की गई उस वक्त तकनीक आज की तरह नहीं थी। इस रेल रूट की बड़ी खासियत यह है कि वो रोड के समांतर चलती है और उसकी ऊंचाई रोड से ज्यादा है।
कालका शिमला रेल रूट की खासियत
- कालका-शिमला रेलवे मार्ग कालका-शिमला रेलवे मार्ग 116 साल पुराना है।
- 9 नवंबर 1903 को कालका-शिमला रेल मार्ग की शुरुआत हुई थी।
- यह रेलमार्ग उत्तर रेलवे के अंबाला डिवीजन के अंतर्गत आता है।
- 1896 में इस रेल मार्ग को बनाने का कार्य दिल्ली-अंबाला कंपनी को सौंपा गया था।
- रेलमार्ग कालका स्टेशन से शिमला (2,076 मीटर) तक जाता है।
- 96 किमी लंबे इस रूट पर 18 स्टेशन हैं।
- 1921 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी इस मार्ग से यात्रा की थी।
- कालका-शिमला रेलवे लाइन पर 103 सुरंगें हैं।
- बड़ोग रेलवे स्टेशन पर 33 नंबर बड़ोग सुरंग सबसे लंबी है, जिसकी लंबाई 1143.61 मीटर है।
- सुरंग क्रॉस करने में ट्वॉय ट्रेन ढाई मिनट का समय लेती है।
- रेलमार्ग पर 869 छोटे-बड़े पुल हैं जो सफर को रोमांचक बना देते हैं।
- कालका-शिमला रेलमार्ग को नेरोगेज लाइन है। इसमें पटरी की चौड़ाई दो फीट छह इंच है।
2008 में वर्ल्ड हेरिटेज में कालका-शिमला रेल लाइन शामिल
कालका-शिमला रेलवे लाइन को यूनेस्को ने जुलाई 2008 में इसे वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल किया था। इसी रूट पर कनोह रेलवे स्टेशन पर ऐतिहासिक आर्च गैलरी पुल 1898 में बनी थी। यह पुल 64.76 किमी पर मौजूद है। आर्च शैली में निर्मित चार मंजिला पुल में 34 मेहराबें हैं।