नई दिल्ली: ज्ञानवापी विवाद (Gyanvapi row) के बीच जमीयत-उलमा-ए-हिंद (Jamiat-Ulama-i-Hind) ने आज से उत्तर प्रदेश के देवबंद में मुस्लिम निकायों के दो दिवसीय सभा का आह्वान किया है।इस सम्मेलन में जमीयत उलेमा-ए-हिंद से जुड़े 5000 मौलाना और मुस्लिम बुद्धिजीवी शामिल होंगे। मौलाना महमूद मदनी के नेतृत्व में बुलाई गई इस बैठक में एजेंडा वर्तमान में मुसलमानों के सामने मौजूद सामाजिक-राजनीतिक-धार्मिक चुनौतियों पर विचार और रणनीति बनाना होगा। इसका उद्देश्य ज्ञानवापी और मथुरा में मस्जिद कुतुब मीनार जैसे स्मारकों के जैसे मुद्दों पर चर्चा करना है।
गौर हो कि ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर कोर्ट में अहम सुनवाई हो रही है, इस बीच ज्ञानवापी और कुतुब मीनार को लेकर चल रहे विवाद के बीच मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद ने 28 और 29 मई को तमाम मुद्दों पर यूपी के देवबंद में एक विशाल सभा बुलाई है।
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जमीयत उलेमा हिंद के प्रमुख मौलाना महमूद असद मदनी ने मुस्लिम संगठनों से ज्ञानवापी मामले में हस्तक्षेप नहीं करने का आग्रह किया था। उन्होंने मुस्लिम समुदाय के लोगों से आह्वान किया था कि ज्ञानवापी जैसे मुद्दे को सड़क पर न लाया जाए और किसी भी तरह के सार्वजनिक प्रदर्शन से बचा जाए।
मंदिर-मस्जिद विवाद के खिलाफ सम्मेलन में कई प्रस्ताव पारित कर सकता है
इससे पहले जमीयत के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने उलेमाओं, वक्ताओं और टिप्पणीकारों से अपील की थी कि वह टीवी डिबेट और बहस में भाग लेने से बचें। उन्होंने कहा, 'यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है इसलिए सार्वजनिक बहस में भड़काऊ कथन और सोशल मीडिया पर भाषणबाजी किसी भी तरह से देश और मुसलमानों के हित में नहीं है।' माना जा रहा है कि जमीयत उलेमा हिंद देश में इन दिनों चल रहे मंदिर-मस्जिद विवाद के खिलाफ सम्मेलन में कई प्रस्ताव पारित कर सकता है।
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का कोर्ट द्वारा वीडियोग्राफी सर्वेक्षण कराया गया था
वाराणसी के प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का न्यायालय द्वारा अनिवार्य वीडियोग्राफी सर्वेक्षण 14, 15 और 16 मई को किया गया था और इसकी रिपोर्ट 19 मई को सौंपी गई थी। हिंदू पक्ष ने आरोप लगाया है कि सर्वेक्षण में मस्जिद परिसर के अंदर एक शिवलिंग की खोज की गई थी, जबकि मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि संरचना मस्जिद के वुज़ू खाना क्षेत्र में फव्वारे का हिस्सा थी। हिंदू पक्ष के बाद, मस्जिद समिति ने वाराणसी जिला अदालत से सर्वेक्षण की तस्वीरें और वीडियो सार्वजनिक डोमेन में नहीं आने देने का आग्रह किया। सर्वे के बाद मस्जिद परिसर के कुछ वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर की गईं।