- राज्य की 53.72 लाख (44 फीसदी) आबादी जम्मू क्षेत्र और करीब 68.83 लाख (55 फीसदी) आबादी कश्मीर क्षेत्र में रहती है।
- राज्य में अब विधानसभा में सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो जाएगी।
- 43 सीटें जम्मू में होंगी, जबकि 47 सीटें कश्मीर में होंगी।
Jammu and Kashmir Delimitation:जम्मू और कश्मीर के लिए परिसीमन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर नई विधानसभाओं की अधिसूचना जारी कर दी गई है। अब राज्य में नए विधानसभाओं के आधार पर चुनाव होने की संभावना है। आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्य में अब विधानसभा में सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो जाएगी। इनमें में 43 सीटें जम्मू में होंगी, जबकि 47 सीटें कश्मीर में होंगी। अभी तक 36 सीटें जम्मू में हैं और कश्मीर में 46 सीटें हैं। इन 90 सीटों में से 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित करने का भी प्रावधान किया गया है। जबकि 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव है। इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर की नई विधानसभा में लद्दाख का प्रतिनिधित्व नहीं होगा। क्योंकि वह अलग केंद्रशासित प्रदेश बन चुका है। जाहिर है जम्मू और कश्मीर की नई विधानसभा कई मायने में अलग होगी। और उसका राजनीतिक असर भी जमीन पर अलग तरह से दिखेगा।
इस आधार पर हुआ बदलाव
साल 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की 53.72 लाख (44 फीसदी) आबादी जम्मू क्षेत्र और करीब 68.83 लाख (55 फीसदी) आबादी कश्मीर क्षेत्र में रहती है। इस आधार पर पहले कश्मीर में 55 फीसदी आबादी के पास 46 सीटें थी और जम्मू की 44 फीसदी आबादी के पास 37 सीटें थी। नए सिफारिशों के बाद यह आकड़ां 47 और 43 का हो जाएगा। यानी कश्मीर और जम्मू क्षेत्रों का अंतर कम रह जाएगा। और इस बदलाव का महबूबा मुफ्ती से लेकर उमर अब्दुल्ला तक विरोध कर रहे हैं। क्योंकि अभी 83 सीटों वाली विधानसभा में 46 सीटों के साथ कश्मीर घाटी का वर्चस्व था। यानी केवल कश्मीर घाटी में भारी जीत दर्ज कर कोई दल सरकार बना सकता था। 83 सीटों वाली विधानसभा में 42 सीटें बहुमत के लिए जरूरी थी। अब 90 सीटों में कम से कम 45 सीटों पर जीत की जरूरत होगी।
नहीं रहेगा कश्मीर घाटी का वर्चस्व
राजनीतिक वर्चस्व को समझने के राज्यों के चुनाव परिणामों को देखा जाय तो तस्वीर साफ हो जाती है। जैसे 2014 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी को 28 सीटें, भाजपा को 25 सीटें, नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिलीं थी। इसमें भाजपा को केवल जम्मू क्षेत्र से जीत मिली थी, जहां हिंदुओं का प्रभाव है। वहीं उसे कश्मीर घाटी में एक भी सीट नहीं मिली थी। इसी तरह पीडीपी को केवल कश्मीर घाटी से सीटें मिली थी। साफ है कि भाजपा ने जम्मू की 37 में से 25 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वहीं पीडीपी 46 में से 28 सीटें मिली थीं।
इसी तरह 2008 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी को 21 सीटें, भाजपा को 11 सीटें, नेशनल कॉन्फ्रेंस को 28 और कांग्रेस को 20 सीटें मिलीं थी। इसमें से भाजपा को सारी सीटें जम्मू क्षेत्र ही मिली थी। जबकि पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस का ज्यादातर सीटें कश्मीर घाटी में मिलीं। यानी अभी तक राज्य में अधिकतर बार सरकार बनाने वाली पार्टी, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस की कश्मीर घाटी पर निर्भरता ज्यादा थी। लेकिन अब उन्हें जम्मू क्षेत्र में भी ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करना होगा। लेकिन वहां पर भाजपा का प्रभाव ज्यादा है।
इसी तरह पहली बार 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित की गई हैं। इसमें से 6 सीटें जम्मू क्षेत्र के लिए 3 सीटें कश्मीर क्षेत्र के लिए की गई है। इसका सबसे ज्यादा फायदा गुज्जर, बकरवाल जातियों को मिलने वाला है। जिनकी पिछले 30 साल से सीटें आरक्षित करने की मांग थी। ऐसे में सरकार बनाने में इन जातियों की भी अहम भूमिका होने वाली है। जाहिर है इन अहम बदलावों के बाद जम्मू और कश्मीर के राजनीतिक समीकरण बदलने वाले हैं, जिनका चुनावों में सीधे तौर पर असर दिखेगा।
जम्मू-कश्मीर: परिसीमन आयोग ने सौंपी रिपोर्ट, महबूबा बोलीं- हमें नहीं भरोसा
27 साल से नहीं हुआ था परिसीमन
असल में अनुच्छेद 370 लागू रहने के समय जम्मू और कश्मीर में लोकसभा सीटों के लिए परिसीमन करने का अधिकार देश के दूसरे राज्यों के साथ ही था। लेकिन राज्य में विधानसभाओं के परिसीमन का अधिकार जम्मू और कश्मीर के संविधान के अनुसार वहां के कानून के आधार पर किया जा सकता था। इस वजह से जब पूरे देश में 2002-2008 में परिसीमन हुआ तो राज्य में परिसीमन नहीं किया जा सका। लेकिन अनुच्छेद 370 हटने और केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद अब यह अधिकार केंद्र के पास आ गया। जिसके आधार पर परिसीमन किया गया है। इसके पहले आखिरी बार साल 1995 में परिसीमन किया गया था।